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आज भी यहां मौजूद है मंदार पर्वत, जिसका महाकुंभ से है विशेष संबंध

महाकुंभ मेले का संबंध समुद्र मंथन से जुड़ता है। आइए जानते हैं, कहां हैं समुद्र मंथन में इस्तेमाल हुआ मंदराचल पर्वत और इसका महत्व।

Image of Mandar Parvat

विष्णु मंदिर ठीक पीछे मंदार पर्वत।(Wikimedia Commons)

वैदिक पंचांग के अनुसार, 13 जनवरी से प्रयागराज में महाकुंभ मेला शुरू होने जा रहा है। सनातन धर्म में इस मेले को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। बता दें कि कुंभ मेले का सनातन धर्म में विशेष महत्व है। इसमें देश विदेश से लाखों की संख्या में साधु-संत और श्रद्धालु पवित्र संगम में डुबकी लगाने के लिए एकत्रित होते हैं। शास्त्रों में भी कुंभ का उल्लेख विस्तार से किया गया है।

 

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, कुंभ मेले का संबंध पौराणिक काल में हुए समुद्र मंथन की कथा से जुड़ता है। इसमें देवताओं और असुरों के बीच अमृत प्राप्ति के लिए समुद्र मंथन हुआ था और इसी मंथन से निकले अमृत के चार बूंद देश के चार स्थानों पर गिर गया था, जिसमें तीर्थराज प्रयागराज भी शामिल है। बता दें कि समुद्र मंथन के लिए मंदराचल पर्वत को चुना गया था, जो आज भी उपस्थित हैं। आइए जानते हैं समुद्र मंथन की कथा और मंदार पर्वत की कहानी।

समुद्र मंथन की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय ऐसा आया जब देवताओं ने अपनी शक्तियां खो दीं और असुरों से पराजित होने लगे। इस समस्या का समाधान खोजने के लिए देवताओं ने विष्णु जी की शरण ली।

 

विष्णु जी ने सुझाव दिया कि अमृत की प्राप्ति के लिए क्षीरसागर का मंथन करना होगा। इस कार्य में असुरों का सहयोग आवश्यक था। देवताओं और असुरों ने मंथन के लिए मंदराचल पर्वत को मथनी और वासुकी नाग को रस्सी के रूप में उपयोग किया। यह तय हुआ कि जो भी अमृत प्राप्त होगा, उसे आपस में बांटा जाएगा।

 

मंथन के दौरान कई चीजें उत्पन्न हुईं, जिनमें हलाहल नामक विष सबसे पहले निकला। यह विष इतना विषैला था कि इससे पूरे संसार के नष्ट होने का खतरा था। तब भगवान शिव ने इसे अपने कंठ में धारण किया, जिससे उनका गला नीला पड़ गया और वे नीलकंठ कहलाए।

 

मंथन के दौरान कौस्तुभ मणि, कल्पवृक्ष, कामधेनु, ऐरावत हाथी और लक्ष्मी जैसे दिव्य रत्न भी निकले। अंत में धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए। अमृत को लेकर देवताओं और असुरों में विवाद हुआ। विष्णु जी ने मोहिनी रूप धारण कर चतुराई से अमृत केवल देवताओं को पिला दिया। 

 

समुद्र मंथन के दौरान अमृत कलश की रक्षा को लेकर देवताओं और असुरों के बीच संघर्ष हुआ। इस संघर्ष के दौरान अमृत कलश से अमृत की बूंदें धरती पर गिर पड़ीं। पौराणिक कथाओं और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, अमृत की ये बूंदें चार स्थानों पर गिरीं, जिन्हें आज चार प्रमुख तीर्थस्थल- हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक शामिल है, जिन्हें कुंभ मेले के स्थानों के रूप में जाना जाता है।

आज भी यहां मौजूद है मंदराचल पर्वत

पौराणिक कथाओं में मंदराचल पर्वत का उल्लेख समुद्र मंथन की कथा से जुड़ा हुआ है। यह पर्वत देवताओं और असुरों के सहयोग से अमृत प्राप्ति के लिए समुद्र मंथन में मथानी के रूप में उपयोग किया गया था। इस पर्वत को भगवान विष्णु के आदेश पर समुद्र के बीच में स्थापित किया गया था। ऐसी मान्यता है कि मंदराचल पर्वत बिहार राज्य के बांका जिले में स्थित है। इसे वर्तमान समय में ‘मंदार पर्वत’ के नाम से जाना जाता है। 

 

बता दें कि मंदार पर्वत लगभग 700 फीट ऊंचा है और यहां कई ऐतिहासिक व धार्मिक स्थल हैं। मंदार पर्वत पर भगवान विष्णु और भगवान शिव के मंदिर हैं, जो इस स्थान को अत्यंत पवित्र और धार्मिक महत्व प्रदान करते हैं। मंदार पर्वत पर कई प्राचीन मूर्तियां और शिलालेख पाए गए हैं, जो इसके ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को दर्शाते हैं। साथ ही मंदार पर्वत के परिक्रमा करते समय ध्यान दे देखने पर कुछ निशान नजर आते हैं, माना जाता है कि यह निशान समुद्र मंथन से जुड़ा हुआ है।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं। Khabargaon इसकी पुष्टि नहीं करता।

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