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नदी पर पड़ा नाम, पर्यावरण संरक्षण का काम, कौन हैं ये वाटर वूमेन?

महाकुंभ में पहुंची शिप्रा पाठक सुर्खियों में हैं। लोग उन्हें वाटर वूमेन कहते हैं। वह अब एक थाली, एक थैला अभियान चला रही हैं। पढ़ें पूरी रिपोर्ट।

Shipra Pathak

शिप्रा पाठक (Photo Credit: Khabargaon)

महाकुंभ 2025 में गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम में डुबकी लगाने देश-दुनिया के कोने-कोने से लोग आ रहे हैं। कुंभ नहाने आईं शिप्रा पाठक भी चर्चा में हैं। वाटर वूमेन के नाम से मशहूर शिप्रा पाठक भी कुंभ की व्यवस्था देखकर हैरान हो गई हैं। पर्यावरण संरक्षण को लेकर 13 हजार किलोमीटर तक की पदयात्रा करने वाली शिप्रा संगम की स्वच्छता देखकर हैरान हो गईं। उन्होंने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की खूब की तारीफ की। महाकुंभ की साफ-सफाई देखकर उन्हें यकीन नहीं हुआ कि कैसे लाखों की भीड़ होने के बाद भी कुंभ मेले में सफाई है।

शिप्रा पाठक ने महाकुंभ में त्रिवेणी संगम में डुबकी लगाई। उन्होंने यहीं से एक थैला-एक थाली अभियान की शुरुआत की। महाकुंभ में उनका एक शिविर भी है। महाकुंभ में शिप्रा पाठक स्वच्छता की अलख जगाने के लिए एक थैला, एक थाली अभियान में सक्रिय भूमिका निभा रही हैं। उनका कहना है कि कुंभ को स्वच्छ बनाने के लिए हमने पहले ही अखाड़ों में जाकर थैला, थालियां, गिलास, चम्मच बांटा था। 

 

वाटर वूमेन शिप्रा पाठक ने कहा, 'संगम समेत पूरे महाकुंभ में स्वच्छता का जो नजारा दिख रहा है वह अद्भुत है। यह सुंदर व्यवस्था एक ऐसे शख्स ने की है जो मुख्यमंत्री होने के साथ-साथ एक साधक है, योगी है। कुंभ उनके दिल के बहुत नजदीक है, इसलिए कुंभ की उनसे बेहतर व्यवस्था कोई और नहीं कर सकता है।'


13 हजार KM की पद यात्रा कर चुकी हैं शिप्रा

वॉटर विमेन शिप्रा पाठक जल एवं पर्यावरण संरक्षण को लेकर अब तक 13,000 किलोमीटर की पदयात्राएं कर चुकी हैं। उनकी संस्था 'पंचतत्व' से 15 लाख लोग जुड़े हैं, जिनके सहयोग से नदियों के किनारे 25 लाख पौधे लगाए गए हैं। श्रद्धालु के हाथ में पॉलिथीन दिखी तो उसको भी थैला दे दिया।

 

शिप्रा ने कहा कि उनका नाम खुद एक नदी के नाम पर है। बचपन से उनके नदियों और जल स्रोतों से विशेष लगाव रहा है। ऐसे में उन्हें नदियों के प्रदूषण का मुद्दा हमेशा से परेशान करता था। साल 2018 में उन्होंने नर्मदा नदी की परिक्रमा कर नदियों को लेकर लोगों को जागरूक करने का बीड़ा उठाया।

क्या करना चाहती हैं वाटर वूमेन?

शिप्रा ने बताया कि उन्होंने रोहिलखंड यूनिवर्सिटी से पीजी की पढ़ाई की है। वह अब अपने जीवन को नदियों के संरक्षण एवं प्रदूषण मुक्त करने के कार्य में ही लगाने को लेकर समर्पित कर दिया है। शिप्रा ने कहा कि जल संचयन के लिए नदियों का निर्मलता और अविरलता के साथ बहना जरूरी है। ऐसा होने से हमारी आने वाली पीढ़ी भी प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग कर पाएगी।

 

शिप्रा ने यह भी बताया कि उनके आध्यात्मिक जीवन में विज्ञान और तर्क का विशेष स्थान है। वह अपने आध्यात्मिक जीवन को महज कथावाचक के रूप में नहीं देखती हैं। उन्हें एक संस्था की ओर से वाटर वूमेन का नाम दिया गया था। अब वह इस नाम के साथ खुद को पहचाने जाने में गर्व महसूस करती हैं। वैसे वाटर वूमेन शिप्रा पाठक का संबंध राजनीतिक घराने से रहा लेकिन उनका रुझान पर्यावरण संरक्षण की ओर हो गया है।

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