कौन थे शांतिकुंज और गायत्री परिवार बनाने वाले श्रीराम शर्मा आचार्य?
हरिद्वार में स्थित शांतिकुंज और अखिल विश्व गायत्री परिवार का नाम आज करोड़ों लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। इसके संस्थापक श्रीराम शर्मा आचार्य ने 25 अनमोल वचन दिए हैं, जो बहुत प्रसिद्ध हैं।

श्रीराम शर्मा आचार्य की तस्वीर: Photo Credit: Social Media
हरिद्वार में स्थित शांतिकुंज और अखिल विश्व गायत्री परिवार का नाम आज करोड़ों लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। इस विशाल आध्यात्मिक और सामाजिक आंदोलन के पीछे एक संत पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य का नाम सामने आता है। इनका जन्म 20 सितम्बर 1911 को उत्तर प्रदेश के आगरा जिले के आंवलखेड़ा गांव में हुआ था। श्रीराम शर्मा आचार्य ने अपना पूरा जीवन मानवता के उत्थान और वैदिक संस्कृति के पुनर्जागरण के लिए समर्पित कर दिया था।
स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी से लेकर आध्यात्मिक गुरु तक का सफर तय करते हुए उन्होंने मानव के विचार, चरित्र और समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए 1940 के दशक में ‘युग निर्माण योजना’ की शुरुआत की थी। 1971 में उन्होंने हरिद्वार में शांतिकुंज की स्थापना की, जो आज गायत्री मंत्र, यज्ञ, योग और ध्यान के माध्यम से करोड़ों लोगों के जीवन को नई दिशा दे रहा है।
वह न सिर्फ एक आध्यात्मिक गुरु थे, बल्कि एक प्रखर लेखक भी थे। उन्होंने अपने जीवनकाल में कई किताबें लिखीं हैं, जिनमें वेद, उपनिषद, गीता और योग जैसी प्राचीन ज्ञान-धाराओं को आधुनिक भाषा में समझाया गया है। उनका विश्वास था 'हम बदलेंगे, युग बदलेगा' और 'विचार क्रांति ही भाग्य बदल सकती है'।
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2 जून 1990 को समाधि में लीन होने के बाद भी उनके विचार और कार्य आज भी जीवंत हैं। शांतिकुंज आज भी नशामुक्ति, शिक्षा, महिला सशक्तिकरण, पर्यावरण संरक्षण और नैतिक मूल्यों के प्रसार में अहम भूमिका निभा रहा है।
श्रीराम शर्मा आचर्य के पिता का नाम पंडित रूपकिशोर शर्मा था। वह जमींदार घराने के थे और दूर-दराज के राजघरानों के राजपुरोहित, उद्भट विद्वान, भगवत् कथाकार भी थे और उनकी माता का नाम दंकुनवारी देवी था।
आचार्य के पत्नी का नाम भगवती देवी शर्मा था। भगवती देवी शर्मा एक भारतीय समाज सुधारिका थी। वह अखिल भारतीय गायत्री परिवार की सह-संस्थापिका थी। उन्होंने सामाजिक उत्थान के लिए बहुत से कार्य किये थे। उन्होंने सफलतापूर्वक कई अश्वमेघ यज्ञों का आयोजन किया था।
सामाजिक जीवन
श्रीराम शर्मा आचार्य 15 साल की उम्र से तपस्वी जीवन की शुरुआत कर दिए थे, जिसके अंतर्गत उन्होंने अखण्ड दीपक प्रज्वलित कर चौबीस वर्ष तक चलने वाले 24-24 लक्ष के चौबीस महापुरश्चरणों की शृंखला आरंभ की थी। आचार्य ने साधनाकाल में साधना के साथ-साथ आहार शुद्धि की ओर भी ध्यान रखा था। मान्यताओं के अनुसार, अपनी साधना काल में उन्होंने गाय को जौ खिलाकर उसके गोबर से निकाले गए जौ की रोटी या सत्तू छाछ के साथ खाते थे।
