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कोई महामंडलेश्वर, कोई जगदगुरु, कुंभ में कैसे तय होते हैं संतों के पद?

महाकुंभ में अखाड़ों को विशेष स्थान प्राप्त है। साथ ही इस दौरान संतों को अखाड़े में विशिष्ठ पद भी दिए जाते हैं। विस्तार से इस बारे में जानिए।

Image of Kumbh Mela Sadhu

महाकुंभ में आए साधु।(Photo Credit: PTI)

सनातन परंपरा में अखाड़ों का एक विशेष महत्व है। ये अखाड़े न केवल साधुओं और संतों के लिए एक आध्यात्मिक संगठन है, बल्कि सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार, संस्कृति और साधना की परंपरा को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। देशभर में 13 प्रमुख अखाड़े हैं, जो शैव परंपरा, वैष्णव परंपरा और उदासीन परंपरा का पालन करते हैं। यह सभी अखाड़े कुंभ मेले के आयोजन में एक साथ आते हैं।

 

बता दें कि अखाड़ों में संतों के बीच कई पद दिए जाते हैं, जो उनके अनुभव, ज्ञान, साधना के आधार पर तय होते हैं। ये पद न केवल अखाड़े के सभी साधु-संतों का नेतृत्व करते हैं, बल्कि अनुशासन और परंपरा को बनाए रखने में भी ये बहुत सहायक होते हैं।

अखाड़ों में संतों को मिलने वाले प्रमुख पद

अखाड़ों में साधु-संतों को विभिन्न पद प्रदान किए जाते हैं, जो उनकी योग्यता और योगदान के आधार पर निर्धारित किए जाते हैं। आइए जानते हैं साधु-संतों को दिए जाते हैं कौन-कौन से पद।

महामंडलेश्वर

महामंडलेश्वर अखाड़े का सर्वोच्च पद होता है। यह पद उन संतों को दिया जाता है, जिन्होंने अध्यात्म, साधना और धर्म के प्रचार-प्रसार में सर्वोच्च योगदान दिया हो। महामंडलेश्वर का चयन अखाड़े के वरिष्ठ संतों द्वारा किया जाता है। यह पदधारी धार्मिक आयोजनों में अखाड़े का प्रतिनिधित्व करते हैं और बड़े निर्णयों में मुख्य भूमिका निभाते हैं।

मंडलेश्वर

यह पद महामंडलेश्वर के बाद आता है। मंडलेश्वर वे संत होते हैं, जो अखाड़े के प्रशासनिक कार्यों और धर्म प्रचार में सक्रिय भूमिका निभाते हैं। उन्हें धर्म सभा और अखाड़े के अन्य निर्णयों में शामिल किया जाता है।

अचार्य महामंडलेश्वर

यह पद भी काफी उच्च माना जाता है। अचार्य महामंडलेश्वर संतों के लिए मार्गदर्शक की भूमिका निभाते हैं। वे धार्मिक ग्रंथों की व्याख्या और शिक्षा में प्रमुख होते हैं। इनका चयन आध्यात्मिक और शास्त्रीय ज्ञान के आधार पर किया जाता है।

 

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श्री महंत

श्री महंत अखाड़े का एक महत्वपूर्ण पद है। वे अखाड़े के विभिन्न कार्यों का प्रबंधन करते हैं और अखाड़े के अनुयायियों के साथ जुड़ाव बनाए रखते हैं।

महंत

महंत भी एक प्रबंधक पद होता है। वे अपने क्षेत्र या मठ के धार्मिक गतिविधियों को संचालित करते हैं। अखाड़े के अंतर्गत आने वाले छोटे-छोटे मठों का संचालन महंत के जिम्मे होता है।

नागा साधु

नागा साधु अखाड़े की एक विशिष्ट पहचान हैं। ये साधु कठोर साधना और संयम का पालन करते हैं। नागा साधु तपस्या के साथ-साथ युद्ध कौशल में भी निपुण होते हैं और धर्म की रक्षा के लिए समर्पित होते हैं। ये अपने साहस और तपस्या के लिए प्रसिद्ध हैं।

