हिंदू धर्म में भगवान शिव को सृष्टि के संहारक और भगवान श्री कृष्ण को श्री हरि के दिव्य रूप में पूजा जाता है। इनसे जुड़ी कथाएं केवल आस्था का विषय नहीं हैं, बल्कि इनमें गहरे आध्यात्मिक और सांस्कृतिक संदेश छुपे होते हैं। ऐसी ही एक प्रसिद्ध पौराणिक कथा है कि भगवान विष्णु ने भगवान शिव के आग्रह पर श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लिया था।
कथा की शुरुआत द्वापर युग के अंत से होती है जब धरती पर अधर्म, पाप, अन्याय और क्रूरता बहुत बढ़ गई थी। राक्षस रूपी राजा जैसे कंस, जरासंध, शिशुपाल, दंतवक्र आदि अत्याचारी हो गए थे। धर्म की रक्षा करने वाले, साधु-संत और ऋषि-मुनि सभी आतंक में जी रहे थे।
भगवान शिव और श्री कृष्ण से जुड़ी कथा
पृथ्वी देवी (भूमि देवी) गाय के रूप में जाकर ब्रह्मा जी से रोती हुई विनती करती हैं कि वे इस संकट से मुक्ति दिलाएं। ब्रह्मा जी, पृथ्वी देवी के साथ देवताओं सहित कैलाश पर भगवान शिव के पास जाते हैं और स्थिति बताते हैं।
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भगवान शिव बहुत व्यथित हो जाते हैं। वे स्वयं जानते थे कि अधर्म का अंत केवल परम विष्णु ही कर सकते हैं। इसलिए उन्होंने संपूर्ण ब्रह्मांड के रक्षक भगवान विष्णु से क्षीर सागर में जाकर निवेदन किया।
भगवान शिव ने श्री हरि से क्या कहा?
‘हे नाथ! अब समय आ गया है कि आप पुनः धरती पर अवतार लें। अधर्म की जड़ें गहरी हो गई हैं। कंस जैसे पापियों का अंत केवल आप ही कर सकते हैं।’ भगवान विष्णु मुस्कराए और बोले, ‘हे महादेव! जब-जब धर्म की हानि होती है, तब-तब मैं धरती पर अवतार लेता हूं। आपके आग्रह और भक्तों के कल्याण हेतु मैं अवश्य अवतरित होऊंगा।’
यही वह क्षण था जब भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण रूप में अवतार लेने का निश्चय किया। भगवान के इसी निर्णय से कई लीलाओं का जन्म हुआ, जिन में बाल गोपाल रूप, पूतना वध, कंस वध, महाभारत जैसी लीलाएं शामिल थीं।

श्रीकृष्ण के प्रति भगवान शिव का भाव
भगवान शिव को श्रीकृष्ण के प्रति अनन्य भक्ति और गहरा प्रेम है। ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव ने श्रीकृष्ण को 'स्वयं परम ब्रह्म' माना है। श्रीकृष्ण के प्रति उनका जो स्नेह और भक्ति है, वह अनेक कथाओं में वर्णित है।
एक कथा के अनुसार जब भगवान श्रीकृष्ण बालरूप में गोकुल में लीला कर रहे थे, तो भगवान शिव, एक साधु के वेश में, नंद बाबा के घर पहुंचे। वे श्रीकृष्ण के दर्शन करना चाहते थे।
परंतु यशोदा माता ने उन्हें बालक से दूर रहने को कहा, क्योंकि उस समय बालक कृष्ण को नजर लगने का भय था। शिव जी दूर खड़े होकर ही श्रीकृष्ण को निहारते रहे और उनकी आंखों से प्रेमाश्रु बहने लगे।
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श्रीकृष्ण यह सब जानते थे। उन्होंने रोना शुरू किया, जब तक माता यशोदा ने शिव जी को अंदर बुलाकर उनके दर्शन नहीं कराए। तभी से भगवान शिव को ‘दर्शनदाता’ और 'कृष्ण प्रियतम' भी कहा गया। कौमुदी पर्वत की कथा में आता है कि महाभारत युद्ध से पहले भगवान कृष्ण ने अर्जुन को समझाने के लिए भगवान शिव की आराधना की थी। द्रौपदी स्वयंवर से पहले, भगवान शिव ने ही श्रीकृष्ण को संकेत दिए थे कि द्रौपदी का भाग्य अर्जुन से जुड़ा है।
सुदर्शन चक्र की प्राप्ति की कथा में भी शिव जी का आशीर्वाद माना गया है। भगवान शिव ने ही एक बार बाणासुर के युद्ध में श्रीकृष्ण से युद्ध किया था लेकिन अंत में श्रीकृष्ण को पहचान कर उनके चरणों में नतमस्तक हो गए। शिव जी श्रीकृष्ण को 'लीलामय भगवान' मानते हैं। उन्होंने यह भी कहा है कि 'कृष्ण तत्व को जानना अत्यंत दुर्लभ है, केवल भक्ति से ही जाना जा सकता है'। श्रीकृष्ण के सुदर्शन चक्र, गोवर्धन लीला, गीता ज्ञान आदि के पीछे शिव जी का भी अदृश्य आशीर्वाद है।