हिंदू धर्म में भगवान शिव और माता पार्वती से जुड़ी कई कथाएं प्रसिद्ध हैं, जिनसे जुड़ी मान्यताएं और तीर्थ स्थल भी मौजूद हैं। इन्हीं में हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में स्थित मणिकर्ण शिव मंदिर भी एक है। यह मंदिर पार्वती घाटी में व्यास और पार्वती नदियों के संगम पर स्थित है, जिससे जुड़ी कई कथाएं प्रचलित हैं। धार्मिक दृष्टि से भी इस मंदिर को विशेष महत्व प्राप्त है। आइए जानते हैं, इस स्थान से जुड़ी मान्यताएं, पौराणिक कथा और रोचक बातें।
मणिकर्ण मंदिर की पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान शिव और माता पार्वती मणिकर्ण क्षेत्र में भ्रमण कर रहे थे। वहां माता पार्वती ने पार्वती नदी के किनारे टहलते समय अपने कान की बाली (कर्णफूल) उतारकर नदी के पास रख दी। वह बाली नदी में गिरकर पाताल लोक में पहुंच गई, जहां शेषनाग ने उसे अपने पास रख लिया। जब बाली नहीं मिली, तो भगवान शिव ने अपने गणों को उसे खोजने के लिए भेजा, लेकिन वे असफल रहे।
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इससे भगवान शिव क्रोधित हो गए और उन्होंने अपनी तीसरा नेत्र खोल दिया, जिससे वातावरण में उथल-पुथल मच गई और नदियों का पानी उबलने लगा। शेषनाग ने भगवान शिव के क्रोध को शांत करने के लिए बाली को वापस कर दिया। इस घटना के बाद से इस स्थान का नाम 'मणिकरण' पड़ा, जिसका अर्थ 'कान की बाली' है।
मणिकर्ण शिव मंदिर से जुड़ी मान्यताएं
गर्म पानी के स्रोत: मंदिर के आसपास कई गर्म पानी के स्रोत हैं, जिनके बारे में मान्यता है कि ये भगवान शिव के क्रोध से उत्पन्न हुए थे। इन स्रोतों का पानी इतना गर्म है कि यहां भक्त चावल और अन्य खाद्य पदार्थ पका सकते हैं। कहा जाता है कि इस पानी में स्नान करने से चर्म रोग और गठिया जैसी बीमारियों में लाभ मिलता है।
सिख धर्म से संबंध: मणिकर्ण न सिर्फ हिंदुओं के लिए, बल्कि सिखों के लिए भी एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। यहां गुरु नानक देव जी से संबंधित एक गुरुद्वारा भी स्थित है, जिसे मणिकरण साहिब के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि गुरु नानक देव जी ने यहां अपने शिष्यों के साथ लंगर का आयोजन किया था, जिसमें गर्म पानी के स्रोतों का उपयोग किया गया था।
मनु से संबंधित कथा: एक अन्य मान्यता के अनुसार, महाप्रलय के बाद मनु ने इसी स्थान पर मानव जीवन की पुनः स्थापना की थी, जिससे यह स्थान और भी पवित्र माना जाता है।
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मणिकर्ण शिव मंदिर के बारे में 5 रोचक बातें
- गुरुद्वारा और मंदिर का सह-अस्तित्व: मणिकरण में एक ही स्थान पर शिव मंदिर और मणिकर्ण साहिब गुरुद्वारा स्थित हैं, जो हिंदू और सिख धर्मों के बीच सद्भावना का प्रतीक हैं।
- गर्म पानी के कुंड: मंदिर परिसर में स्थित गर्म पानी के कुंडों में भक्त स्नान करते हैं। इन कुंडों का पानी प्राकृतिक रूप से गर्म होता है, जिसका तापमान इतना ज्यादा होता है कि इसमें भोजन भी पकाया जा सकता है।
- भूवैज्ञानिक रहस्य: वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, इन गर्म पानी के स्रोतों का कारण अभी तक पूरी तरह स्पष्ट नहीं हो पाया है, जो इसे एक भूवैज्ञानिक रहस्य बनाता है।
- पार्वती नदी का प्रवाह: मंदिर के पास से बहने वाली पार्वती नदी का तेज प्रवाह और उसके आसपास की प्राकृतिक सुंदरता पर्यटकों को आकर्षित करती है।
- धार्मिक उत्सव: मणिकरण में महाशिवरात्रि और बैसाखी जैसे त्योहार बड़े धूमधाम से मनाए जाते हैं, जिसमें दूर-दूर से श्रद्धालु शामिल होते हैं।
- मणिकरण शिव मंदिर अपनी पौराणिक कथाओं, प्राकृतिक चमत्कारों और धार्मिक महत्व के कारण श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए एक प्रमुख आकर्षण का केंद्र है। यहां की आध्यात्मिकता और प्राकृतिक सुंदरता का अनुभव करने के लिए हर वर्ष हजारों लोग यहां आते हैं।
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