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इंद्र होकर भी मिला था सांप बनने का श्राप, पढ़ें राजा नहुष की कथा

राजा नहुष को देवताओं ने इंद्र की उपाधि दी थी लेकिन उनकी एक गलती से उन्हें सांप बनने का श्राप मिल गया। पढिए राजा नहुष की कथा।

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सांकेतिक चित्र।(Photo Credit: Freepik)

पौराणिक कथाओं में कई ऐसी कथाएं मिलती हैं, जिनमें दैत्यों के साथ-साथ कुछ देवताओं के अहंकार को भी चूर कर उन्हें अपनी गलती का आभास कराया गया था। ऐसी ही एक कथा राजा नहुष से जुड़ी हुई है, जिन्हें बहुत ही प्रतापी और शक्तिशाली राजा कहा जाता था। नहुष की कथा में भी अहंकार और उसे दूर करने की शिक्षा मिलती है। आइए जानते हैं राजा नहुष की कथा।

राजा नहुष की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, राजा नहुष चंद्रवंश के महान राजा और ययाति के पूर्वज थे। उनकी कथा पौराणिक ग्रंथों में अत्यंत शिक्षाप्रद और रोचक है। नहुष का जन्म आयुष्मान राजा और उनकी पत्नी इंदुमती के घर हुआ था। नहुष को बचपन से ही ज्ञान, साहस और तपस्या में रुचि थी। वे अपनी प्रजा का आदर करने वाले और धर्म के मार्ग पर चलने वाले राजा माने जाते थे। उनके शासनकाल में राज्य में सुख, शांति और समृद्धि का वास था।

 

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राजा नहुष का इंद्र पद पर अभिषेक

कथा के अनुसार, जब राजा नहुष ने अपनी तपस्या और पुण्य के बल पर देवताओं को प्रभावित किया, तब इंद्र देवता ने अपने सिंहासन को छोड़कर राजा नहुष को इंद्र का पद सौंप दिया। इंद्र ने यह पद इसलिए छोड़ा क्योंकि उनपर एक असुर के साथ युद्ध में ब्रह्महत्या का दोष मिला था और वे तपस्या के लिए वन चले गए थे।

 

देवताओं ने नहुष को यह पद सौंपने से पहले उनकी योग्यता की परीक्षा ली और उनके गुणों से प्रभावित होकर उन्हें देवलोक का राजा बना दिया। नहुष ने अपने प्रारंभिक समय में इंद्र के पद को पूरी निष्ठा और धर्म के साथ संभाला। देवता और ऋषि उनके शासन से प्रसन्न थे।

नहुष का अहंकार और पतन

इंद्र पद मिलने के बाद नहुष में धीरे-धीरे अहंकार का संचार होने लगा। वे अपनी शक्तियों का गलत उपयोग करने लगे। इसी दौरान उन्होंने इंद्र की पत्नी शचि (इंद्राणी) पर अधिकार जमाने का प्रयास किया। शचि ने अपनी पवित्रता और मर्यादा की रक्षा के लिए गुरु बृहस्पति की सहायता मांगी।

 

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बृहस्पति ने नहुष को एक योजना के तहत ऋषियों के पास भेज दिया और शचि ने नहुष से कहा कि वह ऋषियों के पालकी पर सवार होकर आएं। नहुष ने यह बात मान ली और ऋषियों को पालकी ढोने का आदेश दिया। नहुष ने गर्व में आकर ऋषियों को 'त्वरा' (जल्दी चलने) का आदेश दिया और पैर से मुनि अगस्त्य को ठोकर मार दी। इस अपराध से क्रोधित होकर मुनि अगस्त्य ने नहुष को श्राप दिया कि वह अपने अहंकार के कारण सर्प योनि में गिर जाएगा।

सर्प योनि में नहुष का समय

मुनि अगस्त्य के श्राप के कारण नहुष सर्प योनि में चले गए। कई वर्षों तक सर्प योनि में रहने के बाद, पांडवों के सहस्रबाहु अर्जुन के वंशज युधिष्ठिर के संपर्क में आने से नहुष का उद्धार हुआ। युधिष्ठिर ने नहुष को उनके कर्मों का ज्ञान कराया और तपस्या के माध्यम से उन्हें उनके पूर्वजन्म के पापों से मुक्ति दिलाई।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारियां सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं। Khabargaon इसकी पुष्टि नहीं करता।

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