कुरुवंश के महाराज पांडु और धृतराष्ट्र तो भाई थे। पांडु का विवाह कुंती और माद्री से हुआ। धृतराष्ट्र का विवाह गांधारी से हुआ। पांडु के पुत्र पांडव कहलाए और धृतराष्ट्र के पुत्र कौरव कहलाए। महाराज पांडु प्रतापी राजा थे। एक दिन उन्होंने जंगल में हिरण और हिरणी के सहवास को देख लिया। पांडु ने सोचा कि यह शिकार का उत्तम समय है, उन्होंने तीर चलाकर शिकार कर लिया। हिरण-हिरणी के वेश में ऋषि किंदम थे। उन्होंने लज्जावश अपनी मृग बनकर अपनी मृगी के साथ सहवास किया था। प्रणय के समय तुमने मेरा वध किया है, इसलिए जब भी तुम अपनी पत्नी के साथ अंतरंग होगे, तुम्हारी मौत हो जाएगी। पांडु डर गए। एक दिन वन में वे माद्रि के साथ टहल रहे थे, तभी वे अंतरंग होने के लिए मचल उठे। उन्होंने माद्रि के साथ सहवास किया और मृत्यु हो गई।
नियोग विधि से पांडु की 5 संतानें हुईं। युद्धिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव। युद्धिष्ठिर, भीम और अर्जुन कुंती के पुत्र थे, नकुल और सहदेव माद्रि के। पांडु की मृत्यु के बाद राज-पाट उनके ज्येष्ठ पुत्र युधिष्ठिर को मिल गया। उनकी शिक्षा-दीक्षा पूरी हुई और वे धर्मशास्त्र में पांरगत हो गए। वे बहुत बलशाली और धर्मप्रिय थे इसलिए पूरे भारतवर्ष में उनकी ख्याति फैल गई। इसे देखकर युद्धिष्ठिर के पुत्र नाराज हो गए। उन्हें कौरवों की यश और कीर्ति रास नहीं आई।
पांडवों से जलते थे कौरव
पांडवों की प्रगति कौरवों को सहन नहीं हुई। दुर्योधन, दु:शासन, कर्ण और शकुनी आए दिन पांडवों को मारने का यत्न करने लगे। शकुनि दुर्बुद्धि था। उसने भीम को खाने में जहर दिया। भीमसेन ने वह भी पचा लिया। दुर्योधन ने मूर्छित भीम को बांधकर गंगा के गहरे जल में फेंक दिया। वह भागकर नगर में लौट आया। जब भीम की आंखें खुलीं तो वे जल से बाहर आ गए। विदुर हमेशा पांडवों को सीख देते और समझाते थे कि प्रतिकार न करो। दुर्योधन ने भीम को विषैले सांप से डंसा दिया।
लाक्षागृह में वध की हुई थी कोशिश
पांडवों के विध्वंस के लिए कौरवों ने लाक्षागृह का निर्माण कराया। धृतराष्ट्र ने पांडवों को वरणावत के लक्षागृह में रहने का आदेश दे दिया। पांडव अपनी माता कुंती के साथ हस्तिनापुर छोड़कर जाने लगे। विदुर ने कहा कि यह उन्हें मारने की साजिश है तो पांडव सतर्क हो गए। वे लाक्षागृह में सावधानी से एक साल तक रहने लगे। विदुर ने कुछ श्रमिकों को भेजा, जिससे वे लाक्षागृह से बाहर भागने के लिए एक सुरंग खोद दें। सुंरंग बन गई तो एक दिन दुर्योधन ने लाक्षागृह में आग लगवा दी। पांडव वहां से किसी तरह भाग निकले। वहां से भागे तो भीमसेन की भिंडत हिडिंब से हुई। उन्होंने उसे मार डाला और उसकी बहन हिडिंबा से विवाह कर लिया।
वन-वन भटके पांडव
पांडव एकचक्रा नगरी में भी कुछ साल रहे। द्रौपदी को स्वंयवर में अर्जुन ने जीत लिया। मां के वरदान की वजह से द्रौपदी पांचों पांडवों की पत्नी हुईं। द्रौपदी से विवाह के बाद पांडव 1 साल तक पांचाल में ही रहे, फिर हस्तिनापुर लौटे। धृतराष्ट्र और भीष्म ने पांडवों से कहा कि तुम लोग अब खांडवप्रस्थ में रहो। पांडव खांडवप्रस्थ चले गए। उन्होंने राज्य विस्तार किया। चारो दिशाओं में उनकी जयकार गूंजने लगी। अर्जुन ने सिद्धियां हासिल कीं। वे किसी एक वचन की वजह से 12 वर्ष 1 महीने तक अलग-अलग लोकों में घूमते रहे।
पांडवों का महल देखकर मोहित हो गया था दुर्योधन
मय दानव ने पांडवों का भव्य महल बना दिया। यह बात दुर्योधन को पंसद नहीं आई। उसने जुआ खेलने का षड्यंत्र रच लिया। पांडव जुआ खेलने लगे। वे जुए में सबकुछ हार बैठे। उन्होंने द्रौपदी को अपमानित किया। पांडवों को 12 वर्ष का वनवास और 1 वर्ष का अज्ञातवास हुआ। पांडव जब अज्ञातवास पूरा करके हस्तिनापुर अपना राज्य मांगने वापस लौटे तो उनके साथ दुर्योधन ने छल कर लिया।
5 गांव के लिए हो गया महाभारत
पांडवों ने केवल 5 गांव मांगे थे। कौरवों ने उसे भी देने से इनकार कर दिया। फिर महाभारत की नींव पड़ी। पांडव ने अपने ही कुल के कौरवों का संहार कर दिया। राज्य के लिए वंशनाश हो गया। इस युद्ध में कौरव हारे थे और पांडव विजयी घोषित हुए थे। यह मानवता का सबसे शर्मनाक युद्ध था, जिसमें भाई-भाई की हत्या कर रहे थे। एक कुनबे की कलह में पूरी दुनिया शामिल हो गई थी।