देशभर में दशहरा के दिन रावण का पुतला जलाया जाता है लेकिन कुछ ऐसी जगहें भी हैं जहां रावण का दहन नहीं किया जाता और उसकी पूजा की जाती है। सामान्य रूप से दशहरे के दिन रावण के पुतले जलाकर बुराई पर अच्छाई की विजय का संदेश दिया जाता है। वहीं, कुछ शहरों और गांवों में स्थानीय मान्यताओं, सांस्कृतिक धरोहर और धार्मिक विश्वासों के अनुसार रावण को सम्मान के साथ पूजा जाता है।
मान्यता के अनुसार, मध्य प्रदेश के मंदसौर में रावण की पत्नी मंदोदरी का मायका माना जाता है। यही वजह है कि इस जगह पर रावण का दहन नहीं किया जाता है। वहीं, उत्तर प्रदेश के बिसरख को रावण की जन्मभूमि मानी जाती है। ऐसे में इस जगह पर दशहरे पर उसकी आत्मा की शांति के लिए पूजा होती है। देश में ऐसी कई जगहें हैं, जहां रावण के पुतले को नहीं जलाया जाता है और उसकी पूजा की जाती है।
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रावण का दहन न करने वाले प्रमुख स्थान
मंदसौर, मध्य प्रदेश: यहां रावण की पत्नी मंदोदरी का मायका माना जाता है। इसलिए रावण को 'दामाद' मानकर उसका दहन नहीं किया जाता, बल्कि पूजा की जाती है।
बिसरख, उत्तर प्रदेश: यह स्थान रावण की जन्मभूमि माना जाता है। यहां दशहरे पर रावण की आत्मा की शांति के लिए विशेष पूजा की जाती है और दहन नहीं किया जाता है।
बैजनाथ, हिमाचल प्रदेश: यहां रावण ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की थी। स्थानीय लोग उसे शिवभक्त के रूप में सम्मानित करते हैं और रावण का दहन अशुभ मानते हैं।
गढ़चिरौली, महाराष्ट्र: यहां के आदिवासी समुदाय रावण को शक्ति और अपने पूर्वज के रूप में मानते हैं। इसलिए वे रावण का दहन नहीं करते, बल्कि पूजा और विशेष अनुष्ठान करते हैं।
विदिशा, मध्य प्रदेश: मान्यता के अनुसार, यहां लगभग 500 साल पुरानी रावण की प्रतिमा है। यहां दशहरे पर रावण का पुतला नहीं जलाया जाता, बल्कि उसकी पूजा की जाती है।
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रावण की पूजा करने की विशेष वजह
- स्थानीय मान्यताएं: कुछ जगहों पर रावण को सम्मानित देवता या ज्ञानी के रूप में पूजा जाता है।
- सांस्कृतिक धरोहर: स्थानीय परंपराएं और इतिहास रावण की पूजा की प्रेरणा देते हैं।
- धार्मिक विश्वास: कुछ समुदाय रावण को अपने पूर्वज या देवता मानते हैं, इसलिए उसका दहन नहीं करते।