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क्यों भीष्म ने मृत्यु के लिए चुना मकर संक्रांति का दिन? जानिए कारण

हिंदू धर्म में मकर संक्रांति दिन का विशेष महत्व है। आइए जानते हैं मकर संक्रांति दिन से जुड़ी प्रचलित कथाएं और इस दिन का महत्व।

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शैया पर पितामह भीष्म का चित्र।(Photo Credit: Wikimedia Commons)

हिंदू धर्म में संक्रांति व्रत का विशेष महत्व है। बता दें कि देश के विभिन्न हिस्सों संक्रांति को पर्व के रूप में मनाया जाता है। बता दें कि सभी संक्रांतियों में मकर संक्रांति बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। यह पर्व हर वर्ष जनवरी के महीने में मनाया जाता है। यह पर्व सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने और उत्तरायण होने का प्रतीक है। मकर संक्रांति न केवल खगोलीय दृष्टि से, बल्कि आध्यात्मिक दृष्टि से भी अत्यंत पवित्र माना जाता है। आइए जानते हैं, मकर संक्रांति की कथा, पूजा महत्व और विधि।

मकर संक्रांति 2025 कब?

वैदिक पंचांग के अनुसार, मकर संक्रांति का क्षण 14 जनवरी सुबह 09 बजकर 03 मिनट पर है। ऐसे में यह पर्व इसी दिन मनाया जाएगा। बता दें कि इस दिन मकर संक्रांति पुण्य काल सुबह 09 बजकर 03 मिनट से शाम 05 बजकर 46 मिनट तक रहेगा। यह समय पूजा पाठ के लिए बहुत ही शुभ होता है। 

 

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मकर संक्रांति की कथा

मकर संक्रांति से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं हैं, जिनमें से एक प्रमुख कथा महाभारत काल से संबंधित है। यह कहा जाता है कि भीष्म पितामह ने अपनी मृत्यु के लिए मकर संक्रांति का दिन चुना था। उन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था और उत्तरायण काल को शुभ मानते हुए इस दिन उन्होंने अपने प्राण त्यागे। मान्यता है कि उत्तरायण में मृत्यु प्राप्त करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।

 

एक अन्य कथा के अनुसार, मकर संक्रांति के दिन भगवान विष्णु ने असुरों का वध करके धरती को उनके आतंक से मुक्त किया था। श्री हरि ने इन असुरों के मस्तिष्क को मंदार पर्वत में दबा दिया, जिससे धर्म और सत्य की विजय स्थापित हुई। इसी कारण इस दिन भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व है।

 

इसके अलावा, मकर संक्रांति का संबंध भगवान सूर्य से भी है। इस दिन सूर्य देव अपने पुत्र शनि देव के घर जाते हैं, जो मकर राशि के स्वामी हैं। ऐसा माना जाता है कि पिता और पुत्र के इस मिलन से धरती पर खुशहाली और समृद्धि आती है।

मकर संक्रांति का खगोलीय महत्व

मकर संक्रांति खगोलीय दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इस दिन से सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण होता है। उत्तरायण को शुभ और सकारात्मक ऊर्जा का समय माना गया है। इस समय फसलों की कटाई होती है, जो किसानों की सालभर की मेहनत होती है ।

 

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पूजा का महत्व और विधि

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मकर संक्रांति पर पूजा और दान का विशेष महत्व है। इस दिन गंगा, यमुना, नर्मदा, गोदावरी और कावेरी जैसी पवित्र नदियों में स्नान करना अत्यंत पुण्यकारी माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि देवी गंगा इसी दिन भगीरथ की तपस्या के फल के रूप में स्वर्ग से धरती पर आई थी।

 

इस विशेष दिन पर सूर्य देव की पूजा का विशेष महत्व है। प्रातः स्नान के बाद तांबे के लोटे में जल, लाल पुष्प, चावल और गुड़ मिलाकर सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। मान्यता है कि सूर्य देव को अर्घ्य देने से जीवन में सुख-समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।

 

इस दिन तिल और गुड़ का दान तथा सेवन करना विशेष रूप से शुभ माना जाता है। तिलकुट, लड्डू और खिचड़ी बनाने की परंपरा भी इस दिन का हिस्सा है। तिल को पवित्रता और गुड़ को मिठास का प्रतीक माना गया है। मान्यता है कि इनके दान से पापों का नाश और पुण्य की वृद्धि होती है।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं। Khabargaon इसकी पुष्टि नहीं करता। 

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