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समाज ने कहा 'विधवा', दी प्रताड़ना, वृंदावन में कैसे होती है उनकी होली?

होली रंगों का त्योहार है और हर किसी को रंगों का हक है। ऐसे में विधवाओं की होली कैसे होती है और कब से इसकी शुरुआत हुई, आइये समझें।

Uttar Pradesh Holi Event

विधवाओं की होली, Photo Credit: AI Generated pic

इस साल 14 मार्च को पूरे देश में होली मनाई जा रही है। इस अवसर पर गली-मोहल्ले से लेकर सड़कों पर रंगों और गुलाल से लोग खुशी-खुशी होली मनाते हैं। हालांकि, इस होली के अवसर पर समाज का एक ऐसा भी अंग है जो इन रंगों से हमेशा ही अछूता रहा है।

 

हम बात कर रहे हैं उन विधवाओं की जो होली जैसे उत्सव पर घर के अंदर पर बंद रहती है ताकि उनकी बेरंग जिदंगी में कोई रंग न लग जाए। हालांकि, धीरे-धीरे समय बदल रहा है और अब इन विधवाओं को भी होली खेलने का हक मिल रहा है। सती प्रथा का अंत होने के बाद, हजारों विधवाओं ने वृंदावन को अपना नया ठिकाना बना लिया है। 

 

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अनोखी और भावनात्मक परंपरा

वृंदावन में विधवाओं की होली एक अनोखी और भावनात्मक परंपरा बन चुकी है। समाज में विधवाओं को अक्सर अलग-थलग रखा जाता है लेकिन वृंदावन में यह परंपरा उन्हें रंगों से भरपूर जीवन जीने का अवसर देती है।

 

क्यों खास है विधवाओं की होली?

पहले के समय में विधवाओं को सफेद कपड़े पहनने पड़ते थे और उन्हें रंगों से दूर रखा जाता था। लेकिन 2013 में 'सुलभ इंटरनेशनल' नाम की संस्था ने इस परंपरा को तोड़ने के लिए वृंदावन में विधवाओं के लिए होली खेलने की शुरुआत की। अब यह आयोजन हर साल पागल बाबा आश्रम, गंगा घाट और गोपीनाथ मंदिर में धूमधाम से मनाया जाता है।

 

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कैसे मनाई जाती है विधवाओं की होली?

रंगों की बजाय, अधिकतर गुलाब, गेंदा और टेसू के फूलों से होली खेली जाती है। विधवाएं मिलकर कृष्ण भजन गाती हैं और भगवान के प्रेम में डूबी रहती हैं। यह महिलाएं अपने गमों को भूलकर पूरे आनंद के साथ नाचती और एक-दूसरे को रंग लगाती हैं। यह दिन उन विधवाओं के लिए बेहद खास होता है, क्योंकि वे समाज में अपनापन महसूस करती हैं।

 

विधवाओं की होली का महत्व

पहले विधवाओं को रंगों से वंचित रखा जाता था लेकिन अब वह भी खुशियों में शामिल हो सकती हैं। यह आयोजन विधवाओं के अधिकारों और उनकी सामाजिक स्थिति को बेहतर बनाने का संदेश देता है। वृंदावन में होली केवल रंगों का नहीं, बल्कि भगवान श्रीकृष्ण और राधा के प्रेम का प्रतीक भी है।

 

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कब और कहां होती है यह होली?

विधवाओं की होली, होली से 3-4 दिन पहले मनाई जाती है। यह मुख्य रूप से वृंदावन के गोपीनाथ मंदिर और पागल बाबा आश्रम में आयोजित की जाती है। हालांकि, कुछ रूढ़िवादी लोग इसे परंपरा के खिलाफ मानते हैं लेकिन अधिकतर लोग इसे महिलाओं की आजादी और खुशियों की तरफ एक बड़ा कदम मानते हैं। देश-विदेश से लोग इस खास होली को देखने वृंदावन आते हैं और यह आयोजन अब एक सांस्कृतिक विरासत का रूप ले चुका है।


वृंदावन की विधवा होली केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि आशा, प्रेम और समानता का संदेश है। यह उन महिलाओं को नया जीवन जीने का मौका देती है, जो समाज द्वारा हाशिए पर रखी गई थीं।

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