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उन्हें जाति-पांति का कोई भेद नहीं था। हर एक को एक समान ही मानते थे। नारी शक्ति और बेरोजगार युवकों के लिए भी उन्होंने काम किया था। इसके लिए उन्होंने गांव में ही एक बुनता घर स्थापित किया था।
राजनीतिक कार्य
श्री गणेश शंकर विद्यार्थी के प्रभाव से श्रीराम शर्मा आचार्य ने राजनीति में प्रवेश किया और वह धीरे-धीरे महात्मा गांधी के करीब पहुंच गए थे।
1942 से लगभग आठ-दस वर्ष पहले तक हर साल दो महीने सेवाग्राम में वह महात्मा गांधी के पास रहा करते थे। जानकारी के मुताबिक, महात्मा गांधी का उन पर अटूट विश्वास था। 1942 के 'भारत छोड़ो' आंदोलन के समय श्रीराम शर्मा आचार्य को उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश का प्रभारी नेता नियुक्त किया गया था। विचारों और कर्मों से क्रांतिकारी श्रीराम शर्मा आचार्य 1942 के आगरा सुरेंद्र केस के प्रमुख अभियुक्त थे।
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आचार्य के बड़े पुत्र रमेश कुमार शर्मा, उनकी बेटी कमला शर्मा के साथ उनके बड़े भाई पंडित बाला प्रसाद शर्मा इस केस में गिरफ्तार किए गए थे। अंत में 1945 में सब लोग जेल से रिहा हो गए थे। गिरफ्तारी और जेल-प्रवास के दौरान आचार्य के तीन पुत्रों की मृत्यु हो गई और पुलिस की मारपीट के वजह से उनका एक कान भी फट गया था। जेल से छूटने के बाद वह सीधे गांधीजी के पास गए थे। महात्मा गांधी की हत्या के बाद वह लेखन कार्य में ही अधिक रत रहने लगे थे। जीवन के अंतिम 8-10 वर्षों में उन्होंने नेत्रहीन अवस्था में पांच पुस्तकें बोलकर लिखीं थी।
25 अनमोल वचन
- आज का नया दिन हमारे लिए एक अमूल्य अवसर है।
- कभी निराश न होने वाला, सच्चा साहसी होता हैं।
- दूसरों को पीड़ा नहीं देना ही, मानव धर्म है।
- सारी दुनिया का ज्ञान प्राप्त करके भी खुद को ना पहचान पाए तो सारा ज्ञान निरर्थक है।
- जिस भी व्यक्ति ने अपने जीवन में स्नेह और सौजन्य का समुचित समावेश कर लिया है, वह सचमुच ही सबसे बड़ा कलाकार है।
- दूसरों के साथ वह व्यवहार मत करो, जो तुम्हें खुद अपने लिए पसंद नहीं है।
- मनुष्य अपने रचयिता की तरह ही सामर्थ्यवान है।
- किसी का आत्मविश्वास जगाना उसके लिए सर्वोत्तम उपहार है।
- जीवन को प्रसन्न रखने के दो ही उपाय है- एक अपनी आवश्यकताएं कम करें और दूसरा विपरित परिस्थितियों में भी तालमेल बिठाकर कार्य करें।
- संयम, सेवा और सहिष्णुता की साधना ही गृहस्थ का तपोवन है।
- खुद की महान् संभावनाओं पर दृढ़ विश्वास ही सच्ची आस्तिकता है।
- फूलों की खुशबू हवा के विपरीत दिशा में नहीं फैलती लेकिन सद्गुणों की कीर्ति दसों दिशाओं में फैलती है।
