UN, गुजरात फिर बिहार, आखिर प्रशांत किशोर की पूरी कहानी क्या है?
जन सुराज नाम से नई पार्टी बनाकर पहली बार बिहार चुनाव में उतरे प्रशांत किशोर की कहानी बेहद रोचक रही है। वह जिन नेताओं के करीबी रहे, आज ठीक उनके सामने ही खड़े हो गए हैं।

प्रशांत किशोर, Photo Credit: PTI
कहते हैं कि जब इंदिरा गांधी अपनी शक्ति के सोपान पर थीं, तब संजय गांधी उनके सलाहकार थे। इंदिरा शाहकार की भूमिका में थीं तो सही लेकिन जिसकी सलाह पर वह शाहकारी कर रही थीं वह संजय गांधी थे। इतिहास ऐसे उदाहरणों से भरा पड़ा है जिसमें एक वक़्त पर सलाहकार लार्जर दैन लाइफ़ दिखता है और शाहकार से भी ताकतवर नजर आने लगता है। इन तमाम उदाहरणों में एक बात कॉमन है कि शाहकार ही सलाहकारों का चयन करते हैं लेकिन हिंदुस्तान के राजनैतिक इतिहास में सिर्फ एक शख़्स भी है जो एक नहीं, कई बार खुद ही किसी का सलाहकार बनता है और डंके की चोट पर कहता है कि उसका चयन नहीं हुआ बल्कि उसने यह तय किया कि उसे किसको सलाह देनी है।
ईगो, अहंकार के शीर्ष पर पहुंचकर वह शख्स राजनैतिक कलाबाजियां करता है। करे भी क्यों ना? जब राजनीति के रिंग में एंट्री ही एक राज्य और एक देश की सरकार की नीतियों को धता बताकर हुई हो। उस एंट्री की कहानी पर आएंगे। ज़र्रे-ज़र्रे की जानकारी देंगे लेकिन पहले चलिए साल 2013 में। भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने एक ऐलान किया। नरेंद्र मोदी को 2014 लोकसभा चुनाव के लिए सेंट्रल कैंपेन कमेटी का चेयरमैन बनाया गया। नरेंद्र मोदी तब गुजरात के मुख्यमंत्री हुआ करते थे। बीजेपी का यह ऐलान उस दिशा में पहली मज़बूत सीढ़ी था, जो दिल्ली पहुंचाने वाली थी। जल्द ही पार्टी ने अपना पत्ता चल दिया। नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का चेहरा घोषित कर दिया। लालकृष्ण आडवाणी किनारे लग चुके थे। अब मोदी ही बीजेपी का चेहरा थे और इसी चेहरे के साथ पार्टी दिल्ली में भगवा लहराना चाहती थी। उधर देश में एक माहौल पहले ही बन चुका था। कांग्रेस के नेतृत्व वाली UPA सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे हर तरफ छाए हुए थे लेकिन शासन कर रही पार्टी महज़ भ्रष्टाचारी बताकर चुनाव नहीं जीता जा सकता था। देश को चाहिए था एक सॉल्यूशन, एक मॉडल कि बीजेपी आएगी तो क्या करेगी? यहीं पर लगाम थामता है वही सलाहकार। डिजिटल दुनिया और सोशल मीडिया के मास्टरमाइंड्स की एक फौज खड़ी की जाती है। जो एक साथ एक हॉल में बैठकर देशभर का एजेंडा सेट कर रहे थे। शहरी इलाकों में सोशल मीडिया से माहौल बना और सुदूर गांवों में ऐसी गाड़ियां दौड़ाई जा रही थीं जिन पर तीन तरफ बड़ी-बड़ी स्क्रीन्स लगी हुई थीं और हर स्क्रीन पर नरेंद्र मोदी अपनी बात रख रहे थे। कांग्रेस पर आरोप लगा रहे थे। गुजरात मॉडल को देश में लागू करने की बात कह रहे थे। साथ ही कह रहे थे कि देश में 'अच्छे दिन' आएंगे और जब मणिशंकर अय्यर ने नरेंद्र मोदी पर कटाक्ष करते हुए उन्हें चायवाला कहा तो पूरे देश भर में 'चाय पर चर्चा' कैंपेन शुरू किया गया। जिसने नरेंद्र मोदी को घर-घर तक पहुंचा दिया, इन सबके पीछे उसी सलाहकार का दिमाग़ था। जिसे दुनिया प्रशांत किशोर के नाम से जानती है।
यह भी पढ़ें- कभी 30 दिन की फंडिंग थी, दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी कैसे बनी nvidia?
