तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली जिले में स्थित श्रीरंगम रंगनाथस्वामी मंदिर न सिर्फ दक्षिण भारत, बल्कि पूरे देश में अपनी धार्मिक विरासत के लिए जाना जाता है। यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है और इसे वैष्णव परंपरा का महत्वपूर्ण केंद्रों में से एक माना जाता है। इस पवित्र स्थान को ‘दिव्य देशम’ यानी भगवान विष्णु के 108 पवित्र स्थानों में से एक माना जाता है।
मंदिर का ऐतिहासिक महत्व
इस मंदिर का उल्लेख पौराणिक ग्रंथों में मिलता है और कहा जाता है कि यह रामायण काल से जुड़ा हुआ है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान राम ने स्वयं इस मंदिर में प्रतिष्ठित रंगनाथस्वामी (भगवान विष्णु) की मूर्ति को लंका विजय के बाद विभीषण को भेंट किया था। लेकिन जब विभीषण श्रीरंगम पहुंचे और मूर्ति को नीचे रखा, तो वह वहीं स्थिर हो गई और फिर कभी हिल नहीं सकी। इसी कारण से यहां भगवान रंगनाथस्वामी की दिव्य मूर्ति स्थापित हुई।
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वास्तुकला की दृष्टि से यह मंदिर अद्भुत है। यह दुनिया के सबसे बड़े सक्रिय हिंदू मंदिरों में से एक है और इसकी सात विशाल परिक्रमा दीवारें और 21 भव्य गोपुरम यानी प्रवेश द्वार हैं। मंदिर का मुख्य गोपुरम 236 फीट ऊंचा है, जिसे देखकर भक्त भी अचंभित रह जाते हैं।
चिथिराई त्योहार और उसकी मान्यता
श्रीरंगम का चिथिराई महोत्सव इस मंदिर का सबसे बड़ा उत्सव माना जाता है। यह महोत्सव तमिल कैलेंडर के चिथिरई मास (अप्रैल-मई) में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है और इसे देखने हजारों श्रद्धालु देश-विदेश से आते हैं।
पुरी के जगन्नाथ रथ यात्रा की तरह इस त्योहार में भगवान रंगनाथस्वामी की भव्य पालकी नगर के चारों ओर भ्रमण करती है, जिसे देखने के लिए भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। महोत्सव के दौरान रंगनाथस्वामी और देवी लक्ष्मी की प्रतिमा को पारंपरिक रथों में स्थापित किया जाता है और भक्तों द्वारा उनका स्वागत पुष्प वर्षा से किया जाता है। इस पूरे अनुष्ठान का मुख्य आकर्षण ‘गोल्डन कार फेस्टिवल’ होता है, जिसमें भगवान रंगनाथस्वामी को स्वर्ण रथ में विराजमान कर पूरे नगर में घुमाया जाता है।
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मंदिर से जुड़ी प्रमुख मान्यताएं
मोक्ष प्राप्ति का द्वार– ऐसा कहा जाता है कि जो भक्त इस मंदिर में श्रद्धा भाव से दर्शन करता है, उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसलिए इसे ‘भूलोक वैकुंठ’ यानी पृथ्वी पर मौजूद वैकुंठ भी कहा जाता है।
देवी लक्ष्मी का पवित्र स्थान– मान्यता है कि देवी लक्ष्मी इस मंदिर में ‘रंगनायकी थायार’ के रूप में निवास करती हैं और भक्तों को समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं।
विष्णु भक्तों की तपोस्थली – श्रीरामानुजाचार्य, जो वैष्णव भक्ति परंपरा के महान संत थे, उन्होंने इस मंदिर को अपनी तपोस्थली बनाया था और यहां से भक्ति का संदेश पूरे भारत में फैलाया।
श्रीरंगम आने वाले भक्तों में यह मान्यता प्रसिद्द है कि यहां दर्शन करने मात्र से ही उनके जीवन में आ रही बाधाएं दूर हो जाती हैं। कई भक्त यह दावा भी करते हैं कि इस मंदिर में पूजा-अर्चना करने के बाद उनके जीवन में सकारात्मक बदलाव आए।
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