7 मई 2025 को, भारत द्वारा पाकिस्तान और PoK में नौ आतंकी कैम्प पर 'ऑपरेशन सिंदूर' के तहत सैन्य कार्रवाई की गई। इसके चलते क्षेत्र में सुरक्षा चिंताओं को देखते हुए करतारपुर कॉरिडोर को अस्थायी रूप से बंद कर दिया गया।
इस कारण कई श्रद्धालु जो बुधवार सुबह दर्शन के लिए पहुंचे थे, उन्हें लौटने के लिए कहा गया। यह अस्थायी रोक सुरक्षा कारणों से लगाई गई है। बता दें कि सिख धर्म में करतारपुर साहिब का खास स्थान है।
यह भी पढ़ें: सौंदर्य, सुहाग से सौभाग्य तक, 'सिंदूर' की धार्मिक मान्यता क्या है?
करतारपुर साहिब कॉरिडोर की शुरुआत कब हुई
भारत और पाकिस्तान के बीच करतारपुर कॉरिडोर की शुरुआत 9 नवंबर 2019 को हुई। यह कॉरिडोर गुरु नानक देव जी की 550वीं जयंती के अवसर पर शुरू किया गया था। इसका उद्देश्य भारतीय श्रद्धालुओं को बिना वीजा पाकिस्तान स्थित करतारपुर गुरुद्वारे में जाने की अनुमति देना था।
यह कॉरिडोर भारत के डेरा बाबा नानक (गुरदासपुर, पंजाब) को पाकिस्तान के करतारपुर साहिब से जोड़ता है। इसके जरिए रोजाना 5,000 तीर्थयात्री पाकिस्तान में प्रवेश कर सकते हैं, बशर्ते उन्होंने पहले से ऑनलाइन पंजीकरण किया हो।
करतारपुर साहिब का इतिहास
करतारपुर साहिब सिख धर्म के लिए एक अत्यंत पवित्र स्थल है। यह गुरुद्वारा पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में, नरोवाल जिले के करतारपुर गांव में स्थित है। इसे सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी की अंतिम कर्मभूमि माना जाता है। यहां उन्होंने अपने जीवन के अंतिम 18 वर्ष बिताए थे और यहीं उनकी मृत्यु (1539 ई.) हुई थी।
यह भी पढ़ें: वैशाख पूर्णिमा के दिन भगवान सत्यनारायण की पूजा से मिलता है लाभ
गुरु नानक देव जी की मृत्यु के बाद, हिन्दू और मुसलमान अनुयायियों में उनके अंतिम संस्कार को लेकर मतभेद हुआ। कहा जाता है कि जब उनके शरीर से चादर हटाई गई तो वहाँ केवल फूल मिले। आधे फूल मुसलमानों ने दफनाए और आधे फूल हिन्दुओं ने जलाए। इस घटना के प्रतीक के रूप में आज भी गुरुद्वारे के पास दो स्मारक मौजूद हैं- एक कब्र और एक समाधि।