हिंदू धर्म में भगवान शिव की उपासना का विशेष महत्व है। बात दें कि सनातन धर्म में महादेव को सृष्टि के संहारक के रूप में पूजा जाता है। मान्यता है कि महादेव की उपासना करने से व्यक्ति की सभी मनोकामना पूर्ण हो जाती। शास्त्रों में भगवान शिव की कथा और उनके सहस्र नामों का उल्लेख किया गया है, जिनमें से एक नाम नीलकंठ भी है। बता दें कि इस नाम से जुड़ी एक कथा का संबंध समुद्र मंथन और कुंभ मेले से जुड़ता है।
भगवान शिव ने जब ग्रहण किया था विष
हिंदू धर्म में समुद्र मंथन की कथा अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस कथा के अनुसार, देवताओं और असुरों ने अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र का मंथन किया। मंथन के दौरान अनेक रत्न, वस्तुएं और शक्तियां उत्पन्न हुईं, लेकिन उनमें से एक विष भी निकला, जिसे ‘हलाहल विष’ कहा गया। इस विष का ताप इतना प्रचंड और विनाशकारी था कि अगर यह इसके गंध मात्र से ही सारी सृष्टि का अंत हो सकता था।
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जब यह विष उत्पन्न हुआ, तो देवता और असुर इससे बचने के लिए भगवान शिव के पास गए। शिव ने सृष्टि की रक्षा के लिए उस विष को ग्रहण करने का निश्चय किया। उन्होंने विष को अपने कंठ में रोक लिया लेकिन उसे कंठ से नीचे नहीं उतरने दिया।
सृष्टि की रक्षा के लिए ग्रहण किया था हलाहल विष
अगर उन्होंने विष को निगल लिया होता, तो यह उनके शरीर में फैलकर विनाशकारी प्रभाव डाल सकता था। इसलिए उन्होंने उसे अपने कंठ में रोककर सृष्टि को बचाया। विष को कंठ में रोकने के कारण उनका कंठ नीला हो गया। इसलिए उन्हें ‘नीलकंठ’ कहा जाता है।
विष कंठ के नीचे क्यों नहीं गया?
विष को कंठ से नीचे न जाने देने के पीछे एक गहरी आध्यात्मिक मान्यता है। धर्म-शस्त्रों में बताया गया है कि भगवान शिव का शरीर संपूर्ण सृष्टि का प्रतीक है। अगर विष उनके पेट में चला जाता, तो यह सृष्टि के संतुलन को भंग कर सकता था। कई धर्माचार्य यह भी बताते हैं कि भगवान शिव के हृदय में राम निवास करते हैं और श्री राम को कोई कष्ट न हो इसलिए महादेव विष को अपने कंठ में रोक लिया।
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महाकुंभ से क्या है भगवान शिव का संबंध?
आध्यात्मिक दृष्टि से देखा जाए तो कुंभ उन स्थानों पर आयोजित होता है, जहां-जहां समुद्र मंथन से निकले कुंभ (कलश) में से अमृत की बूंदें गिरी थीं। भगवान शिव यदि इस विष ग्रहण ना करते तो हो सकता है अगले 13 रत्न प्राप्त न हो पाते। वहीं इस विष के ताप को संतुलित करने के लिए देवताओं ने महादेव का शीतल जल से अभिषेक किया था। इसलिए जो लोग कुंभ में स्नान के लिए आते हैं, वह भगवान शिव को समर्पित मंदिर में पूजा-अर्चना और उनका अभिषेक जरूर करते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से कुंभ का पूर्ण फल प्राप्त हो जाता है।
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