वही, प्रशांत किशोर जो 2014 में बीजेपी को केंद्र में जिताने के लिए एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाए हुए थे लेकिन 2021 आते-आते पश्चिम बंगाल में उसी बीजेपी की मर्सिया पढ़ने लगे। कहा कि बीजेपी चाहे जो कर ले लेकिन 100 सीट नहीं जीत पाएगी। बीजेपी जीत भी नहीं पाई। वही प्रशांत किशोर जो पंजाब में आम आदमी पार्टी को पटखनी देते हैं और फिर उसी AAP को दिल्ली में जिताने के लिए रणनीति बनाने लगे।
खुद को एक पढ़े-लिखे नेता के रूप में पेश करने वाले प्रशांत किशोर से जब उनकी डिग्री पर सवाल पूछा जाता है, तो वह जवाब देने से बचते हुए क्यों नज़र आते हैं? आख़िर प्रशांत किशोर को यूनाइटेड नेशंस में नौकरी कैसे मिली? जो प्रशांत कभी नरेंद्र मोदी के सबसे चहेते माने जाते थे, वह उनसे दूर क्यों हो गए? प्रशांत किशोर और अमित शाह के बीच की खटास की असली कहानी क्या है? एक वक़्त में नरेंद्र मोदी के लाडले रहे प्रशांत किशोर ने उन्हीं की पार्टी बीजेपी को साल 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में कैसे मात दे दी? कैसे मोदी के लाडले प्रशांत, वक्त के साथ नीतीश कुमार की आंखों के तारे बन गए? और फिर, नीतीश कुमार के उत्तराधिकारी के तौर पर देखे जाने वाले PK ने ऐसा क्या किया कि नीतीश ने उन्हें जेडीयू से बाहर का रास्ता दिखा दिया?
हम बात करेंगे साल 2021 के बंगाल विधानसभा चुनाव की भी, जब प्रशांत किशोर ने ममता बनर्जी के लिए रणनीति बनाकर मोदी और अमित शाह को बाहरी साबित करते हुए चुनाव में मात दे दी। साल 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की भी चर्चा होगी, जब पहली बार प्रशांत किशोर ने कांग्रेस के लिए रणनीति बनाई लेकिन वह पूरी तरह फेल हो गए। यह भी जानेंगे कि जब गांधी परिवार ने 2024 लोकसभा चुनाव के लिए प्रशांत किशोर से संपर्क किया तो बातचीत आगे क्यों नहीं बढ़ पाई? अंत में बात करेंगे जन सुराज की। प्रशांत किशोर ने जन सुराज की शुरुआत आखिर क्यों की? क्या आने वाले वक्त में जन सुराज बिहार की राजनीति में अपनी जगह बना पाएगा?
बार-बार पढाई क्यों छोड़ रहे थे PK?
तारीख़ 20 मार्च 1977। बिहार के रोहतास जिले में स्थित कोनार गांव में एक बच्चे का जन्म हुआ। नाम रखा गया प्रशांत किशोर। प्रशांत के पिता डॉक्टर थे। उनकी पोस्टिंग बिहार के बक्सर जिले में थी। लिहाजा प्रशांत की स्कूली पढाई बक्सर में ही हुई। मीडिया से बातचीत के दौरान प्रशांत किशोर बताते हैं कि वह बचपन में बिल्कुल भी अनुशासित छात्र नहीं थे। पेरेंट्स को उनकी पढाई-लिखाई की चिंता लगी रहती थी। कहते थे कि अच्छे से पढाई नहीं करोगे तो तुम्हारे बाकी दोस्त तुमसे आगे निकल जाएंगे और तुम वहीं के वहीं रह जाओगे। जैसे-तैसे कर प्रशांत 10वीं तक पहुंचे और बोर्ड की परीक्षा पास कर ली। इसके बाद प्रशांत किशोर पटना चले गए। मैथमेटिक्स में हाथ अच्छा था इसलिए इंटरमीडिएट में साइंस ले ली। एडमिशन हुआ पटना साइंस कॉलेज में। मीडिया से बातचीत के दौरान प्रशांत किशोर बताते हैं कि बारहवीं करने के बाद उन्होंने तीन सालों तक पढाई छोड़ दी थी। क्यों छोड़ी? इसका साफ-साफ जवाब नहीं देते हैं।
यह भी पढ़ें- कभी बाढ़, कभी अपराध, क्या है गुरुग्राम के बनने की पूरी कहानी?
