नवरात्रि के पावन पर्व पर श्रद्धालु पूरे उत्साह के साथ मां दुर्गा की पूजा-अर्चना में जुट गए हैं। इस अवसर पर घरों और मंदिरों में कलश स्थापना का अनुष्ठान किया जाता है, जिसे देवी दुर्गा का प्रतीक माना जाता है। कलश में जल, आम की पत्तियां और नारियल रखकर इसे सजाया जाता है और मंत्रों के जाप से पूजन संपन्न होता है। कलश स्थापना केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह सकारात्मक ऊर्जा, शक्ति और समृद्धि का प्रतीक भी माना जाता है।
कलश स्थापना करने से घर में सुख-शांति बनी रहती है और पूरे नवरात्रि के दौरान पूजा का मार्ग प्रशस्त होता है। भक्त श्रद्धा और भक्ति के साथ कलश स्थापना कर मां दुर्गा के आशीर्वाद की कामना करते हैं। इस अनुष्ठान के माध्यम से नौ दिवसीय नवरात्रि पर्व की शुरुआत होती है और यह पूरे पर्व को सफल और फलदायी बनाने में सहायक माना जाता है।
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शारदीय नवरात्रि शुभ मुहूर्त
- नवरात्रि तिथि का शुभारंभ: 22 सितंबर, सोमवार, रात 01:23 मिनट से
- नवरात्रि की प्रथम तिथि का समापन: 23 सितंबर, मंगलवार, दोपहर 02:55 मिनट पर
- शुक्ल योग: सुबह से लेकर शाम 07:50 मिनट तक
- ब्रह्म योग: शाम 07:51 मिनट से पूरी रात
- उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र: सुबह से दोपहर 11:20 मिनट तक
- हस्त नक्षत्र: सुबह 11:24 मिनट से पूरे दिन
कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त
- अमृत-सर्वोत्तम मुहूर्त: सुबह में 06:09 मिनट से सुबह 07:40 मिनट तक
- शुभ-उत्तम मुहूर्त: सुबह 09:11 मिनट से सुबह 10:43 मिनट तक
- कलश स्थापना अभिजीत मुहूर्त: सुबह 11:49 मिनट से दोपहर 12:38 मिनट तक
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कलश स्थापना के लिए सामग्री
- तांबे, पीतल या मिट्टी का कलश
- पानी
- जल (गंगा जल सर्वोत्तम)
- 5 या 7 अलग-अलग प्रकार के दाने (चावल, गेहूं, जौ, उड़द, मूंग आदि)
- आम की पत्तियां (5 पत्तियां वाली छोटी डाली, पत्तों में छेद नहीं होना चाहिए)
- नारियल
- फूल और हल्दी
- सिंदूर और कुंकुम
- बेलपत्र और अक्षत (चावल के दाने)
कलश स्थापना की विधि
- घर के पूजा स्थान को साफ करें और वहां चौकठ तैयार करें।
- कलश में पानी भरें और उसमें थोड़ी हल्दी, चावल और अक्षत डालें।
- कलश के ऊपर आम की पत्तियां रखें।
- पत्तियों के ऊपर नारियल रखें और उसे लाल कपड़े या सिंदूर से सजाएं।
- कलश को पूजा स्थान पर रखें और उसके चारों ओर हल्दी, रंगोली और फूल डालकर वातावरण पवित्र बनाएं।
- कलश की स्थापना करते समय देवी दुर्गा के मंत्र का उच्चारण करें।
- इस कलश को नवरात्रि के 9 दिनों तक पूजा स्थल पर रखा जाता है।