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लामा और पुजारी में क्या अंतर होता है?

हिंदू धर्म में जिस तरह पुजारी को महत्व दिया जाता है, वैसे ही बौद्ध धर्म में लामा को महत्व दिया जाता है। आइए जानते हैं पुजारी और लामा में क्या अंतर है और यह उपाधि कैसे मिलती है।

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प्रतीकात्मक तस्वीर: Photo Credit: AI

धर्म और आस्था की परंपराओं में लामा और पुजारी दोनों की अपनी-अपनी विशिष्ट पहचान है। तिब्बती बौद्ध धर्म में लामा को आध्यात्मिक गुरु और साधना का मार्गदर्शक माना जाता है। उनका काम सिर्फ पूजा-पाठ तक सीमित नहीं होता, बल्कि वे ध्यान, बौद्ध दर्शन और शिक्षा के जरिए समाज को सही दिशा देने का काम करते हैं। दलाई लामा और पंचेन लामा जैसे पद इस परंपरा की गहरी जड़ों और महत्त्व को दर्शाते हैं। बौद्ध धर्म में लामा को जीवित गुरु का दर्जा दिया जाता है, जिनका उद्देश्य मानवता को करुणा, शांति और आत्मज्ञान की ओर ले जाना होता है।

 

वहीं पुजारी हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण स्तंभ माने जाते हैं। वे मंदिरों में देवताओं की पूजा-अर्चना करते हैं और वैदिक मंत्रों व शास्त्रीय विधियों के अनुसार धार्मिक अनुष्ठान संपन्न कराते हैं। विवाह, यज्ञ, गृह प्रवेश और अन्य संस्कारों में पुजारी की भूमिका अनिवार्य होती है। हिंदू परंपरा में पुजारी को देवता और भक्त के बीच का सेतु (पुल) माना जाता है, जो आस्था को विधि-विधान के साथ जोड़ता है। 

 

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लामा कौन होते हैं?

धर्म:

  • लामा शब्द मुख्य रूप से बौद्ध धर्म (विशेषकर तिब्बती बौद्ध धर्म) में इस्तेमाल किया जाता है।
  • यह संस्कृत के शब्द गुरु या आचार्य का तिब्बती रूप माना जाता है।

भूमिका:

  • लामा बौद्ध मठ (मठों/मंदिरों) में धर्मगुरु, साधु या आध्यात्मिक शिक्षक होते हैं।
  • ये बौद्ध धर्म के सिद्धांतों को पढ़ाते हैं, साधना करते हैं और साधकों को मार्गदर्शन देते हैं।
  • कभी-कभी लामा को बुद्ध या बोधिसत्व के प्रतिनिधि के रूप में भी देखा जाता है।
  • उपाधि कैसे मिलती है: बौद्ध धर्म की परंपराओं के अनुसार, लामा बनने के लिए विशेष प्रशिक्षण, लंबे ध्यान-साधना (रिट्रीट) और ग्रंथों का अध्ययन आदि आवश्यक होता है।

विशेषता:

  • लामा केवल पूजा-पाठ ही नहीं करते, बल्कि ध्यान, दर्शन और शिक्षा में भी योगदान देते हैं।
  • तिब्बती संस्कृति में दलाई लामा और  पंचेन लामा  जैसे पद बहुत सम्मानित होते हैं।

कहां रहते हैं:

  • मठ, ध्यान केंद्र, बौद्ध विद्यालय में रहते हैं। 

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पुजारी कौन होते हैं?

धर्म:

  • पुजारी शब्द मुख्य रूप से हिंदू धर्म में इस्तेमाल होता है।
  • पुजारी मंदिरों में देवताओं की पूजा, आरती और धार्मिक अनुष्ठान कराते हैं।

भूमिका:

  • पुजारी का काम होता है देवता की मूर्ति या विग्रह की पूजा-अर्चना करना, मंत्रोच्चार करना और भक्तों के लिए अनुष्ठान संपन्न करना।
  • विवाह, गृह प्रवेश और यज्ञ आदि सभी हिंदू अनुष्ठानों में पुजारी की भूमिका बहुत अहम होती है।
  • कैसे मिलती है उपाधि: पुजारी होने के लिए सामान्य रूप से ब्राह्मण या उस क्षेत्र की परंपरा, मंदिर प्रबंधन, ग्रंथों की जानकारी और हिंदू धर्म के संस्कारों का ज्ञान आदि जरूरी होता हैं।

विशेषता:

  • पुजारी आमतौर पर वैदिक मंत्र और शास्त्रों का ज्ञान रखते हैं।
  • उनका काम मुख्य रूप से धार्मिक संस्कारों और मंदिर पूजा से जुड़ा होता है। ये लोग दार्शनिक शिक्षा नहीं जोड़ा जाता है।

कहां रहते हैं:

  • मंदिर, धार्मिक कार्यक्रम और भक्तों से सीधा संपर्क रखते हैं

पुजारी और लामा में मुख्य अंतर

धर्म:

  • लामा - बौद्ध धर्म (विशेषकर तिब्बती परंपरा)
  • पुजारी - हिंदू धर्म

भूमिका:

  • लामा - आध्यात्मिक गुरु, साधना और शिक्षा देने वाले, ध्यान और बौद्ध दर्शन पर जोर।
  • पुजारी - देवताओं की पूजा-अर्चना करने वाले, अनुष्ठान और संस्कार कराने वाले।

धार्मिक महत्व:

  • लामा - बौद्ध धर्म में जीवित गुरु या आध्यात्मिक मार्गदर्शक माने जाते हैं।
  • पुजारी - देवताओं और भक्तों के बीच सेतु का काम करने वाले माने जाते हैं।
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