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'परंपरा, संगठन, अनुशासन...,' अखाड़ों ने 2032 के कुंभ की तैयारी कर ली!

महाकुंभ 2025 अब समाप्त होने वाला है। अगला कुंभ 2032 में लगेगा लेकिन इसकी तैयारियां अभी से शुरू हो गई हैं। महानिर्वाणी अखाड़े की तैयारियां क्या हैं, संन्यासी अखाड़े क्या कर रहे हैं, आइए विस्तार से समझते हैं।

Mahakumbh 2032

महाकुंभ 2025। (Photo Credit: Khabargaon)

महाकुंभ 2025 के तीन अमृत स्नान बीत चुके हैं। राजसी स्नान के बाद अखाड़ों के संत धीरे-धीरे अपने पीठों की ओर लौटने लगते हैं। साधू-संत अपने-अपने धाम लौटने लगते हैं। कुंभ जाने से पहले जो विधायिका चल रही होती है, उसे भंग कर दिया जाएगा और नई विधायिका अगले कुंभ के लिए तय की जाती है। महाकुंभ के सेक्टर 20 में बनाए गए कुछ अखाड़े अपने-अपने ठिकानों की ओर लौट रहे हैं।

प्रमुख अखाड़ों ने रवाना होने से पहले पंच परमेश्वर और नई विधायिका का गठन भी कर लिया है। अब पंच परमेश्वर अगले महाकुंभ 2025 तक काम करेगी। श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी के सचिव महंत जमुना पुरी ने इसके बारे में विस्तार से बात की है। उन्होंने कहा, 'महाकुम्भ से विदा होने से पहले अखाड़ों में अपने नए पंच परमेश्वर या विधायिका चुनने की परम्परा है। प्रयागराज महाकुम्भ में भी इसका निर्वाह करते हुए श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी ने अपनी नई विधायिका का चयन कर लिया।'

किन संतों को मिली कुंभ 2032 की जिम्मेदारी?
महंत जमुना पुरी ने कहा, 'श्री पंचायती अखाड़ा महा निर्वाणी अखाड़े में 8 श्रीमहंत और 8 उपमहंत का चयन किया है। छावनी में धर्म ध्वजा के नीचे नए पंच परमेश्वर का चुनाव सम्पन्न हुआ। इस महाकुम्भ में जिन आठ श्रीमहंत का चयन किया गया है उसमें श्रीमहंत रविंद्र पुरी जी, श्रीमहंत रमेश गिरी जी, श्रीमहंत बंशी पुरी जी, श्रीमहंत विनोद गिरी जी, श्रीमहंत मृत्युंजय भारती जी, श्रीमहंत मनोज गिरी, श्रीमहंत प्रेम पुरी जी और श्रीमहंत गंगा गिरी जी शामिल हैं।'

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महंत जमुना पुरी ने कहा, 'जिन संतो को उपमहंत या कारवारी का चयन हुआ है उसमें दिगम्बर शिव पुरी जी, दिगम्बर रवि गिरी जी , विश्वनाथ पुरी जी, रमाशंकर गिरी जी, मनसुख गिरी हो ब्रह्म नारायण पुरी जी और उमाशंकर गिरी जी शामिल हैं। पुरानी विधायिका के स्थान पर अब यह नई विधायिका अगले कुम्भ तक जिम्मेदारी संभालेगी।'

कैसे निभाई गई अखाड़े की परंपरा?

पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी के संतों ने काशी प्रस्थान के पहले प्रस्थान की अपनी अनुष्ठान की परम्परा का निर्वाह किया। अनुष्ठान के बाद धर्म ध्वजा की तनियां ढीली कर दी गई। अखाड़े के देवता की पूजा की गई। इसके पूर्व अखाड़े के सर्वोच्च पदाधिकारियों का चुनाव हुआ। अखाड़े के सचिव महंत जमुना पुरी बताते हैं कि पंच परमेश्वर काशी के लिए प्रस्थान कर गया है। अखाड़े का पंच परमेश्वर बाबा विश्वनाथ की अंतरग्रही पंचकोसी परिक्रमा करने के बाद महा शिव रात्रि में बाबा विश्वनाथ के दर्शन करेंगे। इसके पश्चात सभी संत अपने अपने स्थान के लिए रवाना हो जाएंगे।

अखाड़ों में चुनाव के नियम क्या होते हैं?
अखाड़ों में चुनाव के अलग अलग नियम हैं। श्रीपंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा 5 साल में पंच परमेश्वर चुनते हैं। वहीं जूना अखाड़ा में 3 और 6 साल में चुनाव होता है। 3 साल में कार्यकारिणी, न्याय से जुड़े साधुओं का और 6 साल में अध्यक्ष, मंत्री, कोषाध्यक्ष का चुनाव किया जाता है। श्रीपंचायती निरंजनी अखाड़ा पूर्ण कुंभ, अर्द्धकुंभ प्रयागराज में छह-छह साल में नई विधायिका चुनते हैं। पंच दशनामी आवाहन अखाड़ा तीन साल में रमता पंच और बाकी छह साल में चुनाव करते हैं। पंचायती आनंद अखाड़ा का छह साल में चुनाव होते हैं। पंच अग्नि अखाड़ा का तीन साल में चुनाव,पंच रामानंदी निर्मोही अणि अखाड़ा का :छह साल में चुनाव होता है।


बिना चुनाव के कैसे होता है अखाड़ों में चुनाव?