- अपने आचरण से प्रस्तुत किया उपदेश ही सार्थक और प्रभावी होता है, अपने वाणी से किया गया नहीं।
- मुस्कुराने की कला दुखों को आधा कर देती है।
- जिस शिक्षा में समाज और राष्ट्र के हित की बात नहीं हो, वह सच्ची शिक्षा नहीं कही जा सकती।
- अपनी प्रसन्नता को दूसरों की प्रसन्नता में लीन कर देने का नाम ही 'प्रेम' है।
- मनुष्य अपनी परिस्थितियों का निर्माता खुद ही होता है।
- जीवन का हर पल एक उज्ज्वल भविष्य की संभावना को लेकर आता है।
- जिन्हें लंबी जिंदगी जीनी हो, वे बिना ज्यादा भूख लगे कुछ भी न खाने की आदत डालें।
- किसी भी व्यक्ति के द्वारा किए गए पाप उसके साथ रोग, शोक, पतन और संकट साथ लेकर ही आते है।
- मनुष्य एक अनगढ़ पत्थर है, जिसे शिक्षा रूपी छैनी ओर हथौड़ी से सुंदर आकृति प्रदान की जा सकती हैं।
- गलती करना बुरा नहीं है बल्कि गलती को न सुधारना बुरा है।
- अपने भाग्य को मनुष्य खुद बनाता है, ईश्वर नहीं।
- हर व्यक्ति को अपना मूल्य समझना चाहिए और खुद पर यह विश्वास करना चाहिए कि वे संसार के सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति है।
- जो शिक्षा मनुष्य को परावलंबी, अहंकारी और धूर्त बनाती हो, वह शिक्षा, अशिक्षा से भी अधिक बुरी है।
प्रमुख रचनाएं
- अध्यात्म एवं संस्कृति
- गायत्री और यज्ञ
- विचार क्रांति
- व्यक्ति निर्माण
- परिवार निर्माण
- समाज निर्माण
- युग निर्माण
- वैज्ञानिक अध्यात्मवाद
- बाल निर्माण
- वेद पुराण एवम् दर्शन
- प्रेरणाप्रद कथा-गाथाएं
- स्वास्थ्य और आयुर्वेद
प्रमुख साहित्य रचनाएं
- भारतीय संस्कृति के आधारभूत तत्व
- समस्त विश्व को भारत के अजस्र अनुदान
- गायत्री महाविद्या
- यज्ञ का ज्ञान-विज्ञान
- युग परिवर्तन कब और कैसे
- स्वयं में देवत्व का जागरण
- समग्र स्वास्थ्य
- यज्ञ एक समग्र उपचार प्रक्रिया
- ईश्वर कौन है? कहां है? कैसा है?
- निरोग जीवन के महत्वपूर्ण सूत्र
- जीवेम शरदः शतम्
- विवाहोन्माद : समस्या और समाधान
क्रांतिधर्मी साहित्य
- शिक्षा ही नहीं विद्या भी
- भाव संवेदनाओं की गंगोत्री
- संजीवनी विद्या का विस्तार
- आद्य शक्ति गायत्री की समर्थ साधना
- जीवन साधना के स्वर्णिम सूत्र
- नवयुग का मत्स्यावतार
- इक्कीसवीं सदी का गंगावतरण
- महिला जागृति अभियान
- इक्कीसवीं सदी बनाम उज्ज्वल भविष्य-भाग 1
- इक्कीसवीं सदी बनाम उज्ज्वल भविष्य-भाग 2
- युग की मांग प्रतिभा परिष्कार-भाग 1
- युग की मांग प्रतिभा परिष्कार-भाग 2
- सतयुग की वापसी
- परिवर्तन के महान् क्षणम
- हाकाल का प्रतिभाओं को आमंत्रण
- प्रज्ञावतार की विस्तार प्रक्रिया
- नवसृजन के निमित्त महाकाल की तैयारी
- समस्याएं आज की समाधान कल के
- मन: स्थिति बदले तो परिस्थिति बदले
- स्रष्टा का परम प्रसाद-प्रखर प्रज्ञा
- जीवन देवता की साधना-आराधना
- समयदान ही युग धर्म
- युग की मांग प्रतिभा परिष्कार
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