तीन साल पढाई से दूर रहने के बाद प्रशांत किशोर ने दिल्ली युनिवर्सिटी के हिंदू कॉलेज में स्टैटिस्टिक्स सबजेक्ट में एडमिशन ले लिया। इस दौरान उनकी तबीयत बिगड़ गई। घर लौटना पड़ा। इसके बाद वह दोबारा दिल्ली यूनिवर्सिटी नहीं गए। दिल्ली यूनिवर्सिटी से पढाई छोड़ने के बाद प्रशांत ने आगे की पढाई कहां से की। किस विषय में की। यह संदिग्ध है। मीडिया में इसका जवाब देते हुए वह बचते भी नज़र आते हैं। हालांकि, मीडिया में छपी कुछ रिपोर्ट्स के हवाले से अगर बात करें तो उन्होंने हैदराबाद से इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की है। किस यूनिवर्सिटी से की, जानकारी उपलब्ध नहीं है। प्रशांत किशोर बताते हैं कि ग्रेजुएशन के बाद उन्होंने एक बार फिर करीब दो सालों तक पढाई छोड़ दी थी। पिता उनसे काफी खफा रहते थे। घर में ही भूख हड़ताल पर बैठ जाते थे। कहते थे कि अगर आगे पढाई करने के लिए नहीं जाओगे तो मैं खाना नहीं खाऊगा। पिता की जिद के बाद प्रशांत ने पब्लिक हेल्थ सब्जेक्ट में पोस्ट ग्रेजुएशन करने का फैसला किया। किस यूनिवर्सिटी से किया। किस साल में किया। इसके बारे में भी जानकारी पब्लिक डोमेन में उपलब्ध नहीं है।
पढ़ाई पर जवाब क्यों नहीं देते PK?
कुल जमा बात यह है कि बिहार के डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी और पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव की डिग्री पर सवाल उठाने वाले PK को ख़ुद अपनी डिग्री की सच्चाई सबको बतानी चाहिए लेकिन अब तक ऐसा नहीं हुआ है। मीडिया रिपोर्ट्स में मौजूद जानकारी के हिसाब से पब्लिक हेल्थ में पोस्ट ग्रेजुएशन करने के बाद प्रशांत किशोर की नौकरी यूनाइटेड नेशन्स में बतौर पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट लग गई। हैदराबाद में उनकी पोस्टिंग थी। यह वह वक्त था जब भारत में पोलियो एरैडिकेशन को लेकर सरकार काफी गंभीरता से काम कर रही थी। बिहार में आरजेडी की सरकार थी। राबड़ी देवी मुख्यमंत्री हुआ करती थीं। प्रशांत किशोर से यूएन ऑफिस में पूछा गया कि क्या वह बिहार जाकर काम करना चाहेंगे? प्रशांत ने हामी भर दी।
बिहार में दो साल तक काम करने के बाद उन्हें दिल्ली स्थित यूएन के इंडिया ऑफिस बुला लिया गया। वह दो साल तक दिल्ली में ही काम करते रहे। इस दौरान उन्हें यूनाइटेड नेशन के हेड ऑफिस यानी अमेरिका जाने का ऑफर मिला। यह बिहार जैसे ग्रामीण इलाके से आए लड़के के लिए बड़ी बात थी। प्रशांत किशोर अब अमेरिका पहुंच चुके थे। यूएन हेड ऑफिस में काम करने के दौरान प्रशांत बोरियत महसूस करने लगे। बोरियत इसलिए क्योंकि उन्हें ऑफिस के एनवायरनमेंट में रहकर ही काम करना पड़ता था। उनका मन था कि उन्हें फील्ड पोस्टिंग मिल जाए। ऑफिस में बात की। परमिशन मिल गई और उन्हें यूएन की तरफ से अफ्रीका भेजा गया। प्रशांत अफ्रीका के कई अलग-अलग देशों में ग्राउंड पर काम करने लगे। इस दौरान लैंग्वेज प्रॉब्लम होती थी क्योंकि अफ्रीका का वह इलाका फ्रेंचोफोन था यानी वहां फ्रेंच भाषा बोली जाती थी। लिहाज़ा प्रशांत किशोर को फ्रेंच भाषा सीखनी पड़ी।
यह भी पढ़ें- 14 साल की जेल और नेपाल के PM तक का सफर, क्या है KP शर्मा ओली की कहानी?
नरेंद्र मोदी से कैसे मिले PK?
