देशभर में करवाचौथ का त्योहार बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना करते हुए दिनभर निर्जल व्रत रखती हैं। परंपरा के अनुसार, महिलाएं शाम को चंद्रमा के दर्शन के बाद अर्घ्य देती हैं और पति के हाथों से पानी पीकर व्रत तोड़ती हैं। हालांकि, करवाचौथ जहां हिंदू समाज की एक महत्वपूर्ण धार्मिक परंपरा मानी जाती है, वहीं सिख धर्म में इसे धार्मिक रूप से मान्यता प्राप्त व्रत नहीं माना जाता है।
करवाचौथ की शुरुआत उत्तर भारत के हिंदू परिवारों में हुई थी। इस दिन विवाहित महिलाएं का श्रृंगार करती हैं, मेहंदी रचाती हैं और ‘करवा’ यानी मिट्टी के पात्र में जल और अन्य सामग्री भरकर पूजा करती हैं। इस व्रत से जुड़ी वीरावती और करवा की कथाएं भी सुनाई जाती हैं, जिनमें पति के दीर्घायु और वैवाहिक प्रेम की कथा कही गई है।
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हिंदू में करवाचौथ की विशेषता
यह त्योहार मुख्य रूप से उत्तर भारत की विवाहित हिंदू महिलाएं मनाती हैं।
इस दिन महिलाएं सूर्योदय से चंद्रमा के दर्शन तक निर्जल व्रत रखती हैं। यानी न पानी पीती हैं न खाती हैं।
पूजा में करवा (मिट्टी या धातु का कलश), दीया, मेहंदी, श्रृंगार, सिंदूर, फूल, थाली आदि का इस्तेमाल होता है।
चंद्रमा को अर्घ्य देना और पति के हाथ से पानी पीकर व्रत खोलना इसकी एक मुख्य रस्म होती है।
इसका मूल उद्देश्य पति की लंबी उम्र, स्वास्थ्य और समृद्धि की प्रार्थना करना है।
कथा और लोकश्रुतियां जैसे वीरावती की कहानी आदि इस व्रत से जुड़ी होती हैं।
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सिख धर्म में करवाचौथ मान्यता
सिख धर्म में करवाचौथ को एक धार्मिक अनुष्ठान के रूप में नहीं देखा जाता, क्योंकि सिख धर्म में उपवास, रीत-रिवाज और पूजा के कुछ कर्म जिन्हें बाह्य धार्मिक आचरण कहा जाए, उन्हें आम तौर पर महत्व नहीं दिया जाता है।
कुछ सिख समुदायों में यह देखा जाता है कि हिंदू सांस्कृतिक प्रभाव की वजह से महिलाएं निजी चाहत या सामाजिक वातावरण के चलते करवा चौथ व्रत रखती हैं लेकिन यह सिख धर्म की मूल परंपरा के तौर पर नहीं मानी जाती है।
सिख धर्म शुद्धता, न्याय और ईश्वर की भक्ति को अधिक महत्व देता है और बाहरी अनुष्ठान जैसे व्रत, पूजा आदि पर जोर नहीं देता है।
ऐसे व्रत जिसमें देवी या अन्य भगवान की पूजा, चढ़ावा देना या अन्य धार्मिक कर्म शामिल हों, उन्हें सिख धर्मानुसार स्वीकार्य नहीं माना जाता है।
हिंदू धर्म से कैसे अलग है सिख धर्म में करवाचौथ की मान्यता
करवाचौथ हिंदू धर्म में एक बेहद पवित्र और पारंपरिक व्रत माना जाता है, जबकि सिख धर्म में इसे धार्मिक रूप से नहीं बल्कि सांस्कृतिक रूप में देखा जाता है। हिंदू महिलाओं के लिए करवाचौथ पति की लंबी उम्र, सुख और समृद्धि की कामना का पर्व है। इस दिन सुहागिन महिलाएं सूर्योदय से लेकर चांद निकलने तक निर्जल व्रत रखती हैं। शाम को वे करवा माता, गौरी माता और चंद्रमा की पूजा करती हैं। पूजा के दौरान मिट्टी के करवे में जल भरकर चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है और व्रत की कथा सुनी जाती है। यह पर्व पति-पत्नी के प्रेम, समर्पण और आस्था का प्रतीक माना जाता है।
वहीं सिख धर्म में उपवास और कर्मकांड की परंपराओं को धार्मिक दृष्टि से स्वीकार नहीं किया गया है। गुरु नानक देव जी ने उपवास और तामझाम वाले धार्मिक कर्मों का विरोध किया था। सिख धर्म में ईश्वर की भक्ति, सेवा और सच्चे कर्म को ही सर्वोच्च माना गया है। इसके बावजूद पंजाब और उत्तर भारत में कई सिख परिवार करवाचौथ को धार्मिक नहीं, बल्कि प्रेम और संस्कृति की परंपरा के रूप में मनाते हैं। वे व्रत रखते हैं और चांद देखकर पति के हाथों से जल ग्रहण करते हैं लेकिन इसे धार्मिक कर्तव्य नहीं माना जाता है।