हिंदू धर्म में भगवान विष्णु को सृष्टि के पालनहार के रूप में की जाती है। मान्यता है कि भगवान विष्णु की उपासना करने से जीवन में सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। भारत में भगवान विष्णु को समर्पित अनगिनत छोटे-बड़े मंदिर हैं लेकिन कुछ मंदिरों से पौराणिक मान्यताएं और कहानियां प्रचलित हैं। विष्णु पुराण, स्कन्द पुराण, भगवत पुराण इत्यादि धार्मिक ग्रंथों में भी भगवान विष्णु के कई दिव्य मंदिरों का वर्णन मिलता है। इन्हीं में से एक मंदिर बिहार में स्थित है, जहां श्रीहरि के चरणों के दर्शन होते हैं।
गयासुर और विष्णुपद मंदिर की पौराणिक कथा
सनातन धर्म के शास्त्रों के अनुसार, गयासुर नाम का दैत्य भगवान विष्णु का अत्यंत भक्त था। उसने भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या और अनन्य भक्ति की। भगवान विष्णु ने प्रसन्न होकर एक अद्वितीय वरदान दिया। गयासुर को भगवान विष्णु से वरदान प्राप्त हुआ कि उसके दर्शन मात्र से ही लोगों के पाप नष्ट हो जाएंगे और उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होगी। इस कारण बड़ी संख्या में लोग गयासुर के दर्शन के लिए आने लगे, और गयासुर की ख्याति तीनों लोकों में फैल गई।
कथा के अनुसार, गयासुर के दर्शन से मृत्यु के बाद स्वर्ग का मार्ग खुल जाता था। जिस वजह स्वर्ग लोक भीड़ बढ़ने लगी। इससे स्वर्ग के देवता चिंतित हो गए और उन्होंने भगवान विष्णु से प्रार्थना की कि वे इस समस्या का समाधान करें। देवताओं की याचना पर भगवान विष्णु ने ब्रह्माजी के साथ मिलकर एक यज्ञ की योजना बनाई। यह यज्ञ गयासुर के शरीर पर ही आयोजित किया गया। भगवान का अनन्य भक्त होने के कारण वह इस यज्ञ के लिए सहर्ष तैयार हो गया और भूमि पर लेट गया।
यज्ञ के दौरान गयासुर बिल्कुल भी विचलित नहीं हुआ। पुनः उसकी दृढ़ भक्ति से भगवान विष्णु प्रसन्न हुए और एक बार फिर वरदान मांगने को कहा। गयासुर ने विनम्रता से कहा, 'प्रभु, अगर आप मुझसे प्रसन्न हैं तो कृपया इसी स्थान पर सदैव विराजमान रहें और जो भी व्यक्ति यहां श्रद्धा से आपकी पूजा करेगा, उसे मोक्ष की प्राप्ति हो।' भगवान विष्णु ने गयासुर की इस इच्छा को स्वीकार कर लिया और वरदान दिया कि यह स्थान मोक्षदायिनी बन जाएगी। गयासुर का नाम अमर हो गया और इस स्थान का नाम 'गया' पड़ा।
कहा जाता है कि भगवान विष्णु ने गयासुर के ऊपर अपना पैर रखा, जिससे गयासुर भूमि में समा गया और पत्थर के रूप में परिवर्तित हो गया। इसी स्थान पर 'विष्णुपद मंदिर' का निर्माण हुआ। यह मंदिर बिहार के गया जिले में फल्गु नदी के तट पर स्थित है। यह स्थान पिंडदान और तर्पण के लिए प्रसिद्ध है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान श्रीराम ने भी यहां अपने पितरों का तर्पण किया था। वर्तमान में विष्णुपद मंदिर में भगवान विष्णु के पदचिह्न के दर्शन होते हैं। मंदिर का पुनर्निर्माण अहिल्याबाई होल्कर द्वारा करवाया गया था, जहां हर साल बड़ी संख्या में श्रद्धालु भगवान विष्णु के चरणों के दर्शन के लिए और पिंडदान के लिए आते हैं।
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