अफ्रीका में UN के लिए काम करने के दौरान प्रशांत ने कुछ ऐसा किया जिसने उनकी ज़िंदगी पूरी तरह से बदल दी। प्रशांत किशोर ‘भारत में आर्थिक तरक्की और भूखमरी नाम’ से एक रिसर्च पेपर लिखते हैं। इस रिसर्च में उन्होंने भारत के चार सबसे तेज़ी से बढ़ते और अमीर राज्यों — हरियाणा, महाराष्ट्र, गुजरात और कर्नाटक — की तुलना की थी। नतीजा चौंकाने वाला था। आंकड़ों के मुताबिक़, जहां गुजरात की GDP सबसे तेज़ी से बढ़ रही थी, वहीं उस राज्य में भुखमरी दर सबसे ज़्यादा थी। यानी आर्थिक विकास के बावजूद लोग भूख से जूझ रहे थे। यह पेपर उस समय की गुजरात सरकार के लिए एक तरह की आलोचना थी लेकिन PK ने हिम्मत दिखाते हुए इसकी एक कॉपी भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी — दोनों को भेज दी। जब नरेंद्र मोदी की नज़र उस पेपर पर पड़ी, तो उन्होंने उसे नज़रअंदाज़ नहीं किया बल्कि उन्हें रिसर्च पेपर में यूनीक और लॉजिकल नज़रिया दिखा। बावजूद इसके कि पेपर गुजरात सरकार की आलोचना कर रहा था, मोदी ने अपने अधिकारियों से कहा कि रिसर्च पेपर लिखने वाले से संपर्क किया जाए। PK से संपर्क साधा गया। नरेंद्र मोदी की ओर से PK को गुजरात आकर काम करने का ऑफर दिया गया। प्रशांत को यह ऑफर काफ़ी पसंद आता है और वह इसके लिए हामी भर देते हैं। इस तरह प्रशांत किशोर साल 2011 में अफ्रीका से सीधे गुजरात की राजधानी गांधी नगर स्थित सीएम ऑफिस पहुंच जाते हैं।
अगले ही साल यानी साल 2012 में गुजरात विधानसभा चुनाव होने वाले थे लेकिन नरेंद्र मोदी के सबसे करीबी और उनके लिए चुनावी रणनीति बनाने वाले अमित शाह गुजरात में नहीं थे। असल में उस वक्त अमित शाह के ऊपर सोहराबुद्दीन मर्डर केस का मामला चल रहा था और वह जेल में थे। साल 2010 में उन्हें इस केस में जमानत तो मिल चुकी थी लेकिन कोर्ट ने इसके साथ एक शर्त रखी थी कि वह गुजरात में नहीं रह सकते। यही वजह थी कि साल 2012 का चुनाव नरेंद्र मोदी को अकेले ही लड़ना था।
क्यों पसंद आए प्रशांत किशोर?
प्रशांत किशोर के साथ काम करते दौरान नरेंद्र मोदी को लगने लगा कि प्रशांत के अंदर राजनीति की अच्छी समझ है। वह जो भी बात करते हैं, डेटा को आधार बनाकर करते हैं। प्रशांत किशोर इस बात को बखूबी समझते थे कि आने वाले समय में सोशल मीडिया चुनावी अखाड़ा बनने वाला है। उनके पास नेता और जनता के बीच कनेक्टिविटी बढ़ाने के कई इनोवेटिव आइडियाज थे। वह नरेंद्र मोदी के साथ पॉलिटिकल कैंपेन और मीडिया परसेप्शन के अलग-अलग आइडियाज शेयर करते थे। ये सब देखकर नरेंद्र मोदी को लगने लगा कि प्रशांत किशोर उनके लिए आगामी चुनाव में रणनीति बनाने के लिए बेस्ट ऑप्शन साबित हो सकते हैं। फिर क्या था, बिना देर किए नरेंद्र मोदी ने प्रशांत किशोर को साल 2012 में होने वाले गुजरात विधानसभा चुनाव की रणनीति बनाने की खुली छूट दे दी। नरेंद्र मोदी, गुजरात के जिस सीएम आवास में रहते थे, उसके ऊपर के फ्लोर पर प्रशांत किशोर को रहने की जगह दी गई। प्रशांत किशोर ने सीएम आवास में रहते हुए अपनी एक टीम के साथ नरेंद्र मोदी के लिए चुनावी रणनीति बनाना शुरू कर दिया। टीम में यंग प्रोफेशनल्स को शामिल किया गया, जिसमें डेटा, पॉलिटिकल रिसर्च और एडवरटाइजमेंट की समझ रखने वाले नौजवान प्रोफेशनल्स शामिल थे।
यह भी पढ़ें- राष्ट्रपति की मौत और एक गलती, क्या है AC के आविष्कार की कहानी?
