हिंदू धर्म में भगवान शिव की उपासना सृष्टि के संघारक के रूप में की जाती है। शास्त्रों में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कई पूजा-विधान, उपाय और व्रतों का उल्लेख किया गया है। शिव पुराण में बताया गया है कि भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए प्रदोष व्रत और शिवरात्रि व्रत को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। इन सब में महीने में दो बार आने वाले प्रदोष व्रत का महात्मय विशेष है।
वैदिक पंचांग के अनुसार, शुक्ल और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन यानी 13वें दिन प्रदोष व्रत का पालन किया जाता है और अगले दिन मासिक शिवरात्रि व्रत का पालन किया जाता है। पंचांग में बताया गया है कि आज के दिन मार्गशीर्ष महीने का पहला प्रदोष व्रत रखा जा रहा है। आइए जानते हैं इस व्रत से जुड़ी कुछ खास बातें और महत्व।
मार्गशीर्ष प्रदोष व्रत 2024 पूजा विधि
पंचांग के अनुसार, आज के दिन प्रदोष काल में भगवान शिव की उपासना के लिए शुभ समय शाम 05 बजकर 26 मिनट से शाम 07 बजकर 40 मिनट के बीच रहेगा। प्रदोष व्रत का पालन निर्जला या फलाहारी दोनों प्रकार से किया जाता है। पूजा काल से पहले स्नान-ध्यान के बाद साफ वस्त्र धारण करके, एक चौकी पर मिट्टी से बने शिवलिंग को स्थापित करें और उनका विधिवत अभिषेक करें।
भगवान शिव को दूध, दही, घी, शक्कर, शहद और जल अर्पित करें। इसके बाद महादेव को चंदन, अक्षत, बेलपत्र इत्यादि चढ़ाएं। इसके साथ प्रदोष कथा का पाठ करें और आरती के साथ पूजा संपन्न करें। आरती से पहले भगवान शिव को भोग अर्पित करना न भूलें। पूजा के दौरान महामृत्युंजय मंत्र का जाप जरूर करें।
क्या है प्रदोष व्रत का महत्व?
भगवान शिव की उपासना के लिए प्रदोष व्रत पूजा अत्यंत फलदायक माना जाता है। शिव पुराण में वर्णित कथा के अनुसार, चन्द्रमा क्षय रोग से पीड़ित थे। इस रोग से उन्हें अत्यंत पीड़ा हो रही थी। भगवान शिव ने चंद्रमा के दोष को दूर किया और उन्हें जीवन दान दिया। यह घटना त्रयोदशी को घटित हुई थी और इसलिए इस दिन को प्रदोष के नाम से जाना जाने लगा। बता दें कि आज गुरु प्रदोष व्रत का पालन किया जा रहा है क्योंकि आज गुरुवार का दिन है। मान्यता है कि इस प्रदोष व्रत का पालन करने से शत्रुओं का नाश होता है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।