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करवा चौथ 2025: व्रत मुहूर्त से लेकर व्रत कथा तक, जानें सबकुछ

हिंदू धर्म में करवा चौथ व्रत का विशेष महत्व बताया गया है। इस व्रत में व्रती का कथा सुनना बहुत फलदायी माना गया है, आइए जानते हैं क्या है करवा चौथ व्रत की कथा, व्रत रखने के नियम और पूजा विधि।

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प्रतीकात्मक तस्वीर: Photo Credit: AI

देशभर में करवा चौथ का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। सुहागिन (विवाहित) महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना करते हुए दिनभर निर्जल व्रत रखती हैं और रात में चांद को अर्घ्य देकर अपना व्रत खोलती हैं। परंपराओं और आस्था से जुड़ा यह पर्व न सिर्फ पति-पत्नी के बीच प्रेम का प्रतीक माना जाता है बल्कि यह भारतीय संस्कृति में नारी की समर्पण भावना और आस्था का भी सुंदर उदाहरण माना जाता है।

 

उत्तर भारत से शुरू हुई करवा चौथ की परंपरा अब पूरे देश में लोकप्रिय हो चुकी है। पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली में इसकी विशेष रौनक देखने को मिलती है। इस दिन महिलाएं सुबह सवेरे सर्गी (मायके से भेजा गया विशेष भोजन) करती हैं और सूर्योदय के बाद से चंद्रमा निकलने तक निर्जल व्रत रखती हैं। शाम के समय, सोलह शृंगार से सजी महिलाएं करवा (मिट्टी या धातु का कलश) में जल भरकर पार्वती माता और भगवान शिव की पूजा करती हैं।

 

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करवा चौथ 2025 व्रत और चंद्रोदय मुहूर्त?

वैदिक पंचांग के अनुसार, इस बार करवा चौथ का व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाएगा। इस तिथि की शुरुआत 9 अक्टूबर 2025 के दिन शाम को 5 बजकर 50 मिनट से होगी और इस तिथि का समापन 10 अक्टूबर के दिन रात को 7 बजकर 40 मिनट पर होगी। हिंदू धर्म में उदयातिथि का महत्व बताया गया है, ऐसे में व्रती करवा चौथ का व्रत 10 अक्टूबर को करेंगे।

 

पंचांग में दिए गए मुहूर्त के अनुसार, करवा चौथ के दिन यानी 10 अक्टूबर को रात में 8 बजकर 15 मिनट पर चंद्रोदय का मुहूर्त बताया गया है।

 

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करवा चौथ व्रत कथा

प्रचलित कथा के अनुसार, बहुत समय पहले इन्द्रप्रस्थपुर के एक शहर में वेदशर्मा नाम का एक ब्राह्मण रहता था। वेदशर्मा का विवाह लीलावती से हुआ था जिससे उसके सात महान पुत्र और वीरावती नाम की एक गुणवान पुत्री थी क्योंकि सात भाइयों की वह केवल एक अकेली बहन थी जिसकी वजह से वह अपने माता-पिता के साथ-साथ अपने भाइयों की भी लाड़ली थी।

 

जब वह विवाह के लायक हो गयी तब उसकी शादी एक ब्राह्मण लड़के से हुई। शादी के बाद वीरावती जब अपने माता-पिता के यहां थी तब उसने अपनी भाभियों के साथ पति की लम्बी उम्र के लिए करवा चौथ का व्रत रखा। करवा चौथ के व्रत के दौरान वीरावती को भूख सहन नहीं हुई और कमजोरी की वजह से वह बेहोश (मूर्छित) होकर जमीन पर गिर गई।

 

सभी भाइयों से उनकी प्यारी बहन की दयनीय स्थिति सहन नहीं हो पा रही थी। वह जानते थे वीरावती जो कि एक पतिव्रता नारी है चन्द्रमा के दर्शन किए बिना भोजन नहीं करेगी, चाहे उसके प्राण ही क्यों ना निकल जाएं। सभी भाइयों ने मिलकर एक योजना बनाई, जिससे उनकी बहन भोजन कर ले। उनमें से एक भाई कुछ दूर वट के पेड़ पर हाथ में छलनी और दीपक लेकर चढ़ गया। जब वीरावती को होश आया, तो उसके बाकी सभी भाइयों ने उससे कहा कि चन्द्रोदय हो गया है और उसे छत पर चन्द्रमा के दर्शन कराने ले आए।

 