प्रशांत किशोर ने अपनी रणनीति में सबसे पहले नरेंद्र मोदी को विकास पुरुष की तरह प्रोजेक्ट करना शुरू कर दिया। जिसके लिए टेलीविजन, अख़बार और होर्डिंग्स का सहारा लिया गया। सितंबर 2012 की बात है, गुजरात विधानसभा चुनाव में सिर्फ चार महीने बचे थे। नरेंद्र मोदी हजारों लोगों के हुजूम के साथ एक रोड शो करते हैं, जिसका नाम था ‘विवेकानंद युवा विकास यात्रा’। दरअसल, अगले साल यानी 12 जनवरी 2013 को स्वामी विवेकानंद की 150वीं जयंती होने वाली थी, इसलिए गुजरात सरकार ने साल 2012 को युवा शक्ति वर्ष के रूप में मनाने का एलान किया था। इस यात्रा के लिए प्रशांत किशोर ने मोदी के भाषण, स्लोगन और थीम सब कुछ इस तरह डिजाइन किए कि लोगों तक यह संदेश जाए कि वाकई मोदी विकास पुरुष हैं, जो गुजरात को तरक्की की नई ऊंचाइयों पर ले जा रहे हैं। इस तरह प्रशांत किशोर ने बीजेपी के चुनाव प्रचार को मोदी-सेंट्रिक बना दिया लेकिन अब यह सवाल था कि इतने कम वक्त में नरेंद्र मोदी गुजरात के हर निर्वाचन क्षेत्र में प्रचार के लिए कैसे जाएं क्योंकि बीजेपी चुनाव सिर्फ और सिर्फ मोदी के चेहरे पर लड़ रही थी। इस चुनौती को पार करने के लिए प्रशांत ने टेक्नोलॉजी का सहारा लिया। भारतीय राजनीति में यह पहली बार हुआ कि किसी नेता ने 3-डी होलोग्राफिक प्रोजेक्शन मॉडल को अपनाया। इस मॉडल के तहत नरेंद्र मोदी किसी एक जगह से भाषण देते और उनके इस भाषण को 3D होलोग्राम मशीन के जरिए सैटेलाइट से गुजरात के अलग-अलग जगहों पर लाइव दिखाया जाता। जगह-जगह स्टेज सजता, सामने मशीन रखी होती। लोग बैठे होते और नरेंद्र मोदी का भाषण उनके सामने लाइव टेलीकास्ट किया जाता। जिससे लोगों को ऐसा महसूस होता कि नरेंद्र मोदी उनके सामने खड़े होकर भाषण दे रहे हैं।
इसी बीच खबर आती है कि अमित शाह को सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात जाने की अनुमति दे दी है। अमित शाह चुनाव की तैयारी में जुट जाते हैं और नारणपुरा से चुनाव लड़ने के लिए पर्चा भरते हैं लेकिन इस चुनाव की रणनीति अब भी प्रशांत किशोर के इर्द-गिर्द ही घूम रही थी। पार्टी के भीतर प्रशांत के बढ़ते कद को लेकर अंदर ही अंदर बगावत हुई लेकिन प्रशांत के सिर पर नरेंद्र मोदी का हाथ था। चुनाव हुए, नतीजा आया—बीजेपी 182 विधानसभा सीटों में से 115 सीटें जीत गई। इस तरह नरेंद्र मोदी लगातार तीसरी बार गुजरात के मुख्यमंत्री बने। इस जीत के बाद प्रशांत किशोर का कद काफी तेजी से बढ़ने लगा। भारतीय राजनीति में यह पहली बार हुआ था जब ‘पॉलिटिकल स्ट्रेटजिस्ट’ जैसा कोई टर्म कॉइन हुआ था और इसके जनक थे प्रशांत किशोर। प्रशांत ने नरेंद्र मोदी के लिए एक ऐसा रास्ता खोल दिया था जिससे उनका चेहरा अब भारत के घर-घर पहुंचने वाला था। अगले डेढ-दो सालों बाद 'अच्छे दिन आने वाले हैं' के स्लोगन घर-घर गूंजने वाले थे।
साल 2012 में मिली जीत के बाद नरेंद्र मोदी ने खुद को नेशनल लीडर की तरह प्रोजेक्ट करना शुरू कर दिया था। अन्ना आंदोलन के बाद कांग्रेस पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लोगों के बीच पहुंच चुके थे और देश एक नए नेता की तलाश में था। नरेंद्र मोदी के गुजरात मॉडल की चर्चा मीडिया में जोर-शोर से हो रही थी। साल 2013 के जून महीने में बीजेपी की एग्जीक्यूटिव कमिटी की मीटिंग हुई और इस मीटिंग में साल 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए नरेंद्र मोदी को चुनावी कैंपेन का चेयरमैन घोषित कर दिया गया। नरेंद्र मोदी ने चुनावी रणनीति बनाने का ज़िम्मा एक बार फिर प्रशांत किशोर के हाथ सौंप दिया।
