दीपों का पर्व एक बार फिर वाराणसी के घाटों को जगमगाने वाला है। इस बार यह रोशनी देवताओं के स्वागत के लिए है। दीपावली के 15 दिन बाद मनाई जाने वाली देव दीपावली को देवों की दीवाली कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन देवता स्वर्ग से उतरकर गंगा के पवित्र घाटों पर स्नान करते हैं और भगवान शिव की आराधना करते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, इसी दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध करके देवताओं को उसके अत्याचारों से मुक्त कराया था। इस जीत की खुशी में देवताओं ने गंगा तटों पर दीप जलाकर उत्सव मनाया था, तभी से यह परंपरा चली आ रही है।
हर साल कार्तिक पूर्णिमा के दिन वाराणसी के घाटों पर लाखों दीप जलाकर देव दीपावली मनाई जाती है। गंगा तटों से लेकर मंदिरों तक आस्था का सागर उमड़ पड़ता है। वैदिक ग्रंथों में इसे प्रकाश, पवित्रता और आध्यात्मिक विजय का प्रतीक माना गया है। दीपावली जहां अंधकार पर प्रकाश की जीत का प्रतीक है, वहीं देव दीपावली देवों की उस दिव्य विजय की स्मृति है, जब धरती स्वयं देवलोक बन जाती है। इस दिन श्रद्धालु गंगा स्नान करते हैं, दीपदान करते हैं और भगवान शिव के जयघोष से काशी गूंज उठती है। इस साल 5 नवंबर 2025 के दिन देव दीपावली मनाई जाएगी।
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देव दीपावली से जुड़ा वैदिक-धार्मिक महत्व
- देव दीपावली के दिन माना जाता है कि सभी देवता स्वर्ग से धरती पर उतरते हैं और पवित्र गंगा तटों पर स्नान करते हैं।
- कार्तिक पूर्णिमा का दिन वैदिक रूप से बहुत पवित्र माना जाता है। इस दिन व्रत, स्नान और दीपदान (दीये जलाना) की परंपरा विशेष रूप से प्रचलित है।
पौराणिक कथा
मुख्य कथा के अनुसार, इस दिन भगवान शिव ने दुष्ट त्रिपुरासुर (तीनों पौरुषों-त्रियपुरों के असुर) का वध किया था। इसके बाद देवताओं ने धरती पर गंगा तटों पर दीपदान किया था। इस विजय के उपलक्ष्य में बनारस (वाराणसी) के घाटों को लाखों दीपों से सजाया जाता है और उसे त्रिपुरोत्सव या देवों-दीपावली कहा जाता है। वाराणसी के अलावा अन्य स्थानों पर भी स्थित गंगा घाटों पर देव दीपावली मनाई जाती है।
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क्यों दीपावली के 15 दिन बाद मनाई जाती है देव दीपावली?
दीपावली अमावस्या (अंधकार का अंत और प्रकाश की शुरुआत) को चिह्नित करती है। इसके बाद कार्तिक शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि की परायणता की वजह से लगभग 15 दिन बाद देव दीपावली आती है।
इस अंतराल में दीपावली की खुशियों के बाद एक अन्य अध्याय खुलता है, जहां मानव-लोक की दीवाली के बाद देवताओं की दीवाली मनाई जाती है। इसलिए इसे 15 दिन बाद मनाना प्रतीकात्मक रूप से मानव से देव तक यात्रा का विधान देता है।