मध्यप्रदेश के भोपाल की कोलार रोड पर पहाड़ियों में स्थित देवी सिद्धिदात्री मंदिर, जिसे स्थानीय लोग जीजीबाई माता मंदिर या पहाड़ी वाली माता मंदिर के नाम से भी जानते हैं। यह मंदिर अपने अनूठे और विशेष रीति-रिवाज के लिए प्रसिद्ध है। यह मंदिर देवी सिद्धिदात्री को समर्पित है, इस मंदिर में देवी की पूजा उनके बाल स्वरूप में की जाती है। मान्यता के अनुसार, इस मंदिर में भक्त देवी को बेटी की तरह पूजते हैं। भक्तों का विश्वास है कि यहां माता की भक्ति करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं और परिवार में सुख-शांति और समृद्धि आती है।
मंदिर की सबसे अनोखी परंपरा यह है कि यहां भक्त देवी को फूल-माला के बजाय जूते-चप्पल, कपड़े और श्रृंगार के सामान अर्पित करते हैं। स्थानीय लोगों के अनुसार, बाद में ये चढ़ावे जरूरतमंद लड़कियों में बांट दिए जाते हैं। इस तरह यह मंदिर केवल भक्ति का केन्द्र ही नहीं, बल्कि सामाजिक सेवा और परोपकार का प्रतीक भी बन जाता है।
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पौराणिक मान्यता
इस मंदिर से जुड़ी कोई बहुत प्रगट पौराणिक कथा नहीं है। मंदिर से जुड़ी कोई विशेष कथा ग्रंथों में नहीं मिलती है। हालांकि, वहां के स्थानीय लोगों के मुताबिक, इस मंदिर से जुड़ी एक कथा प्रचलित है, जिसके अनुसार, मंदिर की स्थापना से पहले, मंदिर के संस्थापक को सपने में देवी ने निर्देश दिया कि 'कोई भी लड़की नंगे पैर न चले।' स्थानीय लोगों के ने बताया कि देवी की इन्हीं बातों से प्रेरित होकर मंदिर में लोग जूते/चप्पल और श्रृंगार के सामानों को चढ़ावे के रूप में चढ़ाते हैं।
मंदिर में यह परंपरा करीब 30 वर्षों से चल रही है। मंदिर के पुजारी ने बताया कि यहां भक्त विदेशों से देवी के लिए सैंडल और चप्पल भेजते हैं। माता को चप्पल चढ़ाने के पीछे कहानी बताते हुए मंदिर के पुजारी ने कहा कि यहां मूर्ति स्थापना के साथ शिव-पार्वती विवाह कराया गया था, इसमें देवी का कन्यादान किया गया था। तब से वहां के लोग देवी सिद्धिदात्री को बेटी मानकर पूजा करते हैं और आम लोगों की तरह बेटी की हर इच्छा को पूरी करते हैं। पुजारी के अनुसार, वह एक बेटी की तरह मां सिद्धिदात्री की देखभाल करते हैं।

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मंदिर में क्या-क्या चढ़ाया जाता है
- इस मंदिर में पारंपरिक प्रसादों के अतिरिक्त भक्त माता को ये चीजें चढ़ाते हैं
- जूते-चप्पल / सैंडलें नए सामान: मंदिर में चढ़ाने के लिए विशेषकर बच्चों की चप्पलें मान्य होती हैं और वयस्कों के जूते मंदिर परिसर में एक बॉक्स में रखे जाते हैं। बाद में यह सब जरूरतमंद लड़कियों में बांट दिए जाते हैं।
- कपड़े - माता को दिन में दो-तीन बार नए कपड़े पहनाए जाते हैं।
- श्रृंगार संबंधी सामान - छाता, चश्मा, कंघा, घड़ी, इत्र आदि भी मंदिर के अंदर चढ़ाए जाते हैं।
मंदिर से जुड़ी मान्यताएं और विशेषताएं
- भक्तों की मान्यता है कि देवी सिद्धिदात्री के इस मंदिर में मनोकामनाएं पूरी करती हैं। जो सच्चे मन से चप्पल-जूते या अन्य सामान चढ़ाते हैं, उनकी इच्छाएं पूरी होती हैं।
- इस मंदिर में देवी को बेटी की तरह पूजा जाता है मंदिर में देवी की बाल स्वरूप प्रतिमा होने के वजह भक्त उनसे उसी तरह का भावनात्मक जुड़ाव रखते हैं जैसे अपनी बेटी से करते हैं।
- अनूठी परंपरा: अधिकांश मंदिरों में भक्त जूते-चप्पल मंदिर परिसर में बाहर उतार देते हैं लेकिन इस मंदिर में भक्त जूते चढ़ाते हैं, यानी उन्हें देवी को समर्पित करते हैं।
- चढ़ावे में जो कपड़े और अन्य सामान आते हैं, उन्हें बाद में जरूरतमंदों तक पहुंचाया जाता है। यह मंदिर की सामाजिक और धर्मनिष्ठ परंपरा है।
- मंदिर में दर्शन के लिए 300 सीढ़ियां चढ़कर पहाड़ों पर जाना पड़ता है