कुछ अखाड़ों में चुनाव नहीं होते हैं। पंचायती अखाड़े और बड़ा उदासीन अखाड़े में भी चुनाव नहीं होता है। यहां पंच व्यवस्था नहीं बल्कि चार महंत होते हैं, जो आजीवन पदासीन रहते हैं।पंचायती उदासीन नया अखाड़ा में महंत एक बार बने तो आजीवन रहते हैं। पंचायती निर्मल अखाड़ा में भी चुनाव नहीं होते है। पदाधिकारी स्थाई होते हैं। पंच दिगंबर अणि अखाड़ा चुनाव नहीं होता,स्थाई होते हैं लेकिन उन्हें असमर्थता, विरोध होने पर पंच हटा सकते हैं। पंच रामानंदी निर्वाणी अणि अखाड़ा में एक बार चुने जाने पर आजीवन या जब तक असमर्थ न हो जाएं रहते हैं।

अखाड़ों का संघर्ष क्या है?
अलग-अलग अखाड़ों में हमेशा से संघर्ष रहा है। शैव और वैष्णवों में जंग होती रही है। शाही स्नान के वक्त अखाड़ों की आपसी तनातनी और साधु-संप्रदायों के टकराव खूनी संघर्ष में बदलते रहे हैं। वर्ष 1310 के महाकुंभ में महानिर्वाणी अखाड़े और रामानंद वैष्णवों के बीच हुए झगड़े ने खूनी संघर्ष का रूप ले लिया था। वर्ष 1398 के अर्धकुंभ में तो तैमूर लंग के आक्रमण से कई जानें गई थीं। वर्ष 1760 में शैव सन्यासियों और वैष्णव बैरागियों के बीच संघर्ष हुआ था।

 

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1796 के कुंभ में भी शैव संन्यासी और निर्मल संप्रदाय आपस में भिड़ गए थे। वर्ष 1954 के कुंभ में मची भगदड़ के बाद सभी अखाड़ों ने मिलकर अखाड़ा परिषद का गठन किया। विभिन्न धार्मिक समागमों और खासकर कुंभ मेलों के अवसर पर साधु संतों के झगड़ों और खूनी टकराव की बढ़ती घटनाओं से बचने के लिए 'अखाड़ा परिषद' की स्थापना की गई। इन सभी अखाड़ों का संचालन लोकतांत्रिक तरीके से कुंभ महापर्व के अवसरों पर चुनाव के माध्यम से चुने गए पंच और सचिवगण करते हैं।

अखाड़ों के नियम-कानून क्या हैं?

कुंभ में शामिल होने वाले सभी अखाड़े अपने अलग-नियम और कानून से संचालित होते हैं। यहां जुर्म करने वाले साधुओं को अखाड़ा परिषद सजा देता है। छोटी चूक के दोषी साधु को अखाड़े के कोतवाल के साथ गंगा में पांच से लेकर 108 डुबकी लगाने के लिए भेजा जाता है। डुबकी के बाद वह भीगे कपड़े में ही देवस्थान पर आकर अपनी गलती के लिए क्षमा मांगता है। फिर पुजारी पूजा स्थल पर रखा प्रसाद देकर उसे दोषमुक्त करते हैं।

विवाह, हत्या या दुष्कर्म जैसे मामलों में उसे अखाड़े से निष्कासित कर दिया जाता है। अखाड़े से निकल जाने के बाद ही इन पर भारतीय संविधान में वर्णित कानून लागू होता है। अगर अखाड़े के दो सदस्य आपस में लड़ें-भिड़ें, कोई नागा साधु विवाह कर ले या दुष्कर्म का दोषी हो, छावनी के भीतर से किसी का सामान चोरी करते हुए पकड़े जाने, देवस्थान को अपवित्र करे या वर्जित स्थान पर प्रवेश, कोई साधु किसी यात्री, यजमान से अभद्र व्यवहार करे, अखाड़े के मंच पर कोई अपात्र चढ़ जाए तो उसे अखाड़े की अदालत सजा देती है। अखाड़ों के कानून को मानने की शपथ नागा बनने की प्रक्रिया के दौरान दिलाई जाती है। अखाड़े का जो सदस्य इस कानून का पालन नहीं करता उसे भी निष्काषित कर दिया जाता है।

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