शारदीय नवरात्रि के पावन पर्व में देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की विधिवत पूजा होती है। यह पर्व पूरे देशभर में श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जा रहा है। मान्यता है कि नवरात्रि के दौरान व्रत, उपवास और भक्ति से साधक को मां दुर्गा की विशेष कृपा प्राप्त होती है। नवरात्रि की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह केवल साधना का पर्व नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि और शक्ति के जागरण का अवसर भी है। इसी कड़ी में व्रत की पूर्णता के लिए उद्यापन की विशेष परंपरा भी जुड़ी हुई है।
नवरात्रि का व्रत छोड़ने से पहले नवरात्रि के दौरान उद्यापन को विधि विधान से करना आवश्यक माना गया है। प्रेमनारायण शास्त्री के मुताबिक, उद्यापन का हवन विशेष रूप से अष्टमी के दिन किया जाता है। इसमें कलश पूजन, हवन, कन्या पूजन और दान जैसे विशेष विधि-विधान पूरे किए जाते हैं। मान्यता है कि उद्यापन करने से देवी दुर्गा की कृपा स्थायी रूप से बनी रहती है और व्रत का पूरा फल मिलता है।
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उद्यापन की विधि
सामग्री
- कलश (जल सहित)
- आम के पत्ते
- नारियल
- देवी की मूर्ति या चित्र
- साफ कपड़ा और पूजा स्थान
- रोली, चावल (अक्षत)
- फूल
- धूप, दीप, अगरबत्ती
- नैवेद्य / भोग (फल, मीठा आदि)
- हवन सामग्री (गुड़, तिल, गंध, घी आदि)
- कन्याएं (अगर कन्या पूजन हो)
- दक्षिणा (दान) और प्रसाद
इस विधि के तहत करें पूजा
शुभ मुहूर्त चुनना
उद्यापन के लिए शुभ समय का चयन करें। यह आमतौर पर अष्टमी को किया जाता है।
पंचोपचार / षोडशोपचार पूजा
देवी को पानी (पाद्य), आचमन, वस्त्र, गंध, पुष्प, धूप, दीप, अक्षत, नैवेद्य आदि अर्पित करें। प्रत्येक अर्पण के साथ मंत्र जप करें जैसे 'ॐ दुं दुर्गायै नमः'
कन्या पूजन करें
- अगर उद्यापन के समय कन्या पूजन किया जाता है:
- नौ कन्याओं को आमंत्रित करें।
- उनके पैर धोएं, तिलक लगाएं, उन्हें पूजा स्थल पर बैठाएं।
- रोली, अक्षत, मौली (रक्षा) बांधें।
- उन्हें भोजन परोसें जिसमें पूरी, हलवा, चने आदि शामिल हो सकते हैं।
- भोजन के बाद उन्हें दक्षिणा और उपहार दें।
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हवन
- पूजा के बाद हवन करें।
- हवन कुंड लगाएं, उसमें अग्नि प्रज्वलित करें।
- देवताओं के नाम से आहुति दें जैसे 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे स्वाहा'
- कई बार मंत्र जप करते हुए घी, तिल आदि सामग्री अग्नि में सुनें।
आरती
हवन के अंत में देवी की आरती करें। दीपक घुमाते हुए भजन-गीत या आरती पाठ करें। फिर प्रसाद वितरित करें।
दान और दक्षिणा
ब्राह्मणों या विद्वानों को भोजन करवाकर दक्षिणा दें। उन्हें वस्त्र, सामग्री या अन्य दान दें।
व्रत समापन / क्षमाप्रार्थना
अंत में देवी से क्षमा याचना करें अगर पूजा में कोई भूल हुई हो। व्रत का समापन करें और सभी को शुभकामनाएं दें।