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पितृपक्ष: तर्पण के लिए तिल, जल, कुशा जरूरी क्यों? वैदिक महत्व समझिए

पितृपक्ष में तर्पण के लिए मुख्य रूप से अक्षत, जल, तिल और कुशा का इस्तेमाल किया जाता है। आइए जानते हैं पुराणों में इन चीजों का महत्व क्या है।

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प्रतीकात्मक तस्वीर: Photo Credit: AI

पितृपक्ष के दौरान किया जाने वाला पिण्डदान हिंदू धर्म की एक अत्यंत महत्वपूर्ण परंपरा मानी जाती है। मान्यता है कि इसे करने से पितरों की आत्मा को शांति और तृप्ति प्राप्त होती है। पिण्डदान में इस्तेमाल की जाने वाली चीजों का विशेष धार्मिक और पौराणिक महत्व है। पवित्र ग्रंथों में वर्णन मिलता है कि श्राद्ध और तर्पण में जिन चीजों का इस्तेमाल होता है, वह सीधे पितरों तक पहुंचती हैं। पिण्डदान में मुख्य रूप से तिल, चावल, कुश और जल का इस्तेमाल होता है। गरुड़ पुराण और पद्म पुराण में उल्लेख है कि तिल पाप नाशक है और आत्मा को शुद्धि प्रदान करता है।

 

इसके अलावा पिण्डदान में जिन चीजों का इस्तेमाल किया जाता है। उनका भी महत्व पुराणों में दिया गया है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, चावल, जिसे अक्षत कहा जाता है, इसे समृद्धि और संतोष का प्रतीक माना गया है। कुश  बिना श्राद्ध अधूरा माना गया है, क्योंकि इसे पितरों तक अर्पण पहुंचाने का माध्यम माना जाता है। वहीं, जल जीवन का आधार है और आत्मा को शांति और तृप्ति देने वाला माना जाता है।

 

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पितरों के तर्पण में इस्तेमाल की जाने वाली चीजें और उनका महत्व

जल (पानी)

  • तर्पण का मुख्य आधार जल है।
  • जल को पवित्र माना गया है और माना जाता है कि पितरों तक इसका सीधा संदेश पहुंचता है।
  • जल से तर्पण करने से पितरों की आत्मा को शांति और तृप्ति मिलती है।
  • गरुड़ पुराण में लिखा है कि जल ही आत्मा की प्यास बुझाने वाला तत्व है।

तिल

  • तिल को पवित्र माना जाता है और इसे पाप नाशक माना गया है।
  • गरुड़ पुराण और पद्म पुराण में वर्णित है कि तिल जल से तर्पण करने पर पितरों की आत्मा तृप्त होती है और पाप से मुक्ति मिलती है।
  • काला तिल विशेषकर श्राद्ध कर्म में शुद्धिकरण और पितृ तृप्ति के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं।

कुशा (दर्भा घास)

  • तर्पण करते समय कुशा धारण करना और उससे जल अर्पित करना अनिवार्य है।
  • कुशा को पवित्र और देवताओं का आसन माना गया है।
  • मनुस्मृति और गरुड़ पुराण में कहा गया है कि बिना कुश के श्राद्ध और तर्पण अधूरा है।

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अक्षत (चावल)

  • तर्पण में चावल का प्रयोग शुद्धता और समर्पण का प्रतीक है।
  • इसे पितरों के प्रति अटूट भावनाओं और स्मरण का सूचक माना जाता है।
  • महाभारत में कहा गया है कि चावल से किया गया अर्पण पितरों को संपूर्ण संतोष देता है।

पुष्प (फूल)

  • श्राद्ध में विशेषकर सफेद फूल अर्पित किए जाते हैं।
  • फूल प्रेम और श्रद्धा का प्रतीक माना जाता हैं।

दूध, शहद और घी

  • यह पदार्थ तर्पण के दौरान मिश्रित रूप से या अलग-अलग अर्पित किए जाते हैं।
  • इन चीजों को सात्विकता, शुद्धता और ऊर्जा का प्रतीक माना जाता हैं।
  • इससे पितरों की आत्मा प्रसन्न होती है।

पिंडदान (चावल, जौ और तिल से बने पिंड)

  • पिंडदान तर्पण का मुख्य हिस्सा है।
  • पिंड आत्मा को प्रतीकात्मक रूप से अन्न और ऊर्जा प्रदान करता है।
  • महाभारत और गरुड़ पुराण में लिखा है कि पिंडदान से पितरों की आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

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