देवराज इंद्र, स्वर्ग के राजा कहे जाते हैं। ऐसी पौराणिक मान्यता है कि एक बार उन्हें बहुत अभिमान हो गया था। उन्हें दुर्वासा ऋषि ने एक बार पारिजात पुष्प की माला दी तो देवराज इंद्र ने उसका अनादर कर दिया। दुर्वासा गुस्से में आ गए। उन्होंने इंद्र और स्वर्गलोक को धनहीन होने का श्राप दे दिया। जब स्वर्ग से सारी धन-दौलत छिन गई, दानवों के राजा बालि ने आक्रमण कर दिया और स्वर्ग पर अधिकार कर लिया।
इंद्र और दूसरे देवता बहुत परेशान होने लगे। देवता पहले भगवान ब्रह्मा के पास गए, उन्होंने अपनी व्यथा कही। ब्रह्मा भगवान, विष्णु भगवान के पास गए, भगवान विष्णु, भगवान शिव के पास गए। सब देवताओं ने विचार किया कि अब समुद्र मंथन करना चाहिए, जिससे अमृत कलश की प्राप्ति हो। अमृत पीने से देवताओं में अमरत्व आएगी और राक्षसों के साथ युद्ध में देवता जीत जाएंगे।
ऐसे समुद्र मंथन के लिए तैयार हुए देव-दानव
जब से सृष्टि का निर्माण हुआ है, तब से देवता और असुरों के बीच लड़ाई होती रही है। राक्षसों के शासन से संसार में पाप बढ़ गया। लोगों का अत्याचार होने लगा। तीनों लोक त्रस्त हो गए। अब भगवान विष्णु ने कहा कि सभी देवता और असुर मिलकर समुद्र मंथन करें। अमृत मिलेगा। भगवान विष्णु को असुर नापसंद करते थे। भगवान ब्रह्मा ने समुद्रमंथन का प्रस्ताव रखा तो असुर और देवता दोनों तैयार हो गए।
कैसे मथा गया समुद्र?
भगवान शेषनाग की मदद से मंदराचल पर्वत को उखाड़कर मथनी बनाई गई। भगवान के कच्छप अवतार की पीठ पर लोगों ने मंदराचल पर्वत को रखकर मंथन के लिए तैयार किया। समुद्र ने कहा कि अमृत मैं भी लूंगा। वासुकी नाग को मथनी की डोरी बनाई गई। देवता पूछ की ओर गए, असुर मुंह की ओर गए और मंथन करने लगे।
छल के लिए भगवान ने लिया मोहिनी अवतार
मंथन के बाद कुछ रत्न निकले, फिर भगवान धन्वंतरि अमृत लेकर प्रकट हुए। उनके हाथों में श्वेतकलश था, जो अमृत से भरा था। देवता और असुर अमृत के लिए भिड़ गए। अमृत असुर छीनकर भागने लगे। तभी भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप रख लिया। वे नारी बन गए और असुर उन्हें पाने के लिए लालायित हो गए। वे उनके पीछे भागने लगे। मोहिनी ने छल से असुरों से अमृत मांग लिया। असुरों ने बेहोशी में अमृत छीन भी लिया। भगवान विष्णु मोहिनी अवतार में हाथ में कलश लेकर देवताओं को अमृत परोसने लगे। दानव भी पंगत में बैठे रहे लेकिन उन्हें अमृत नहीं मिला।
ऐसे मारा गया राहु
जब अमृत हाथ से निकल गया तो असुरों ने देवताओं पर हमला बोल दिया। राहु नाम का एक राक्षस देवता बनकर अमृत पीने लगा। अमृत उसके धड़ और सिर तक पहुंचा था तभी सूर्य और चंद्रमा के कहने पर भगवान विष्णु ने इसे भांप लिया। भगवान विष्णु ने उनका सिर धड़ से अलग कर दिया।
देवताओं से इसलिए भगवान विष्णु ने किया था छल
दानवों ने देवताओं पर हमला किया लेकिन उन्हें बुरी हार मिली। देवता अमर हो गए थे। भगवान विष्णु इस युद्ध में देवताओं के साथ थे। उन्होंने सुदर्शन चक्र उठा लिया। दानव डरकर समुद्र में छिप गए। इस तरह भगवान विष्णु ने मोहिनी बनकर असुरों को धोखा दिया और विश्व की आसुरी शक्तियों से रक्षा की। भगवान ने देवताओं से छल इसलिए किया था, जिससे संसार की रक्षा हो सके। असुर तामसिक प्रवृत्ति के लोग थे, जो मानवों पर अत्याचार करते थे, जिनकी वजह से सृष्टि का अस्तित्व खतरे में था।
डिस्क्लेमर: यह जानकारी पौराणिक ग्रंथों पर आधारित है। महाभारत और दूसरे ग्रंथों से इसके संदर्भ लिए गए हैं। खबरगांव इसकी पुष्टि नहीं करता है।