त्रिदेवों का अहंकार: जब ब्रह्मा, विष्णु और शिव को हुआ था घमंड
हिंदू धर्म में त्रिदेवों की कथाओं और अनेकों स्वरूप के विषय में बताया गया है। आइए जानते हैं, कब-कब इन देवताओं को आया था घमंड।

भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश-त्रिदेव।(Photo Credit: AI Image)
ब्रह्मा, विष्णु और महेश (शिव) सृष्टि के संचालन के तीन प्रमुख देवता माने जाते हैं। ब्रह्मा सृष्टिकर्ता हैं, विष्णु पालनकर्ता और शिव संहारक। हालांकि, समय-समय पर इन त्रिदेवों को भी अपने कार्यों पर घमंड हो गया और फिर उन्हें वह घमंड छोड़ना पड़ा। हमारे शास्त्रों में ऐसी कथाएं मिलती हैं जो यह सिखाती हैं कि अहंकार चाहे किसी में भी हो, उसका अंत विनम्रता और आत्मबोध में ही होता है। आइए जानते हैं त्रिदेवों से जुड़ी तीन प्रसिद्ध पौराणिक कथाएं, जिनमें उन्हें घमंड आया और किस प्रकार यह घमंड टूटा।
ब्रह्मा जी को आया सृष्टिकर्ता होने का घमंड
पौराणिक काल में जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की, तब उन्हें लगा कि वह सबसे महान हैं। उनका अहंकार इस हद तक बढ़ गया कि वह स्वयं को सर्वोच्च मानने लगे। उन्होंने सोचा, 'मैं ही सारे जीवों का निर्माता हूं, मेरे बिना कोई अस्तित्व में नहीं आता।'
यह देखकर भगवान विष्णु और भगवान शिव चिंतित हुए, क्योंकि सृष्टि में संतुलन बना रहे, इसके लिए सृजन के साथ-साथ पालन और संहार भी जरूरी होता है। अगर ब्रह्मा जी को यह लगे कि वही सर्वश्रेष्ठ हैं, तो यह संतुलन बिगड़ सकता है।
यह भी पढ़ें: शिव, शंकर और शंभू , जानें इन तीनों नाम के रहस्य
ऐसे में भगवान विष्णु और महादेव ने एक उपाय किया। आकाश में एक दिव्य स्तम्भ (ज्योतिर्लिंग) प्रकट हुआ, जिसकी ऊंचाई और गहराई का कोई अंत नहीं था। ब्रह्मा जी को यह बताया गया कि जो इस स्तम्भ का अंत जान पाएगा, वही सबसे बड़ा होगा।
ब्रह्मा जी ऊपर की ओर उड़ चले और भगवान विष्णु नीचे की ओर गए। विष्णु जी नीचे जाकर थक गए लेकिन उन्हें अंत नहीं मिला। वह लौट आए और सच्चाई बता दी। वहीं ब्रह्मा जी को भी ऊपर कोई अंत नहीं मिला लेकिन रास्ते में उन्हें केतकी का फूल मिला। उन्होंने झूठ बोला कि वह इस फूल को स्तम्भ के शीर्ष से लेकर आए हैं। ब्रह्मा जी ने झूठ बोलकर विजयी होने का प्रयास किया।
यह स्तम्भ भगवान शिव का अनंत रूप था। ब्रह्मा जी के झूठ पर क्रोधित होकर महादेव को श्राप दिया कि 'तुम्हारी पूजा धरती पर नहीं होगी।' उसी क्षण ब्रह्मा को अपने घमंड का पछतावा हुआ और उन्होंने क्षमा मांगी।
भगवान विष्णु को आया पालनकर्ता होने का अभिमान
एक समय ऐसा भी आया जब भगवान विष्णु को यह अनुभव हुआ कि वह ही संपूर्ण ब्रह्मांड के रक्षक हैं। उनके मन में विचार आया कि यदि वह न हों तो सृष्टि का पालन संभव ही नहीं। यही भाव उनके भीतर अहंकार में परिवर्तित हो गया।
भगवान शिव ने यह बात जान ली और उन्हें एक छोटी-सी शिक्षा देने का निर्णय लिया। एक दिन विष्णु जी वैकुंठ में विराजमान थे। तभी वहां एक ब्रह्मराक्षस प्रकट हुआ जो अत्यंत शक्तिशाली और विनाशकारी था। उसने सभी देवताओं को पराजित कर दिया और स्वयं विष्णु लोक पर आक्रमण कर दिया। भगवान विष्णु ने उस राक्षस से युद्ध किया लेकिन जितना वह प्रयास करते, उतना ही वह राक्षस बलवान होता गया।
आखिरकार विष्णु जी ने ध्यान में बैठकर भगवान शिव से सहायता मांगी। तब शिव जी प्रकट हुए और उन्होंने बताया कि वह राक्षस उनके ही तेज का अंश था और वह केवल अहंकार दूर करने के लिए उत्पन्न हुआ था। भगवान विष्णु ने विनम्रता से अपनी भूल स्वीकार की। शिवजी ने उनका अहंकार समाप्त कर उन्हें फिर संतुलित रूप में स्थापित किया।
इस घटना के बाद भगवान विष्णु ने यह समझा कि सृष्टि में सभी का कार्य समान रूप से महत्वपूर्ण है और किसी एक का कार्य दूसरे के बिना अधूरा है।
यह भी पढ़ें: जब शिव के आग्रह पर विष्णु ने लिया श्रीकृष्ण अवतार, जानें पौराणिक कथा
भगवान शिव को हुआ संहारकर्ता होने का गर्व

यद्यपि भगवान शिव को सदैव से एक तपस्वी और त्यागी देवता कहा जाता है, हालांकि एक कथा ऐसी भी है जब उन्हें अपने तांडव और संहार शक्ति पर गर्व हो गया था।
एक बार जब त्रिपुरासुर नामक राक्षस ने तीन दिव्य नगरों (त्रिपुर) का निर्माण कर लिया और वह अत्यंत अहंकारी हो गया, तब देवताओं ने भगवान शिव से उसकी विनाश के लिए विनती की। शिव जी ने प्रसन्न होकर कहा, 'मैं इस राक्षस को भस्म कर दूंगा, मुझे किसी की सहायता की आवश्यकता नहीं।'
उन्होंने ब्रह्मांड से बना एक अद्भुत रथ मंगवाया। रथ के पहिए चंद्रमा और सूर्य थे, धनुष मेरु पर्वत था और तीर स्वयं भगवान विष्णु। हालांकि जब शिवजी युद्ध करने चले, तो संयोग से त्रिपुरासुर के तीनों नगर एक सीधी रेखा में आ गईं और तब ही संहार संभव था।
भगवान शिव ने बाण चलाया और नगरों का विनाश कर दिया। इस पर देवताओं ने उनकी स्तुति की लेकिन तभी नारद मुनि आए और बोले, 'हे महादेव, इस विजय में अकेले आपके नहीं, बल्कि सभी तत्वों का योगदान था। आपने अकेले कुछ नहीं किया, आपके रथ, बाण, सारथी, सबकी सामूहिक शक्ति से यह संभव हुआ।' यह सुनकर शिव जी मुस्कुराए और उनका तांडव शांत हुआ।
और पढ़ें
Copyright ©️ TIF MULTIMEDIA PRIVATE LIMITED | All Rights Reserved | Developed By TIF Technologies
CONTACT US | PRIVACY POLICY | TERMS OF USE | Sitemap

