भगवान श्रीराम के स्वरूप को लेकर अक्सर ग्रंथों और कवियों ने अलग-अलग उपमाएं दी हैं लेकिन संत प्रेमानंद महाराज ने हाल ही एक भजन कार्यक्रम के दौरान इस सवाल का जवाब रामचरित मानस की चौपाई का उदाहरण देते हुए बताया है। जब एक भक्त ने प्रश्न किया कि श्रीराम का वास्तविक रंग क्या है तब प्रेमानंद जी ने कहा कि श्रीराम का रंग न तो पूरी तरह सांवला है और न ही नीला वह अनमोल हैं, जिनका वास्तविक स्वरूप किसी भी प्राकृतिक रंग या रूप में पूरी तरह परिभाषित नहीं किया जा सकता है।
प्रेमानंद जी ने कहा, 'श्रीरामचरितमानस में तुलसीदासजी ने नील सरोरुह श्याम और घनश्याम जैसे विशेषणों का इस्तेमाल किया है, जो केवल प्रभु की श्यामता की झलक भर को दर्शाते हैं। न की भगवान के वास्तविक रंग को दर्शाते हैं।' प्रेमानंद महाराज का कहना है कि भगवान राम के स्वरूप की तुलना प्रकृति के किसी भी दृश्य से नहीं की जा सकती है। चाहे वह मोर के कंठ की नीलिमा हो या घनघोर बादल का कालापन ये सिर्फ श्रीराम के रंग की भावना को परिभाषित करने के लिए बताया गया है।
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प्रेमनंद महाराज ने किया श्रीराम के रंग का वर्णन
प्रेमानंद महाराज के अनुसार, 'भगवान राम का रंग न तो पूरी तरह सांवला है और न ही नीला है, बल्कि वह अनमोल हैं। उन्होंने कहा, भगवान राम के स्वरूप का वर्णन प्रकृति के किसी भी रंग से नहीं किया जा सकता है, प्रेमानंद जी ने कहा रामचरित मानस में केवल श्रीराम के स्वरूप की भव्यता को समझने का एक तरीका बताया गया है। श्री रामचरितमानस में नील सरोरुह श्याम और घनश्याम जैसे शब्द उनकी श्यामता को दर्शाते हैं लेकिन वह किसी भी प्राकृतिक रंग जैसे मोर के कंठ की नीलिमा या नवीन मेघ के कालेपन से परे हैं।'
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प्रेमानंद महाराज की व्याख्या
अनुपम स्वरूप:
भगवान का स्वरूप अनमोल है, यानी उनकी तुलना किसी से नहीं की जा सकती।
प्रकृति से अलग:
प्रकृति के किसी भी रंग को भगवान के श्री अंग की श्यामता से जोड़कर नहीं देखा जा सकता है।
शास्त्रीय प्रमाण:
रामचरितमानस में 'नील सरोरुह श्याम' और 'घनश्याम' जैसे शब्द भगवान राम के रंग का वर्णन करते हैं।
भावना और उदाहरण:
प्रेमानंद जी ने कहा, रामचरित मानस में इस्तेमाल किए गए शब्द भगवान की श्यामता की भावना को समझाते है, जिससे भक्तों श्रीराम के स्वरूप की कल्पना कर सके लेकिन यह वास्तव में उनका वास्तविक रंग नहीं है। भगवान का स्वरूप प्राकृतिक किसी भी उदाहरण में फिट नहीं बैठता, वह अद्वितीय हैं।