वीरावती ने कुछ दूर वट के पेड़ पर छलनी के पीछे दीपक को देख विश्वास कर लिया कि चन्द्रमा पेड़ के पीछे निकल आया है। अपनी भूख से परेशान वीरावती ने तुरंत ही दीपक को चन्द्रमा समझ अर्घ अर्पण कर अपने व्रत को तोड़ा। वीरावती ने जब भोजन करना शुरू किया तो उसे अशुभ संकेत मिलने लगे। पहले कौर में उसे बाल मिला, दूसरे में उसे छींक आई और तीसरे कौर में उसे अपने ससुराल वालों से निमंत्रण मिला। पहली बार अपने ससुराल पहुंचने के बाद उसने अपने पति के मृत शरीर को पाया।

 

अपने पति के मृत शरीर को देखकर वीरावती रोने लगी और करवा चौथ के व्रत के दौरान अपनी किसी भूल के लिए खुद को दोषी ठहराने लगी। वह विलाप करने लगी। उसका विलाप सुनकर देवी इन्द्राणी जो कि इन्द्र देवता की पत्नी है, वीरावती को सान्त्वना देने के लिए पहुंची।

 

वीरावती ने देवी इन्द्राणी से पूछा कि करवा चौथ के दिन ही उसके पति की मृत्यु क्यों हुई और अपने पति को जीवित करने की वह देवी इन्द्राणी से विनती करने लगी। वीरावती का दुख देखकर देवी इन्द्राणी ने उससे कहा कि उसने चन्द्रमा को अर्घ अर्पण किये बिना ही व्रत को तोड़ा था जिसकी वजह से उसके पति की असामयिक मृत्यु हो गई। देवी इन्द्राणी ने वीरावती को करवा चौथ के व्रत के साथ-साथ पूरे साल में हर महीने की चौथ को व्रत करने की सलाह दी और उसे आश्वासित किया कि ऐसा करने से उसका पति जीवित लौट आएगा। इसके बाद वीरावती सभी धार्मिक कृत्यों और मासिक उपवास को पूरे विश्वास के साथ करती। अंत में उन सभी व्रतों से मिले पुण्य से वीरावती को उसका पति दोबारा जीवित अवस्था में मिल गया।

करवा चौथ व्रत के नियम

  • करवा चौथ का व्रत सुबह से चांद निकलने तक निर्जल रखा जाता है। इस दौरान न भोजन और न जल कुछ नही खाया-पिया जाता है।
  • सावधानियां जैसे काले और सफेद रंग न पहनना, भारी काम न करना, नकारात्मक बातें न करना आदि परंपरागत तौर पर माने जाते हैं। 
  • सुबह जल्दी उठकर मायके की ओर से भेजा गया खाना सूर्योदय से पहले खाएं (अगर परंपरा हो), जिससे व्रत आसान हो सके। 
  • मेहंदी लगाना, शृंगार करना, पूजा-थाली सजाना आदि सभी नियमों में शामिल हैं। 
  • व्रत को संकल्पपूर्वक और विधिपूर्वक करना चाहिए। इस दिन किसी भी तरह की छल या मिथ्या वाली बातें नहीं करनी चाहिए। 

करवा चौथ पूजा विधि

संध्या की तैयारी


शाम के समय, महिलाएं सज-धज कर विधिपूर्वक पूजा स्थान तैयार करती हैं, जैस- पवित्र आसन, पूजा थाल, दीपक, फूल आदि। 

 

पूजा सामग्री और करवा

  • करवा में जल और चावल आदि रखा जाता है। इसे पूजा थाली में सजाया जाता है। 
  • साथ ही दीपक, मिट्टी या धातु का करवा, मेहंदी, फूल, सिंदूर आदि इस्तेमाल किए जाते हैं। 

कथा और भजन


पूजा के समय करवा चौथ की कथा सुनना आवश्यक माना जाता है। महिलाएं कथा सुनती/सुनाती हैं और भजन-कीर्तन भी करती हैं।

 

चंद्र दर्शन एवं अर्घ्य

 

जैसे ही चांद दिखाई देता है, महिलाएं करवा से जल लेकर चांद को अर्घ्य देती हैं। इसके बाद वे करवा से पानी पति को दिखाती हैं और फिर पति के हाथों व्रत खोलती हैं। 

 

व्रत खोलना

 

व्रत उसी समय खोला जाता है, जब चांद दिखाई दे। पति से जल ग्रहण करना और फिर भोजन करना व्रत खोलने की मुख्य क्रियाएं हैं।

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