बिहार में गया एक ऐसा पवित्र स्थल है जो हिंदू और बौद्ध दोनों ही धर्मों के लिए आस्था और श्रद्धा का केंद्र माना जाता है। पितृपक्ष के अवसर पर हर साल लाखों हिंदू श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं और पिंडदान करके अपने पितरों की आत्मा की शांति और मोक्ष की कामना करते हैं। धार्मिक मान्यता है कि गया में किया गया पिंडदान ही पितृऋण से मुक्ति दिलाता है। यही वजह है कि रामायण काल से इसका महत्व और भी बढ़ गया। मान्यता है कि भगवान राम ने माता सीता के साथ यहां राजा दशरथ के लिए पिंडदान किया था। गया का विष्णुपद मंदिर भी खास है, जहां भगवान विष्णु के चरणचिह्न स्थापित हैं। कहा जाता है कि यहीं पर भगवान ने गयासुर नामक राक्षस को अपने चरणों से दबाया था, जिसके बाद यह भूमि पवित्र तीर्थ बन गई।
सिर्फ हिंदू ही नहीं, बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए भी गया उतना ही महत्वपूर्ण है। बोधगया में ही राजकुमार सिद्धार्थ ने बोधिवृक्ष के नीचे कठोर तपस्या कर ज्ञान प्राप्त किया और बुद्ध कहलाए। यही वजह है कि यह स्थान बौद्धों का सबसे बड़ा तीर्थ स्थान माना जाता है। महाबोधि मंदिर को विश्व धरोहर स्थल का दर्जा प्राप्त है और यहां हर साल दुनिया भर से लाखों बौद्ध श्रद्धालु आते हैं।
यह भी पढ़ें: सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्र: मंत्र, महत्व से अर्थ तक, सब जानिए
हिंदू धर्म में गया का महत्व
- हिंदू धर्म के अनुसार, गया पितृपक्ष श्राद्ध और पिंडदान के लिए सबसे बड़ा तीर्थ है। ऐसा माना जाता है कि गया में पिंडदान करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और वे मोक्ष प्राप्त करते हैं। ब्रह्मांड पुराण, वायु पुराण और गरुड़ पुराण जैसे ग्रंथों में गया महात्म्य का उल्लेख मिलता है।
- गया में फल्गु नदी के किनारे पिंडदान करने की परंपरा है।
- मान्यता है कि स्वयं भगवान राम ने यहां सीता माता के साथ पितरों का पिंडदान किया था।
- यहां विष्णुपद मंदिर विशेष प्रसिद्ध है, जहां भगवान विष्णु के चरणचिह्न स्थापित हैं।
बौद्ध धर्म में गया का महत्व
- बौद्ध धर्म में गया विशेषकर बोधगया की वजह से पवित्र है।
- यहीं पर राजकुमार सिद्धार्थ ने कठिन तपस्या के बाद बोधिवृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त कर बुद्धत्व हासिल किया था।
- महाबोधि मंदिर, बोधिवृक्ष और बोधगया का पूरा क्षेत्र आज भी बौद्ध धर्मावलंबियों का सबसे बड़ा तीर्थ है।
- दुनिया भर से बौद्ध अनुयायी यहां ध्यान, साधना और दर्शन करने आते हैं।
विशेषताएं
- गया एकमात्र ऐसा स्थल है जो हिंदुओं के लिए पितृपक्ष का सबसे बड़ा तीर्थ और बौद्धों के लिए ज्ञान प्राप्ति का पावन स्थल माना जाता है।
- यहां साल भर देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु और पर्यटक आते हैं।
- गया को मोक्ष और ज्ञान दोनों से जोड़ा गया है – पितरों के मोक्ष के लिए हिंदू यहां आते हैं और आत्मज्ञान की तलाश में बौद्ध अनुयायी यहां आते हैं।
यह भी पढ़ें: जितिया व्रत की कथा क्या है? शुभ मुहूर्त भी जान लीजिए
हिंदू धर्म की मान्यता
- पितृमोक्ष स्थल : मान्यता है कि गया में पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष मिलता है और वे स्वर्गलोक की प्राप्ति करते हैं।
- शास्त्रीय प्रमाण : गरुड़ पुराण और वायु पुराण में कहा गया है कि गया में पिंडदान करने से ही पितृऋण से मुक्ति मिलती है।
- भगवान राम की कथा : कथा है कि भगवान राम ने सीता माता के साथ यहां अपने पिता राजा दशरथ के लिए पिंडदान किया था। तभी से गया में श्राद्ध का महत्व और भी बढ़ गया।
- विष्णुपद मंदिर : यहां भगवान विष्णु के चरणचिह्न हैं। मान्यता है कि यहीं पर भगवान विष्णु ने राक्षस गयासुर को अपने चरणों से दबाकर पवित्र किया था।
बौद्ध धर्म की मान्यता
- ज्ञान की भूमि : बौद्ध मान्यता के अनुसार, सिद्धार्थ गौतम ने गया (बोधगया) में बोधिवृक्ष के नीचे तपस्या करके बुद्धत्व प्राप्त किया था।
- चार प्रमुख तीर्थों में से एक : बुद्ध ने अपने अनुयायियों को जीवन के चार पवित्र स्थान बताए – लुंबिनी, बोधगया, सारनाथ और कुशीनगर। मान्यता है कि इनमें बोधगया सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि यहीं उन्हें निर्वाण का बोध हुआ था।
- विश्व धरोहर स्थल : महाबोधि मंदिर को यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल का दर्जा दिया है और यह बौद्ध आस्था का प्रमुख केंद्र है।