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डंडे से पिटते हैं, मुर्गा बनते हैं, साधुओं को ऐसी सजा क्यों मिलती है?

महाकुंभ में अखाड़ों में रहने वाले साधुओं को कई नियमों का पालन करना होता है। इनका पालन न करने पर इन्हें कई तरह के दंड दिए जाते हैं।

Image of Sadhu in Akhara

अखाड़े के साधु संत।(Photo Credit: PTI)

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ में देश के विभिन्न हिस्सों से सभी अखाड़ों के साधु-संत पवित्र स्नान के लिए एकत्रित होते हैं। इन अखाड़ों में नागा साधु, अघोरी और सन्यासी भी शामिल होते हैं। इनकी संख्या लाखों में होती है, और कुंभ के दौरान अखाड़ों के साधु-संत ही सबसे पहले अमृत स्नान करते हैं।

 

कुंभ मेले में साधुओं की इतनी बड़ी संख्या होने के कारण अनुशासन भी एक गंभीर विषय होता है। इसलिए कुंभ के दौरान अखाड़ों में अनुशासन बनाए रखने के लिए कई नियम बनाए गए थे, जिनका पालन आज भी किया जाता है।

अखाड़ों में कौन रखता है अनुशासन का ध्यान?

कुंभ मेले के दौरान अखाड़ों के कई शिविर स्थापित किए जाते हैं, जिनकी देखरेख और अनुशासन का ध्यान कोतवाल रखते हैं। हर अखाड़े में 3 से 4 कोतवाल होते हैं, जिनका चयन महाकुंभ में दूसरे शाही स्नान के बाद किया जाता है। 

 

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जिन साधुओं का कार्य अच्छा होता है, उन्हें अच्छी उपाधि दी जाती है या महंत का पद दिया जाता है। अखाड़ों के इन कोतवालों के पास एक चांदी की धातु लगी छड़ी होती है और इसलिए इन्हें छड़ीदार कहा जाता है।

अखाड़े में गलती करने पर मिलती है ये सजा

कोई साधु अखाड़े के नियम और अनुशासन का गंभीर उल्लंघन करता है, तो उन्हें अखाड़े से निष्कासित किया जा सकता है। यह सजा सबसे कड़ी मानी जाती है, क्योंकि साधु का अखाड़े से संबंध टूटने पर वह सामाजिक और धार्मिक दृष्टि से अकेला हो जाता है।

 

साधु को अपने कृत्य के लिए प्रायश्चित करने का आदेश दिया जाता है। यह प्रायश्चित कठोर तप, उपवास, 108 डुबकी गंगा स्नान, छड़ी से पिटाई, मुर्गे की तरह घूमना, तपती धूप या कड़ाके की ठंड में निर्वस्त्र रहकर खुले में खड़े रहना या विशेष धार्मिक अनुष्ठान के रूप में हो सकता है।

 

साधु यदि अखाड़े में किसी पद पर है, तो अनुशासन तोड़ने पर उससे उसका पद छीन लिया जाता है। यह सजा अखाड़े में उसकी प्रतिष्ठा को प्रभावित करती है। इसके साथ उन्हें अखाड़े के धार्मिक आयोजन और पूजा-पाठ में शामिल होने से रोक दिया जाता है।

 

कुछ मामलों में, साधु को आर्थिक दंड भी दिया जाता है। इसके साथ नियम तोड़ने पर गुरु कुटिया की सेवा करनी होती है। यह सजा साधु को उसकी गलती का अहसास कराने के उद्देश्य से दी जाती है।

 

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कौन तय करते हैं सजा?

अखाड़े के महामंडलेश्वर और आचार्य सबसे वरिष्ठ पदाधिकारी होते हैं। वे अनुशासन बनाए रखने और सजा तय करने में मुख्य भूमिका निभाते हैं। इसके साथ पंच परमेश्वर समिति अखाड़े के अनुशासन संबंधी मामलों को देखती है। कोई विवाद यदि होता है, तो समिति उसकी जांच करती है और सजा का निर्णय करती है।

 

कोतवाल और कार्यवाहक अखाड़े के दैनिक गतिविधियों की निगरानी करते हैं। वे अनुशासन भंग होने की स्थिति में इसे वरिष्ठ अधिकारियों तक पहुंचाते हैं। इसके साथ यदि कोई साधु महाकुंभ के दौरान आपराधिक गतिविधि करता है तो स्थानीय प्रशासन और पुलिस इसपर कार्रवाई करती है।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं। Khabargaon इसकी पुष्टि नहीं करता।

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