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देवी कुष्मांडा: बीज मंत्र से लेकर आरती तक, जानें सबकुछ

नवरात्रि के चौथे दिन देवी दुर्गा के कुष्मांडा स्वरूप की पूजा की जाती है। आइए जानते है देवी कुष्मांडा का बीज मंत्र, प्रमुख तीर्थस्थल और आरती।

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प्रतीकात्मक तस्वीर: Photo Credit: AI

नवरात्रि का चौथा दिन मां दुर्गा के कुष्मांडा स्वरूप के नाम समर्पित होता है। मां कुष्मांडा को ब्रह्मांड की सृष्टिकर्ता माना जाता है और उनके आठ हाथों में अमृत कलश, गदा, कमल, धनुष-बाण, जपमाला और अन्य शुभ प्रतीक होते हैं। मान्यता के अनुसार, देवी दुर्गा का यह स्वरूप भक्तों को स्फूर्ति, स्वास्थ्य, ऊर्जा और समृद्धि प्रदान करता है। देशभर के कई प्रमुख शक्तिपीठों और मंदिरों में इस दिन विशेष पूजा-अर्चना होती है। मान्यता के अनुसार, देवी कुष्मांडा को भोग के रूप में मीठा व्यंजन चढ़ाया जाता है।  

 

वैष्णो देवी (जम्मू-कश्मीर), अष्टभुजा देवी मंदिर (मिर्जापुर), काली बाड़ी मंदिर (कोलकाता) और विंध्याचल शक्ति पीठ इस दिन मां कुष्मांडा के आराधना के लिए प्रमुख केंद्र माने जाते हैं। पूजा के दौरान भक्त 'ॐ देवी कुष्माण्डायै नमः' मंत्र का जाप करते हैं और आरती के माध्यम से मां से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। मान्यता है कि मां कुष्मांडा की भक्ति से न केवल जीवन में सुख-समृद्धि आती है, बल्कि सभी प्रकार के संकट और बाधाएं भी दूर हो जाती हैं।

 

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देवी कुष्मांडा से जुड़े प्रमुख तीर्थ स्थल

  • देवी कुष्मांडा दुर्गा का चौथा स्वरूप हैं और इनकी पूजा नवरात्रि के चौथे दिन होती है।
  • वैष्णो देवी धाम (कटरा, जम्मू-कश्मीर) – यहां मां कुष्मांडा का विशेष पूजन किया जाता है।
  • काली बाड़ी मंदिर (कोलकाता, पश्चिम बंगाल) – नवरात्रि पर देवी के इस स्वरूप की आराधना का खास महत्व है।
  • अष्टभुजा देवी मंदिर (मिर्जापुर, उत्तर प्रदेश) – यहां देवी कुष्मांडा के स्वरूप की विशेष पूजा होती है।
  • उज्जैन और विंध्याचल शक्ति पीठ – दुर्गा के नौ स्वरूपों के साथ यहां देवी कुष्मांडा की भी आराधना होती है।

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देवी कुष्मांडा की विशेषता

  • मान्यता है कि ब्रह्मांड की उत्पत्ति मां कुष्मांडा की हंसी से हुई थी, इसलिए इन्हें ब्रह्मांड की सृष्टिकर्ता कहा जाता है।
  • धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, देवी कुष्मांडा को अष्टभुजा देवी भी कहा जाता है, क्योंकि इनके आठ हाथ हैं और हर हाथ में अमृत कलश, धनुष, कमंडल, कमल, गदा, चक्र, धनुष-बाण और जपमाला होती है।
  • मान्यता है कि सूर्य मंडल में निवास करने वाली देवी का तेज सूर्य के समान है और उनकी पूजा से जीवन में स्वास्थ्य, दीर्घायु और शक्ति की प्राप्ति होती है।

मां कुष्मांडा की पूजा के मंत्र

बीज मंत्र

ॐ देवी कुष्माण्डायै नमः।

 

ध्यान मंत्र

सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कुष्माण्डा शुभदास्तु मे।।

 

स्तुति मंत्र

या देवी सर्वभूतेषु मां कुष्मांडा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

मां कूष्मांडा की आरती

कूष्माण्डा जय जग सुखदानी।
मुझ पर दया करो महारानी॥

पिङ्गला ज्वालामुखी निराली।
शाकम्बरी मां भोली भाली॥

लाखों नाम निराले तेरे।
भक्त कई मतवाले तेरे॥

भीमा पर्वत पर है डेरा।
स्वीकारो प्रणाम ये मेरा॥

सबकी सुनती हो जगदम्बे।
सुख पहुंचती हो मां अम्बे॥

तेरे दर्शन का मैं प्यासा।
पूर्ण कर दो मेरी आशा॥

मां के मन में ममता भारी।
क्यों ना सुनेगी अरज हमारी॥

तेरे दर पर किया है डेरा।
दूर करो मां संकट मेरा॥

मेरे कारज पूरे कर दो।
मेरे तुम भण्डारे भर दो॥

तेरा दास तुझे ही ध्याए।
भक्त तेरे दर शीश झुकाए॥

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