भारतीय सनातन संस्कृति की नींव वेदों पर आधारित कही जाती है। वेद प्राचीनतम धार्मिक ग्रंथ माने जाते हैं जो न केवल धार्मिक बल्कि वैज्ञानिक, सामाजिक, और दार्शनिक ज्ञान से भी परिपूर्ण हैं। भारत में चार वेदों की परंपरा है- ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। हालांकि, कई विद्वान और परंपराएं चार वेदों के साथ-साथ पांचवें वेद की भी चर्चा करते हैं। बता दें कि आध्यात्मिक दृष्टि से ‘महाभारत’ को पंचम वेद कहा गया है, जिसके रचयता स्वयं महर्षि वेदव्यास हैं। आइए जानते हैं, पांचवां वेद किस ग्रंथ को कहा जाता है।
चार वेदों की विशेषता
ऋग्वेद (ज्ञान का वेद): ऋग्वेद सबसे प्राचीन वेद है। इसमें लगभग 10,552 ऋचाएं (मंत्र) और 1,028 सूक्त हैं, जो देवताओं की स्तुति के रूप में रचे गए हैं। इसमें अग्नि, इंद्र, वरुण, सोम जैसे देवताओं की प्रशंसा की गई है। यह वेद धार्मिक आस्था, यज्ञ की महिमा, प्रकृति की शक्तियों और मानव जीवन के मूल सिद्धांतों पर आधारित है।
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यजुर्वेद (कर्म का वेद): यजुर्वेद का संबंध मुख्य रूप से यज्ञ और धार्मिक अनुष्ठानों से है। इसमें वैदिक कर्मकांडों में बोले जाने वाले मंत्र और उनके विधियों के बारे में बताया गया है। यह वेद दो भागों में है – कृष्ण यजुर्वेद और शुक्ल यजुर्वेद। यजुर्वेद यह सिखाता है कि कैसे धार्मिक अनुष्ठानों को विधिपूर्वक संपन्न किया जाए।
सामवेद (संगीत का वेद): सामवेद को “संगीत का जनक” भी कहा जाता है। इसमें ऋग्वेद की ऋचाओं को गीत के रूप में प्रस्तुत किया गया है। इसका प्रयोग विशेष रूप से यज्ञों में मंत्रों को गाने में होता है। यह वेद बताता है कि संगीत और स्वर कैसे आध्यात्मिक अनुभव को गहरा बना सकते हैं।
अथर्ववेद (जीवन का वेद): अथर्ववेद में जीवन के व्यवहारिक और लोकजीवन से जुड़े विषयों पर ध्यान दिया गया है। इसमें औषधियों, रोग-निवारण, तंत्र-मंत्र, सामाजिक व्यवस्था, नीति, विवाह, कृषि आदि का उल्लेख मिलता है। यह वेद जीवन की सुरक्षा और समृद्धि के उपाय बताता है।
महाभारत को पांचवां वेद क्यों कहा गया?
धार्मिक दृष्टि से देखा जाए तो महाभारत केवल एक युद्ध कथा नहीं है, बल्कि यह धर्म, राजनीति, न्याय, नीति, परिवार, मित्रता, भक्ति, त्याग और आत्मज्ञान जैसे कई विषयों को प्रस्तुत करता है। साथ ही इसमें 1 लाख से ज्यादा श्लोक हैं और यह विश्व का सबसे बड़ा महाकाव्य है।
इसके साथ वेदों की भाषा संस्कृत में कठिन थी लेकिन महाभारत को सरल भाषा में और कथा रूप में लिखा गया, जिससे सामान्य व्यक्ति भी धर्म और नीति के गूढ़ ज्ञान को समझ सके।
महाभारत का सबसे महत्वपूर्ण भाग ‘गीता’ है, जो श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच संवाद के रूप में है। इसमें जीवन का गूढ़ दर्शन, कर्तव्य, आत्मा, कर्म और मोक्ष का ज्ञान दिया गया है, जो अन्य चारों वेदों में भी उपस्थित है।
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महाभारत को पंचम वेद इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि महर्षि वेदव्यास ने ही सभी वेदों की रचना की और महाभारत की रचना भी उनके द्वारा की गई। उन्होंने स्वयं इसे ‘पंचम वेद’ कहा, क्योंकि यह वेदों के गूढ़ ज्ञान को कथा के माध्यम से जन-जन तक पहुंचाने का माध्यम बना।
महाभारत में दी गई प्रमुख शिक्षाएं
- महाभारत बताया गया है कि परिस्थितियां चाहे जैसी भी हों, अपने धर्म और कर्तव्य का पालन करना चाहिए। अर्जुन को श्रीकृष्ण ने यही ज्ञान दिया कि युद्ध भूमि में भी अपने धर्म से पीछे नहीं हटना चाहिए।
- साथ ही दुर्योधन का लोभ और शकुनि की चालबाजी पूरे कुरुवंश के विनाश का कारण बनी। यह सिखाता है कि अहंकार, ईर्ष्या और लोभ अंत में विनाश ही लाते हैं। इसके साथ द्रौपदी के चीरहरण की घटना ने पूरे युद्ध की नींव रखी। इससे यह शिक्षा मिलती है कि जब नारी का अपमान होता है, तो समाज का पतन निश्चित होता है।
- साथ ही युधिष्ठिर का धर्मप्रिय स्वभाव और भीष्म, विदुर, कृष्ण जैसे चरित्र नीति और न्याय के आदर्श प्रस्तुत करते हैं। यह महाकाव्य यह बताता है कि केवल शक्ति नहीं, नीति भी जरूरी है। महाभारत का मूल संदेश है- ‘कर्म करो, फल की चिंता मत करो।’ यही गीता का सिद्धांत है जो आज भी जीवन में प्रासंगिक है।
Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।