सत्य की जीत और असत्य के अंत का पर्व विजयादशमी पूरे देश में धूमधाम से मनाई जाती है। परंपरा है कि इस दिन भगवान श्रीराम ने लंका के राक्षसराज रावण का वध कर धर्म की स्थापना की थी। दशहरा न केवल अच्छाई और बुराई की जंग का प्रतीक है, बल्कि जीवन में नीति और समय का महत्व भी सिखाता है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार, अंतिम क्षणों में रावण ने लक्ष्मण को बताया था कि शुभ कार्य को कभी टालना नहीं चाहिए और अहंकार हमेशा विनाश की वजह बनता है। यही वजह है कि विजयादशमी सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि जीवन जीने का संदेश भी है।
माना जाता है कि इस दिन किसी भी प्रकार के शस्त्र पूजन या नए बिजनेस की शुरुआत से सफलता मिलती है। आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को विजया दशमी या दशहरा कहा जाता है। शास्त्र के अनुसार, इसे विजया मुहूर्त कहा गया है, जो नए काम, यात्रा और युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए बहुत शुभ माना जाता है।
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विजया दशमी का महत्व
धार्मिक महत्व : आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को विजया दशमी या दशहरा कहा जाता है। यह दिन अच्छाई की बुराई पर विजय का प्रतीक माना जाता है।
रामायण से जुड़ाव : इसी दिन भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया था।
महाकाव्यात्मक अर्थ : यह दिन यह सिखाता है कि धर्म, सत्य और न्याय की शक्ति, असत्य और अधर्म पर अवश्य विजय प्राप्त करती है।
शास्त्रीय दृष्टि से : इस दिन को विजया मुहूर्त कहा गया है, जो नए काम, यात्रा और युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए बहुत शुभ माना जाता है।
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राम और रावण के बीच अंतिम संवाद (वाल्मीकि रामायण के अनुसार)
वाल्मीकि रामायण, युद्धकाण्ड (सर्ग 108–111) में राम–रावण युद्ध का अंतिम दृश्य वर्णित है।
रावण परास्त होता है और राम के बाणों से घायल होकर धरती पर गिर पड़ता है। तब भगवान राम अपने छोटे भाई लक्ष्मण से कहते हैं कि 'हे लक्ष्मण! रावण महान विद्वान है, इसे जाकर कुछ ज्ञान की बातें पूछो। शत्रु होते हुए भी इससे हमें धर्म और राजनीति का उपदेश मिल सकता है।'
लक्ष्मण रावण के पास जाकर गुस्से में पूछते हैं, तब रावण कुछ नहीं कहता। राम लक्ष्मण को समझाते हैं कि प्रेम से पूछो। फिर दोबारा लक्ष्मण प्रेम भाव से रावण के पैरों के पास बैठकर सीख मांगते हैं, तब रावण कहता है,
'हे लक्ष्मण! जब तक मैं जीवित था, लोग मेरे सामने खड़े होने से भी डरते थे, अब जब मौत करीब है, मैं सत्य कहता हूं।'
पहला उपदेश : शुभ कार्य को कभी टालना नहीं चाहिए। मैंने श्रीराम से शत्रुता मोल ली लेकिन समय रहते सन्धि नहीं की, यह मेरी सबसे बड़ी भूल थी।
दूसरा उपदेश : गुप्त रहस्य, रणनीति और ज्ञान योग्य बातें केवल जानकार व्यक्ति को ही बताना चाहिए।
तीसरा उपदेश : अहंकार और अधर्म अंत में विनाश की वजह बनते हैं।'