मार्गशीर्ष महीने के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि, गुरुवार (4 दिसंबर) को मासिक कार्तिगाई का पर्व मनाया जाएगा। यह त्योहार मुख्य रूप से तमिलनाडु, श्रीलंका और तमिल बहुल क्षेत्रों में मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान कार्तिकेय की पूजा करने से जीवन में सुख और शांति की प्राप्ति होती है। कार्तिगई दीपम के 10वें दिन सुबह से ही हजारों भक्त अरुणाचलेश्वर मंदिर में एकत्रित हो रहे हैं। वहीं, घरों में लोग दीए जलाकर इस पर्व को मनाते हैं। महा दीपम बुधवार शाम 6 बजे अन्नामलाई पहाड़ी पर प्रज्वलित किया जाएगा, जिसे देखने के लिए तमिलनाडु सहित विदेशों से भी लाखों भक्त पहुंचेंगे।
मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ जमा है जिसके चलते भारी पुलिस बल तैनात किया गया है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव अनंत ज्योति स्तंभ के रूप में प्रकट हुए थे। इसलिए इस दिन भगवान शिव का अग्नि तत्व विशेष रूप से जाग्रत रहता है।
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कार्तिकई दीपम क्या है?
कार्तिकई दीपम को 'रोशनी का त्योहार' कहा जाता है, जो उत्तर भारत की दीपावली से अलग है। इस त्योहार की सबसे महत्वपूर्ण कथा भगवान शिव से जुड़ी है। माना जाता है कि इसी दिन भगवान शिव ने स्वयं को अग्नि के एक विशाल स्तंभ के रूप में प्रकट किया था। शिव ने यह रूप इसलिए धारण किया था ताकि ब्रह्मा और विष्णु के बीच चल रहे इस विवाद को सुलझाया जा सके कि दोनों में से कौन महान है। शिव का यह रूप उनकी सर्वोच्चता और प्रकाश के अनंत स्रोत का प्रतीक है।
यह त्योहार भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय (मुरुगन) से भी जुड़ा हुआ है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, कार्तिकेय का जन्म छह दिव्य ज्योतियों से हुआ था और कार्तिकई दीपम का त्योहार उन्हीं ज्योतियों की पूजा का प्रतीक है।
यह त्योहार लगातार तीन दिनों तक मनाया जाता है, जिसका समापन पूर्णिमा के दिन होता है। लोग अपने घरों के अंदर और बाहर शाम में मिट्टी के कई दीये जलाते हैं। दीयों की रोशनी बुराई पर अच्छाई की और अंधकार पर ज्ञान के प्रकाश की विजय का प्रतीक है। तिरुवनमलाई के अरुणाचलेश्वर मंदिर में, त्योहार के अंतिम दिन अन्नामलाई पहाड़ी की चोटी पर एक विशाल महादीपम जलाया जाता है। यह दीपक कई किलोमीटर दूर से दिखाई देता है और माना जाता है कि यह शिव के अग्नि स्तंभ स्वरूप का प्रतिनिधित्व करता है।
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अरुणाचलेश्वर शिव मंदिर से जुड़ी कहानी
ऐसी मान्यता है कि एक बार ब्रह्मा जी ने हंस का रूप लिया था। इसके बाद उन्होंने शिवजी के शीर्ष का पता लगाने के लिए उड़ान भरा था। वह इसे कर पाने में असमर्थ रहे और शिव के मुकुट के नीचे गिर गए। वहां गिरे फूल से उन्होंने इस बारे में पूछा। फूल ने कहा कि वह 40 हजार साल से गिरा पड़ा है। ऐसे में ब्रह्मा जी को लगा कि वह ऊंचाई तक नहीं पहुंच पाएंगे। ब्रह्मा जी ने फूल को झूठी गवाही देने के लिए मना लिया कि उसने शिव जी का शीर्ष देखा है।
कहा जाता है कि भगवान इस बात से बहुत गुस्सा हो गए जिसके बाद उन्होंने ब्रह्मा जी को श्राप दिया कि धरती पर उनका कोई शिवलिंग नहीं बनेगा। साथ ही केवड़े के फूल को श्राप दिया कि वह शिवजी की पूजा में इस्तेमाल नहीं होगा। तिरुवनमलाई वह जगह है जहां शिवजी ने ब्रह्मा जी को श्राप दिया था।
तमिलनाडु के थूथुकुडी शहर के बाजार में सुबह से ही तेज चहल-पहल देखी जा रही है। भक्तों की भारी भीड़ को संभालने के लिए एक बड़े सिक्योरिटी और ट्रैफिक मैनेजमेंट प्लान के साथ तैयारियां तेज कर दी हैं। 24 नवंबर को शुरू हुआ यह फेस्टिवल 7 दिसंबर तक चलेगा। अधिकारियों ने सभी विजिटर्स की सेफ्टी और आसानी से दर्शन पक्का करने के लिए पुलिस वाले तैनात किए हैं, CCTV सर्विलांस किया है और ट्रैफिक डायवर्जन किया है।