जितिया व्रत की कथा क्या है? शुभ मुहूर्त भी जान लीजिए
धर्म-कर्म
• NEW DELHI 14 Sept 2025, (अपडेटेड 14 Sept 2025, 7:31 AM IST)
बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश सहित देश के कई हिस्सों में माताएं आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जितिया व्रत रखती हैं। आइए जानते हैं इस व्रत से जुड़ी कथाएं, पूजा विधि और वैदिक मुहूर्त

प्रतीकात्मक तस्वीर: Photo Credit: AI
बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश सहित देश के कई हिस्सों में माताएं आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जितिया व्रत रखती हैं। इसे जीवित्पुत्रिका व्रत भी कहा जाता है। इस व्रत का महत्व संतान की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि से जुड़ा है। मान्यता है कि इस दिन निर्जल उपवास रखने से संतान की आयु बढ़ती है और जीवन के संकट दूर होते हैं। इस व्रत की पौराणिक कथा महाभारत काल से जुड़ी है। इस साल जितिया व्रत 14 सितंबर 2025 को मनाया जाएगा।
इस व्रत की खासियत यह है कि माताएं पूरे दिन निर्जल व्रत रखती हैं और अगले दिन पारण कर व्रत का समापन करती हैं। पूजा के दौरान जीवित्पुत्रिका माता और जिमूतवाहन की आराधना की जाती है। पूजा-पाठ में मिट्टी या लकड़ी की प्रतिमा बनाकर दीपक, जल, फल, पुष्प और नैवेद्य अर्पित किया जाता है। इसके बाद व्रत कथा कर संतान की रक्षा और दीर्घायु की मंगलकामना की जाती है।
यह भी पढ़ें: कौन हैं मिजोरम के पथियन देवता, जिनका जिक्र पीएम मोदी ने किया है?
जितिया व्रत 2025 वैदिक मुहूर्त
- सूर्योदय - सुबह 06 बजकर 05 मिनट पर
- सूर्यास्त - शाम 06 बजकर 27 मिनट पर
- चन्द्रोदय- देर रात 11 बजकर 18 मिनट पर
- चंद्रास्त- दोपहर 01 बजकर 11 मिनट पर
- ब्रह्म मुहूर्त - सुबह 04 बजकर 33 मिनट से 05 बजकर 19 मिनट तक
- विजय मुहूर्त - दोपहर 02 बजकर 20 मिनट से 03 बजकर 09 मिनट तक
- गोधूलि मुहूर्त - शाम 06 बजकर 27 मिनट से 06 बजकर 51 मिनट तक
- निशिता मुहूर्त - रात में 11 बजकर 53 मिनट से 12 बजकर 40 मिनट तक
जितिया व्रत कथा
जितिया की पौराणिक कथा अनुसार किसी वन में एक चील और सियारिन रहती थी। दोनों में गहरी दोस्ती थी और वे हर काम को मिल-बांट के किया करती थीं। एक बार कुछ महिलाएं जंगल में आई जो जीवित्पुत्रिका व्रत की आपस में बात कर रही थीं। चील के मन में इस व्रत के बारे में जानने की जिज्ञासा हुई। वह महिलाओं के पास गई और उनसें व्रत के बारे में पूछने लगी। महिलाओं ने जितिया व्रत के विधान के बारे में चील को सारी जानकारी दी।
चील ने जाकर इस व्रत के बारे में अपनी मित्र सियारिन को बताया। जिसके बाद दोनों ने जितिया माता का व्रत और पूजन करने का निर्णय लिया। चील और सियारिन ने जितिया माता का व्रत का संकल्प लिया और शाम को पूजा की लेकिन पूजा के बाद ही चील और सियारिन को भूख लगने लगी।
सियारिन को भूख बर्दास्त नहीं हुई और वह जंगल में शिकार करने चली गई। सियारिन जब मांस को खा रही थी, तब चील ने उसे देख लिया और उसने सियारिन की बहुत डांट लगाई। चील ने ये व्रत पूरी विधि से पूर्ण किया। फिर अगले जन्म में सियारिन और चील का जन्म बहन-बहन के रूप में, एक प्रतापी राजा के यहां हुआ। सियारिन का विवाह एक राजकुमार से हुआ और चील का विवाह राज्य मंत्री के पुत्र से हुआ।
कुछ समय बीता तो सियारिन ने एक पुत्र को जन्म दिया लेकिन जन्म के कुछ दिन बाद ही उसके पुत्र की मृत्यु हो गई। इसके बाद चील ने भी एक पुत्र को जन्म दिया, जो जीवित और स्वास्थ्य रहा। यह देख सियारिन को अपनी बहन चील से ईर्ष्या होने लगी।
यह भी पढ़ें: राम जी का रंग सांवला है या नीला? प्रेमानंद ने दिया शास्त्रीय प्रमाण
जलन में आकर सियारिन ने अपने बहन के पुत्र और पति को मरवाने की कोशिश की लेकिन दोनों ही बच गए। एक दिन देवी मां सियारिन के सपने में आई और उन्होंने सियारिन से कहा 'यह तुम्हारे पूर्व जन्म के कर्म का फल है, अगर तुम अपनी परिस्थिति ठीक करना चाहती हो तो मां जीतिया की व्रत और उपासना करो।'
