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हर साल बढ़ रही है महाकुंभ भक्तों की संख्या, जानें इतिहास और तैयारी

यूपी प्रशासन के अनुसार, इस साल 40 करोड़ श्रद्धालुओं के अनुमान है, जो 1989 में केवल 2 करोड़ था। जानिए इसका पूरा इतिहास और अभी की तैयारी।

Image of Sadhu Sant Bathing in Mahakumbh

कुंभ में स्नान करते साधु - संत। (Pic Credit- PTI File Photo)

वैदिक पंचांग के अनुसार, 13 जनवरी को पौष पूर्णिमा से प्रयागराज में महाकुंभ मेले का शुभारंभ होने जा रहा है। सनातन धर्म में आस्था का केंद्र कहे जाने वाले कुंभ मेले का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है और यह विश्व के सबसे बड़े धार्मिक आयोजन में से एक है। वैदिक काल से कुंभ का आयोजन साधु-संतों और श्रद्धालुओं के एकत्र होने का एक बड़ा साधन है। शुरुआती समय में इस मेले में मुख्यतः स्थानीय और निकट के क्षेत्रों के लोग ही आते थे।

 

इस मेले से जुड़ी एक पौराणिक कथा भी बहुत प्रचलित है। कथा के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान 14 रत्न प्राप्त हुए थे और इसी में अमृत कलश की प्राप्ति हुई थी। जिसको लेकर देवताओं और असुरों के बीच संघर्ष हुआ। इस संघर्ष में अमृत की कुछ बूंदें पृथ्वी पर चार स्थान- प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में गिरीं और इन्हीं स्थानों पर कुंभ मेले का आयोजन होता है। बता दें कि कुंभ मेले में साल-दर-साल श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ती रही है। आइए जानते हैं इसका पूरा इतिहास और अब क्या है इसका महत्व।

कुंभ मेले में श्रद्धालुओं के आने का इतिहास

इतिहासकारों का मानना है कि वैदिक काल से मध्यकाल के शुरू होने तक कुंभ मेले में सिर्फ स्थानीय लोग और साधु-संत का आगमन होता था। इसके बाद मध्यकाल में कुंभ मेले का महत्व बढ़ने लगा, और देश के विभिन्न हिस्सों से लोग इसमें भाग लेने लगे। मेला विशेष रूप से साधु, संत और संन्यासियों के लिए महत्वपूर्ण केंद्र बन गया। इस दौरान सबसे बड़े और पहले जूना अखाड़े का गठन हुआ और बड़ी संख्या में साधु-संत आयोजन में भाग लेने लगे, जिससे श्रद्धालुओं की भी संख्या में बढ़ोतरी हुई।

 

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बता दें कि ब्रिटिश शासन के दौरान कुंभ मेले का रिकॉर्ड रखना शुरू हुआ। 19वीं शताब्दी में हरिद्वार और प्रयागराज में आयोजित कुंभ मेलों में लाखों लोग शामिल हुए। उदाहरण के लिए, 1895 के कुंभ मेले में करीब 20 लाख श्रद्धालु आए थे, 1954 में उस समय की भारत की 1%जनसंख्या प्रयाग में आयोजित कुंभ में आई थी।

 

स्वतंत्रता के बाद कुंभ मेले का विस्तार और प्रबंधन अधिक अच्छे ढंग से हुआ। 1989 के हरिद्वार कुंभ मेले में 2 करोड़ से अधिक श्रद्धालु पहुंचे थे। साथ ही हरिद्वार में ही 1998 में हुए महाकुंभ मेले में 5 करोड़ लोग उपस्थित हुए थे। इसके बाद 2013 में प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ मेला श्रद्धालुओं की संख्या के लिए ऐतिहासिक बन गया, जिसमें लगभग 12 करोड़ लोग शामिल हुए। वहीं 2019 में प्रयागराज कुंभ मेला विश्व के सबसे बड़े आयोजन के रूप में दर्ज हुआ, जिसमें करीब 15 करोड़ श्रद्धालु शामिल हुए थे। कुंभ मेले में आने वालों तीर्थयात्रियों की संख्या हर साल बढ़ रही है और वर्ष 2025 में होने जा रहे प्रयागराज महाकुंभ में 40 करोड़ श्रद्धालुओं के आने का अनुमान लगाया जा रहा है।

तैयारी में जुटा है पूरा प्रशासन

महाकुंभ शुरू होने से उत्तर प्रदेश प्रशासन पूरी तैयारियां खत्म करने में जुटी है। सरकार ने यह अनुमान लगाया है कि महाकुंभ में करीब 40 करोड़ की बड़ी संख्या में श्रद्धालु आने का अनुमान लगाया जा रहा है। इस दौरान सुरक्षा व्यवस्था को दुरुस्त रखने के लिए 40,000 पुलिस दल को तैनात किया जाएगा। बता दें कि कुंभ मेले का आयोजन 4,000 हेक्टेयर क्षेत्रफल में होगा। 

 

कुंभ मेले में आने वाले श्रद्धालुओं के आवास के लिए टेंट सिटी का निर्माण हो रहा है, जिसमें 2000 टेंट और 25,000 सार्वजनिक आवास शामिल हैं। इनमें लक्जरी टेंट हॉउस भी हैं, जिनमें एयर कंडीशनिंग, वाईफाई और अटैच्ड बाथरूम शामिल हैं। इसके साथ श्रद्धालुओं के लिए आसान यातायात सुविधा देने के लिए 45 दिन में 13,000 ट्रेन चलाने का लक्ष्य रखा गया है। मेले में तीर्थयात्रियों को अलग-अलग जगहों तक पहुंचाने के लिए 550 शटल बसें और 20,000 ई-रिक्शा उपलब्ध रहेंगी।

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