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मणिबंध शक्तिपीठ: वह स्थान जहां गिरी थी देवी सती की कलाई

51 शक्तिपीठों में राजस्थान के पुष्कर में स्थित मणिबंध शक्तिपीठ का अपना एक विशेष स्थान है। आइए जानते हैं इस शक्तिपीठ का इतिहास और महत्व।

Image of Mani Bandh Shakipeeth

मणिबंध शक्तिपीठ(Photo Credit: manibandh.com)

भारत के विभिन्न हिस्सों में शक्तिपीठ उपस्थित हैं, जिनका हिन्दू धर्म में खास मान्यता है। बता दें कि पौराणिक कथा के अनुसार, देवी सती के अंग जहां-जहां गिरे थे, वहां शक्तिपीठों की स्थापना हुई। इन्हीं पवित्र स्थलों में से एक है मणिबंध शक्तिपीठ, जो राजस्थान के अजमेर जिले में पुष्कर के पास स्थित है। मान्यता है कि देवी सती की कलाई (मणिबंध) यहां गिरी थी, जिससे इस स्थान का नाम मणिबंध शक्तिपीठ पड़ा। यह मंदिर श्रद्धालुओं के लिए आस्था और शक्ति का केंद्र है और हिंदू धर्म में इसका विशेष महत्व है।

मणिबंध शक्तिपीठ से जुड़ी पौराणिक कथा

मणिबंध शक्तिपीठ का उल्लेख देवी भागवत पुराण और कई अन्य धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। कथा के अनुसार, जब प्रजापति दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया, तो उन्होंने अपने दामाद भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया। देवी सती, जो दक्ष की पुत्री थीं, उन्होंने इस अपमान को सहन नहीं किया और बिना बुलाए ही अपने पिता के यज्ञ में पहुंच गईं।

 

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जब वहां उन्होंने देखा कि उनके पति भगवान शिव का अपमान किया जा रहा है, तो उन्होंने अत्यंत क्रोध में यज्ञ कुंड में कूदकर आत्मदाह कर लिया। यह देखकर भगवान शिव अत्यंत दुखी और क्रोधित हो गए। उन्होंने वीरभद्र को भेजकर यज्ञ को नष्ट करवाया और दक्ष का सिर काट दिया।

 

इसके बाद, भगवान शिव सती के जले हुए शरीर को उठाकर तीनों लोकों में घूमने लगे। यह देखकर समस्त देवता चिंतित हो गए और उन्होंने भगवान विष्णु से प्रार्थना की कि वे शिव के इस शोक को समाप्त करें। तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के विभिन्न अंगों को काट दिया। जहां-जहां देवी सती के शरीर के अंग गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठों की स्थापना हुई। मान्यता है कि देवी सती की कलाई (मणिबंध) इसी स्थान पर गिरी थी, इसलिए इस स्थान को मणिबंध शक्तिपीठ कहा जाता है।

मणिबंध शक्तिपीठ का धार्मिक महत्व

इस शक्तिपीठ में देवी को गायत्री देवी या महागायत्री के रूप में पूजा जाता है। देवी के साथ भगवान रुद्र (शिव) भी पूजे जाते हैं, जो यहां अत्मलिंगेश्वर के रूप में स्थापित हैं। ऐसा कहा जाता है कि इस स्थान पर सच्चे मन से मांगी गई मनोकामनाएं अवश्य पूरी होती हैं। भक्त नवरात्रि और विशेष पर्वों पर यहां देवी का आशीर्वाद लेने आते हैं। इस शक्तिपीठ में देवी को श्रृंगार और पूजा अर्पित करने से विशेष फल प्राप्त होता है। कहा जाता है कि इस मंदिर में देवी की विशेष कृपा रहती है और यहां आने वाले भक्तों को आध्यात्मिक शांति मिलती है।

मणिबंध शक्तिपीठ का इतिहास और स्थापत्य

मणिबंध शक्तिपीठ का मंदिर प्राचीन राजस्थानी स्थापत्य कला का सुंदर उदाहरण है। यहां देवी की मुख्य प्रतिमा एक गुफानुमा मंदिर में स्थापित है। मंदिर के चारों ओर सुंदर नक्काशीदार स्तंभ और मंडप बने हुए हैं। मंदिर का निर्माण प्राचीन काल में किया गया था, लेकिन समय के साथ इसे कई बार पुनर्निर्मित किया गया। इसके राजस्थानी शासकों और श्रद्धालुओं ने इस मंदिर का विस्तार और जीर्णोद्धार करवाया।

 

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मणिबंध शक्तिपीठ में दो प्रमुख मूर्तियां हैं। पहली मूर्ति देवी सती की है, जिन्हें यहां गायत्री देवी के रूप में पूजा जाता है। दूसरी मूर्ति भगवान शिव की है, जिन्हें सर्वानंद (सबको आनंद देने वाले) कहा जाता है। गायत्री का अर्थ सरस्वती होता है और सरस्वती देवी को हिंदू धर्म में ज्ञान की देवी माना जाता है। इसलिए, यह मंदिर गायत्री मंत्र साधना के लिए उत्तम स्थान माना जाता है। पुष्कर झील और ब्रह्मा मंदिर इस स्थान के पास होने से यहां श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है।

मणिबंध शक्तिपीठ में प्रमुख त्योहार और आयोजन

नवरात्रि के दौरान इस मंदिर में विशेष पूजन, भजन-कीर्तन और अनुष्ठान किए जाते हैं। इस दौरान श्रद्धालु देवी को चुनरी, नारियल और प्रसाद अर्पित करते हैं। इसके साथ श्रावण के महीने में भगवान शिव की विशेष पूजा की जाती है। इस दौरान कांवड़ यात्रा और विशेष रुद्राभिषेक का आयोजन किया जाता है। मकर संक्रांति और पूर्णिमा तिथि पर यहां विशेष हवन, आरती और भक्तों के लिए भंडारे का आयोजन किया जाता है।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।

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