सुबह उठकर इस सपने के बारे में सियारिन ने अपने पति को बताया। सियारिन के पति ने यह सुन सियारिन को यह व्रत करने के लिए कहा और उसकी बहन चील से माफी मांगने को बोला। इसके बाद सियारिन चील के घर गई और उससे अपने गलतियों की माफी मांगी। सियारिन को उसकी गलतियों पर पछतावा देखकर चील ने उसे माफ कर दिया।
अगले साल जब जितिया व्रत पड़ा तो यह व्रत सियारिन और उसकी बहन चील दोनों ने एक साथ रखा। माता जितिया ने प्रसन्न होकर सियारिन को पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद दिया। कुछ दिनों बाद ही सियारिन ने एक सुंदर बालक को जन्म दिया। इसके बाद दोनों बहन प्रेम भाव से खुशी-खुशी रहने लगी।
जितिया व्रत की दूसरी कथा
जब वृद्धावस्था में जीमूत वाहन के पिता ने अपना सारा राजपाठ त्यागकर वानप्रस्थ आश्रम जाने का निर्णय लिया, तब जीमूत वाहन को राजा बनने में कोई रुचि नहीं थी। इसलिए उन्होंने अपने साम्राज्य को अपने भाइयों को सौंपकर अपने पिता की सेवा करने के लिए जंगल की ओर प्रस्थान किया। जीमूत वाहन का विवाह मलयवती नामक एक राजकन्या से हुआ। एक दिन, जीमूत वाहन जब जंगल में जा रहे थे तो उन्हें एक बूढ़ी महिला रोते हुए दिखी। जीमूतवाहन को पता चला कि वह नागवंश की स्त्री है। वृद्ध महिला ने बताया कि नागों ने पक्षियों के राजा गरुण को रोजाना खाने के लिए नागों की बलि देने का वचन दिया है और इस बार उनके बेटे शंखचूड़ की बारी है।
यह सुन जीमूत वाहन ने महिला को कहा कि वह स्वयं अपनी बलि दे देंगे। इसके बाद, जीमूत वाहन ने शंखचूड़ से लाल कपड़ा लिया और वह अपनी बलि देने के लिए चट्टान पर लेट गए। जब गरुण आए, तो उन्होंने लाल कपड़े में ढके जीव को देखा और वह उसे पहाड़ की ऊंचाई पर उठा ले गए। पंजों में जकड़े हुए जब पीड़ा की वजह से जीमूतवाहन कराहने लगे, तब गरुड़ की उनपर नजर पड़ी और उन्होंने जीमूतवाहन से पूछा कि वह कौन हैं और नागों के स्थान पर वह क्या कर रहे हैं। इसके बाद जीमूतवाहन ने गरुड़ राज को पूरी बात बताई। जीमूत वाहन की बहादुरी और त्याग से गरुण प्रसन्न हुए।
इसके बाद गरुड़ राज ने न केवल जीमूत वाहन को जीवनदान दिया बल्कि यह भी प्रतिज्ञा ली कि वह आगे से नागों की बलि नहीं लेंगे। कहते हैं इसी घटना के बाद से जीमूत वाहन की पूजा की परंपरा शुरू हुई।
यह भी पढ़ें: पितृपक्ष में कौवे को भोजन कराने के शास्त्रीय नियम क्या हैं?
जितिया व्रत की तीसरी कथा
जितिया व्रत की एक कथा महाभारत काल से जुड़ी है। कहते हैं महाभारत युद्ध में अपने पिता गुरु द्रोणाचार्य की मृत्यु का बदला लेने के लिए अश्वत्थामा पांडवों के शिविर में घुस गया। उसने शिविर के अंदर पांच लोग को सोया पाए, अश्वत्थामा ने उन पांच लोगों को पांच पांडव समझकर मार दिया लेकिन वे द्रोपदी और पांडवों की पांच संतानें थीं। उसके बाद अुर्जन ने अश्वत्थामा की दिव्य मणि उसके माथे से निकाल ली।
अश्वत्थामा ने बदला लेने के लिए अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे को मारने की कोशिश की। जिसके लिए उसने उत्तरा के गर्भ पर ब्रह्मास्त्र से वार किया। तब भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तरा की अजन्मी संतान को फिर से जीवित कर दिया। दोबारा जीवित होने की वजह से उसका नाम जीवित पुत्र पड़ा।
श्री कृष्ण ने उत्तरा की भी रक्षा की थी इसी वजह से वह जीवितपुत्रिका कहलाईं। ऐसी मान्यता है कि इस घटना के बाद से ही जीवितपुत्रिका या जितिया व्रत का आरंभ हुआ।
पूजा कैसे करनी है?
- व्रती को स्नान कर साफ कपड़े पहनने चाहिए।
- आंगन या पूजा स्थान पर व्रत की वेदी सजाई जाती है।
- मिट्टी या लकड़ी की प्रतिमा बनाकर जीवित्पुत्रिका माता और जिमूतवाहन की पूजा की जाती है।
- दीपक जलाकर, जल, फल, पुष्प और नैवेद्य अर्पित किए जाते हैं।
- कथा सुनना और संतान की मंगलकामना के लिए प्रार्थना की जाती है।
- यह व्रत निर्जल रखा जाता है और अगले दिन पारण करके पूरा किया जाता है।
और पढ़ें
Copyright ©️ TIF MULTIMEDIA PRIVATE LIMITED | All Rights Reserved | Developed By TIF Technologies
CONTACT US | PRIVACY POLICY | TERMS OF USE | Sitemap