PK की रणनीति और 2014 का चुनाव
लोकसभा चुनाव की तैयारी के लिए प्रशांत किशोर ने एक कमिटी का गठन किया, जिसका नाम रखा गया CAG यानी Citizens for Accountable and Governance। इसमें देश के IITs और IIMs से पढ़े स्किलफुल नौजवानों को हायर किया गया। पैटर्न वही गुजरात चुनाव जैसा था—डेटा-ड्रिवन स्ट्रेटजी बनाना। सितंबर 2013 में बीजेपी ने अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए प्रधानमंत्री का चेहरा घोषित कर दिया। अब प्रशांत किशोर के सामने एक ही चुनौती थी—भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरी कांग्रेस के सामने नरेंद्र मोदी का गुजरात मॉडल पेश करना और घर-घर तक यह नैरेटिव पहुंचाना कि बीजेपी ने चुनाव में एक ऐसे नेता को उतारा है जो विकास पुरुष है और इस नैरेटिव को घर-घर पहुंचाने के लिए प्रशांत ने उसी 3D होलोग्राम टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जो उन्होंने गुजरात चुनाव में अपनाई थी। 3D कंटेनर्स के जरिए नरेंद्र मोदी के भाषण को छोटे-छोटे शहरों से लेकर गाँव-गाँव तक पहुँचाया जाने लगा। नरेंद्र मोदी बचपन में चाय बेचते थे और गरीब परिवार से ताल्लुक रखते थे—इन बातों को प्रशांत किशोर ने चुनाव प्रचार का हिस्सा बना दिया और ‘चाय पर चर्चा’ नाम से कैंपेन लॉन्च किया।
प्रशांत किशोर ने इस चुनाव प्रचार के दौरान सबसे प्रभावशाली प्लेटफ़ॉर्म के रूप में सोशल मीडिया का इस्तेमाल किया। उस समय बाकी दूसरे दल सोशल मीडिया का इस्तेमाल लगभग न के बराबर कर रहे थे। नौजवानों के बीच सोशल मीडिया तेजी से लोकप्रिय हो रहा था। प्रशांत किशोर ने इसका बखूबी इस्तेमाल किया। बीजेपी और नरेंद्र मोदी के फेसबुक अकाउंट से लेकर ट्विटर हैंडल तक 'अच्छे दिन आने वाले हैं', 'बहुत हुई महंगाई की मार, अब की बार मोदी सरकार' जैसे पोस्टर्स और वीडियो अपलोड किए जाने लगे। यूट्यूब पर विज्ञापन दिए गए। सोशल मीडिया यूज़र्स के सामने एक ऐसा नेता बार-बार दिखाई देने लगा जो अच्छे दिन आने के वादे कर रहा था, पेट्रोल-डीजल के दाम कम करने की बातें कर रहा था और नौजवानों को हर साल 2 करोड़ नौकरियां देने का वादा कर रहा था।
यह भी पढ़ें- एक परमाणु युद्ध और 20 हजार साल पीछे हो जाएगी दुनिया, समझिए कैसे
देखते ही देखते नरेंद्र मोदी की प्रसिद्धि आसमान छूने लगी। 'अच्छे दिन आने वाले हैं' का स्लोगन टीवी, अखबार और सोशल मीडिया से निकलकर लोगों की ज़ुबान पर गूंजने लगा और इसका परिणाम दिखा 16 मई 2014 को जब लोकसभा चुनाव के रिज़ल्ट घोषित किए गए। बीजेपी को अकेले 282 सीटों के साथ बहुमत मिला और NDA को 336 सीटें मिलीं। कांग्रेस महज 44 सीटों पर सिमट गई। राजीव गांधी की सरकार के बाद ऐसा पहली बार हुआ था जब किसी एक पार्टी को पूर्ण बहुमत मिला था और इन सबके पीछे सबसे बड़ा हाथ था प्रशांत किशोर का।
एक दरवाज़ा बंद, नए रास्ते खुले
एक के बाद एक मिली चुनावी सफलता ने प्रशांत किशोर का कद काफी हद तक बढ़ा दिया था। प्रशांत किशोर को उम्मीद थी कि प्रधानमंत्री मोदी उन्हें दिल्ली में अपने साथ एडवाइज़र के तौर पर कोई बड़ा पद सौंपेंगे लेकिन बीजेपी के भीतर प्रशांत किशोर का बढ़ता कद सीनियर नेताओं को बिल्कुल भी पसंद नहीं आ रहा था। कहा यह भी जाता है कि अमित शाह प्रशांत किशोर को बिलकुल भी पसंद नहीं करते थे। इधर जुलाई 2014 में अमित शाह को बीजेपी का नया राष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित कर दिया गया। लोकसभा चुनाव के कुछ ही दिनों बाद हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड के विधानसभा चुनाव हुए और इन सब में बीजेपी को भारी जीत मिली। इन चुनावों में प्रशांत किशोर की कोई सीधी भूमिका नहीं थी। अमित शाह चुनावी रणनीति बना रहे थे। इससे पार्टी कार्यकर्ताओं के भीतर यह धारणा बन गई कि बीजेपी नरेंद्र मोदी के बलबूते चुनाव जीत रही है, न कि प्रशांत किशोर के। इस तरह धीरे-धीरे प्रशांत किशोर को बीजेपी से साइडलाइन कर दिया गया। यहीं से प्रशांत और अमित शाह के बीच एक राइवरलरी शुरू हुई, जिसका जवाब प्रशांत किशोर साल 2015 में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव में देने वाले थे।
बीजेपी से साइडलाइन किए जाने के बाद प्रशांत किशोर ने CAG को भंग कर दिया और इसकी जगह एक फ्रेश कंपनी की नींव रखी, जिसका नाम था I-PAC यानी Indian Political Action Committee। प्रशांत ने कंपनी का सिर्फ नाम बदला था; काम वही था—चुनावों के लिए रणनीति बनाना। प्रशांत किशोर अब बीजेपी से अलग हो चुके थे और नए क्लाइंट की तलाश में थे, जिनके लिए वह चुनावी रणनीति बना सकें। साल 2014 के अंत में प्रशांत किशोर की मुलाकात जनता दल यूनाइटेड (JDU) के नेता पवन वर्मा के जरिए नीतीश कुमार से हुई। लोकसभा चुनाव से पहले जब बीजेपी ने नरेंद्र मोदी को अपना पीएम कैंडिडेट घोषित किया था, तब नीतीश कुमार ने बिहार में अपनी पार्टी JDU को 17 साल पुराने NDA गठबंधन से अलग कर लिया था और जीतन राम मांझी को बिहार का मुख्यमंत्री बना दिया था।
2014 लोकसभा चुनाव में JDU को 40 में से महज़ 2 सीटें मिली थीं। इससे पहले 2009 के लोकसभा चुनाव में JDU को 20 सीटें मिली थीं। नीतीश कुमार अपनी खराब परफॉर्मेंस पर सोच-विचार कर ही रहे थे कि तभी उनकी मुलाकातों का सिलसिला प्रशांत किशोर के साथ काफी तेजी से बढ़ने लगा। नीतीश कुमार प्रशांत किशोर में एक मेच्योर्ड चुनावी रणनीतिकार देख रहे थे। फिर उन्होंने सोचा कि आगामी विधानसभा चुनाव के लिए रणनीति बनाने का जिम्मा प्रशांत किशोर को देना बेहतर ऑप्शन होगा क्योंकि प्रशांत किशोर बीजेपी और नरेंद्र मोदी की रग-रग से वाकिफ थे। इस तरह नीतीश कुमार ने प्रशांत किशोर को अपने साथ लिया और आने वाले चुनाव की रणनीति बनाने की जिम्मेदारी भी सौंप दी। प्रशांत ने नीतीश कुमार को सबसे पहले यही सलाह दी कि जीतन राम मांझी को हटाकर वह खुद एक बार फिर बिहार के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लें। नीतीश कुमार ने प्रशांत की यह बात मान ली और जीतन राम मांझी को हटाकर साल 2015 के फरवरी महीने में दोबारा बिहार के मुख्यमंत्री बन गए।
नीतीश कुमार ने प्रशांत किशोर के ठहरने की जगह अपने CM आवास के ऊपरी फ्लोर में दे दी। ठीक वैसे ही जैसे नरेंद्र मोदी ने गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान अपने CM आवास में प्रशांत को जगह दी थी। प्रशांत किशोर अपनी I-PAC कंपनी के साथ मिलकर नीतीश कुमार के लिए रणनीति बनाना शुरू कर देते हैं। यह चुनाव प्रशांत किशोर के लिए भी काफी अहम था, क्योंकि वह इस चुनाव के जरिए बीजेपी और अमित शाह को बताना चाहते थे कि मोदी को ब्रांड बनाने में उनकी कितनी बड़ी भूमिका थी।
बिहार चुनाव और PK का जलवा
