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महाभारत में नियोग विधि से बचा था इक्ष्वाकु वंश, कलियुग में पाप क्यों?

महाभारत के आदिपर्व और मनुस्मृति में संतानोत्पत्ति के लिए नियोग विधि की व्याख्या की गई है। कलियुग में नियोग विधि से संतान उत्पन्न करने को अनाचार माना गया है। ऐसा क्यों है, आइए समझते हैं।

Pandav

पांडु के पुत्र पांडव कहलाए। उनका जन्म नियोग विधि से हुआ था। (इमेज क्रेडिट- AI www.canva.com)

इक्ष्वाकु वंश के राजा प्रतिश्रवा और शिबि देश की राजकन्या सुनंदा के तीन संतानें हुईं। देवापि, शान्तनु और बाह्लीक। देवापि अल्पायु थे तो शांतनु को राजा बनाया गया। राजा शांतनु की पत्नी गंगा थीं। गंगा के गर्भ से उन्हें देवव्रत पैदा हुआ।  शांतनु, गंगा के जाने के बाद सत्यवती पर मोहित हो गए थे। अपने कठिन ब्रह्मचर्य, हस्तिनापुर की रक्षा और राज वैभव त्याग देने के कठिन संकल्प की वजह से देवव्रत को भीष्म कहा गया। सत्यवती के निषाद पिता ने शांतनु के सामने शर्त रखी कि शांतनु और सत्यवती का पुत्र ही हस्तिनापुत्र का सम्राट होगा। शांतनु के लिए देवव्रत ने आजीवन ब्रह्मचारी रहने की कठिन प्रतिज्ञा ले ली।

सत्यवती के गर्भ से महर्षि पराशर ने बलपूर्वक एक संतान पैदा की थी, जिसका नाम कृष्णद्वैपायन व्यास था। यह भेद, सत्यवती ने भीष्म से तब कहा, जब उनके दोनों पुत्र विचित्रवीर्य और चित्रांगद मर गए थे। भीष्म ब्रह्मचारी थे इसलिए पुत्र उत्पत्ति के लिए तैयार नहीं हुए।

 

विचित्रवीर्य की दो पत्नियां थीं। अंबिका और अंबालिका। दोनों काशिराज की पुत्रियां थीं। राजा दुष्यंत का इक्ष्वाकुवंश खतरे में आ गया था। सत्यवती ने भीष्म से कहा कि वे अंबिका और अंबालिका से सहवास करें और वंश को आगे बढ़ाएं, नहीं तो पुरखों का ऋण नहीं चूकेगा। इक्ष्वाकुवंश मिट जाएगा। भीष्म ने कहा कि वे ब्रह्मचारी हैं, वे न राजा बनेंगे, न स्त्री का स्पर्श करेंगे।

सत्यवती ने भीष्म से कहा कि अब यह दायित्व व्यास पर डालते हैं। व्यास ने इसे स्वीकार कर लिया। उन्होंने विचित्रवीर्य की पत्नी अंबिका के साथ सहवास किया और धृतराष्ट्र गर्भ में आए। उन्होंने अम्बालिका के साथ सहवास किया तो पांडु पैदा हुए। अंबिका ने दूसरी बार खुद न जाकर अपनी दासी को व्यास के पास भेज दिया। उससे उन्हें महात्मा विदुर पैदा हुए। कुरु वंश फिर नियोग विधि से ही आगे बढ़ा।  

क्या है नियोग विधि?
नियोग विधि, संतान उत्पत्ति के लिए एक प्रक्रिया है। मनुस्मृति कहती है, 'विधवायां नियुक्तस्तु घृतातक्तो वाग्यतो निशि,
एकमुत्पादयेत् पुत्रं न द्वितीयं कथंकचन। विधवायां नियोगार्थे निवृत्ते तु यथाविधि, गुरुवच्च स्नुषावच्च वर्तेयातां परस्परम।'

नियोग विधि पर महाभारत-मनुस्मृति का क्या है मत?
मनुस्मृति और महाभारत में नियोग विधि से पैदा हुई संतानों को धार्मिक मान्यता मिली है। नियोग विधि कहती है, 'नियोग की विधि जानने वाला, संयमी पुरुष, संतान चाहने वाली विधवा स्त्री से संबंध बनाए तो उससे पैदा हुआ पुत्र, विधवा के पति का ही पुत्र माना जाएगा। विधवा स्त्री के साथ सहवास के लिए, पति के परिवार की ओर से नियुक्त पुरुष, अपने शरीर पर घी पोतकर, कुरूप अवस्था में चुप रहकर रात में सहवास करे। वह एक पुत्र पैदा करे। दूसरा पुत्र कभी न पैदा करे।

क्यों कलियुग में अमान्य है ये प्रथा?
मनुस्मृति में ही यह भी लिखा है कि नियोग विधि में कामरहित होकर, कर्तव्य विधि से विधवा स्त्री चित्त पर संयम रखे, इंद्रियों को अनासक्त रखे और नियोग प्रक्रिया को पूरा करे। जब यह प्रक्रिया हो जाए तो नियुक्त पुरुष, उस स्त्री को अपनी पुत्रवधु समझे। कलियुग में मनुष्यों के असंयमी और काम-वासना में लुप्त होने की वजह से इस प्रथा को वर्जित कर दिया गया है। 

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