कुरुक्षेत्र के युद्धभूमि में, दोनों सेनाएं आमने-सामने खड़ी थीं। रणभेरी बज चुकी थी, लेकिन अर्जुन का मन युद्ध करने से पीछे हटने लगा। उसने देखा कि सामने उसके अपने भाई, गुरु, और रिश्तेदार खड़े हैं। उसका दिल भर आया और उसने अपने धनुष गांडीव को नीचे रख दिया।
अर्जुन (विवश होकर):
'हे केशव! मैं इन अपनों से कैसे युद्ध कर सकता हूं? मेरे गुरु, पितामह, भाई, और संबंधी — क्या इनकी हत्या करना धर्म है? मैं तो उन्हें देखकर ही कांप रहा हूं। यह राज्य, यह सुख, और यह जीवन भी इनकी कीमत पर नहीं चाहिए।'
श्रीकृष्ण (गंभीर स्वर में):
'हे पार्थ! यह मोह तुम्हें कहां ले आया है? तुम जिसे दया और करुणा समझ रहे हो, वह तुम्हारे कर्तव्य से पलायन है। युद्ध के मैदान में क्षत्रिय का धर्म है — न्याय के लिए लड़ना।'
अर्जुन (शंका में):
'लेकिन प्रभु! अपने ही लोगों को मारकर क्या मुझे पाप नहीं लगेगा? क्या यह अधर्म नहीं होगा?'
श्रीकृष्ण (धैर्य से समझाते हुए):
'अर्जुन, तुम जिस शरीर को मारने से डर रहे हो, वह नश्वर है। आत्मा अमर है — न वह जन्म लेती है, न मरती है। जो जन्मा है उसका अंत निश्चित है। इसलिए जिनकी मृत्यु तय है, उनके लिए शोक करना अज्ञानता है।'
अर्जुन (दुविधा में):
'तो क्या युद्ध अनिवार्य है, प्रभु?'
श्रीकृष्ण (स्पष्टता से):
'जब अधर्म बढ़ता है, अन्याय सिर उठाता है, और धर्म की रक्षा खतरे में पड़ जाती है, तब युद्ध आवश्यक हो जाता है। चुप रहकर अत्याचार को बढ़ावा देना भी पाप है। इसलिए तुम्हें धर्म की रक्षा के लिए युद्ध करना ही चाहिए।'
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अर्जुन (धीरे से):
'लेकिन यदि मैं युद्ध में हार गया तो?'
श्रीकृष्ण (मुस्कुराते हुए):
'फल की चिंता मत करो, केवल अपने कर्तव्य का पालन करो। जीत-हार, लाभ-हानि, सुख-दुख — ये सब क्षणिक हैं। जो अपने कर्म को बिना किसी स्वार्थ के करता है, वही सच्चा योगी है।'
अर्जुन (समझने का प्रयास करते हुए):
'प्रभु, क्या युद्ध करते समय क्रोध या घृणा नहीं आनी चाहिए?'
श्रीकृष्ण (गंभीरता से):
'युद्ध करो, परंतु क्रोध, द्वेष और घृणा के बिना। तुम्हारा लक्ष्य केवल धर्म की स्थापना होनी चाहिए, न कि निजी बदला या वासना। निष्काम भाव से किया गया कार्य तुम्हें बंधन में नहीं डालता।'
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अर्जुन (विनम्र होकर):
'हे माधव! आपने मेरे संदेह दूर कर दिए। अब मैं आपके आदेश का पालन करूंगा। मेरे भीतर से मोह और भय दूर हो गया है।'
श्रीकृष्ण (प्रसन्न होकर):
'अब उठो अर्जुन! गांडीव उठाओ और धर्म की रक्षा के लिए रणभूमि में डट जाओ। यह युद्ध केवल सिंहासन के लिए नहीं, बल्कि सत्य, न्याय और धर्म की स्थापना के लिए है।'
Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।