अवधूत और दिगंबर

अवधूत और दिगंबर साधु वे होते हैं, जो सांसारिक मोह-माया को पूरी तरह त्याग चुके होते हैं। ये साधु पूर्ण रूप से तपस्या और साधना में लीन रहते हैं।

पंच

पंच का पद संतों की एक विशेष समिति है, जो अखाड़े के भीतर निर्णय लेने और विवाद सुलझाने का कार्य करती है। पंच की भूमिका न्यायिक और प्रशासनिक होती है।

 

पदों का निर्धारण कौन करता है?

अखाड़ों में पदों का निर्धारण संतों की साधना, ज्ञान, सेवा और धर्म के प्रति उनकी निष्ठा के आधार पर किया जाता है। यह प्रक्रिया पारंपरिक और लोकतांत्रिक दोनों होती है। कुंभ मेले के दौरान अखाड़ों में नए पदों का चयन और घोषणा की जाती है। यह समय अखाड़े के संतों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि कुंभ मेले में अखाड़े के धार्मिक और सामाजिक योगदान को आंका जाता है।

 

अखाड़े के पंच या वरिष्ठ संत पदों का निर्धारण करते हैं। ये पंच अपने अनुभव और निर्णय क्षमता के आधार पर यह तय करते हैं कि कौन सा संत किस पद के योग्य है। इसके साथ गुरु-शिष्य परंपरा भी पद निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। गुरु अपने शिष्य को साधना और सेवा के आधार पर पदोन्नति देते हैं। 

 

अखाड़ों की आचार्य परिषद, जो सभी अखाड़ों की सर्वोच्च संस्था है, पद निर्धारण में अहम भूमिका निभाती है। यह परिषद अखाड़ों के कार्य, पद और संतों के व्यवहार का मूल्यांकन करती है। अखाड़ों में संतों को दिए गए पद न केवल उनकी योग्यता और योगदान को मान्यता देते हैं, बल्कि अखाड़े की कार्यप्रणाली और अनुशासन को भी सुनिश्चित करते हैं। ये पद अखाड़े की परंपराओं को बनाए रखने और धर्म के प्रचार-प्रसार में सहायक होते हैं।

 

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अखाड़ों में साधुओं की गलती पर मिलती है ये सजा

हर अखाड़ा अपनी परंपराओं और नियमों का पालन करता है, और इनमें संतों के लिए अनुशासन बनाए रखना अत्यंत आवश्यक होता है। किसी संत द्वारा अखाड़े के नियमों या धर्माचार का उल्लंघन किया जाता है, तो उन्हें इसके लिए सजा भी दी जाती है। ये दंड का मुख्य उद्देश्य संत को अपनी गलती का एहसास कराना और उन्हें सही मार्ग पर लाना होता है।

गलती पर संतों को दी जाती है ये सजा

गलती यदि गंभीर हो, तो साधु या संत को अखाड़े से बाहर कर दिया जाता है। इसका अर्थ होता है कि वह अखाड़े से किसी भी प्रकार का संबंध नहीं रख सकता और उसे अखाड़े के अधिकार और सम्मान से वंचित कर दिया जाता है।

 

कई बार गलती सुधारने के लिए साधु-संतों को विशेष तपस्या या प्रायश्चित का आदेश दिया जाता है, जैसे उपवास रखना, 108 डुबकी गंगा स्नान करना या धार्मिक अनुष्ठान करना। इसके साथ अगर गलती अखाड़े की परंपरा के विपरीत हो, तो संत को उनके पद से हटाकर निचले स्तर पर रखा जा सकता है।

 

कई बार संतों को गलती का एहसास कराने के लिए उन्हें फिर एक बार धर्म और शास्त्रों की शिक्षा दी जाती है ताकि वे अपने दायित्व को बेहतर ढंग से समझ सकें।

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