बिहार विधानसभा चुनाव करीब थे। 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को बिहार में मिली भारी जीत ने पार्टी का कद काफी बढ़ा दिया था। अकेले बीजेपी को इस चुनाव में 40 में से 22 सीटें और NDA को कुल 31 सीटें मिली थीं। साल 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में बीजेपी को टक्कर देने के लिए नीतीश कुमार ने लालू यादव की RJD और कांग्रेस से गठबंधन कर लिया। इस अलायंस को नाम दिया गया महागठबंधन। शुरुआत में गठबंधन के इस फैसले से प्रशांत किशोर खुश नहीं थे। उन्हें लगता था कि लालू यादव, नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री उम्मीदवार नहीं बनने देंगे लेकिन जब गठबंधन बन गया, तब प्रशांत ने इस बात की स्पष्टता के लिए सोनिया गांधी से मुलाकात की और उनसे कहा कि आप लालू यादव से बात करें और नीतीश कुमार को सीएम फेस बनाने का आग्रह करें। लालू यादव ने सोनिया गांधी की यह बात मान ली और खुले तौर पर नीतीश कुमार को महागठबंधन का मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित कर दिया। इस तरह प्रशांत किशोर के मन में लालू को लेकर जो दुविधा थी, वह अब खत्म हो चुकी थी।
चुनाव प्रचार का दौर शुरू हो चुका था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में एक चुनावी सभा थी। उन्होंने भाषण में नीतीश कुमार की आलोचना करते हुए कह दिया कि उनके DNA में ही समस्या है। इस बात को प्रशांत किशोर ने तुरंत लपक लिया और इसे चुनावी मुद्दा बना दिया। लोगों तक यह संदेश पहुंचाया गया कि मोदी ने एक बिहारी खून का अपमान किया है। प्रशांत यहीं नहीं रुके—जगह-जगह से बिहारी लोगों के बाल और नाखून इकट्ठे किए गए और इसे पीएम ऑफिस भेज दिया गया। कहा गया प्रधानमंत्री मोदी आप हम बिहारियों का भी DNA चेक करके बताइए, कितना सही है। प्रशांत किशोर ने इस चुनाव में नीतीश कुमार के लिए एक नारा दिया जो काफी लोकप्रिय हुआ- 'बिहार में बहार हो… फिर से एक बारे नीतीश कुमार हो।'
प्रशांत किशोर की मेहनत रंग लाई। बिहार विधानसभा चुनाव हुए और नतीजा महागठबंधन के पक्ष में गया। महागठबंधन को 243 में से 178 सीटों पर जीत मिली जबकि बीजेपी महज 53 सीटों पर सिमट गई। इस तरह प्रशांत किशोर ने बीजेपी और अमित शाह को यह संदेश दे दिया कि नरेंद्र मोदी की जीत में उनका कितना बड़ा योगदान था। इधर नीतीश कुमार बिलकुल भी बीजेपी वाली गलती प्रशांत किशोर के साथ दोहराना नहीं चाहते थे। उन्होंने प्रशांत किशोर को अपना एडवाइज़र नियुक्त कर लिया। यह कैबिनेट मंत्री के स्तर का पद था।
प्रशांत किशोर और उनकी चुनावी रणनीति की चर्चा सिर्फ भारत तक ही सीमित नहीं रही। साल 2015 के आखिरी दिनों की बात है, अफ़्रीकी देश तंज़ानिया में चुनाव होने वाले थे। प्रशांत किशोर पहले भी अफ़्रीका में रह चुके थे, जैसा कि हमने पहले भी जिक्र किया था। तंज़ानिया की रूलिंग पार्टी CCM (Chama Cha Mapinduzi) की तरफ से उन्हें चुनाव में स्ट्रैटेजिक सलाह देने का ऑफ़र आया। प्रशांत किशोर ने अपनी I-PAC की एक टीम तंज़ानिया भेज दी। I-PAC ने CCM के लिए चुनावी रणनीति बनाई और नतीजा CCM के पक्ष में गया, CCM यह चुनाव जीत गई। प्रशांत के करियर का यह एक ऐसा वक्त था कि वह जिस पार्टी के साथ हाथ मिलाते, वह चुनाव जीत जाती।
2017 का UP चुनाव
प्रशांत किशोर के प्रभाव को देखते हुए कांग्रेस और गांधी परिवार उनके करीब आने लगे। कुछ ही वक्त बाद कांग्रेस ने प्रशांत किशोर को साल 2017 में होने वाले उत्तर प्रदेश और पंजाब विधानसभा चुनाव की रणनीति बनाने की जिम्मेदारी सौंप दी। कांग्रेस उत्तर प्रदेश में अपनी ज़मीन खो चुकी थी। इसे रिवाइव करने के लिए प्रशांत किशोर ने कांग्रेस को सलाह दी कि यहां के दलित और मुस्लिम वोट्स को टारगेट करने के साथ-साथ ब्राह्मण वोट्स को भी टारगेट करना चाहिए। प्रशांत ने इसके लिए प्रियंका गांधी को उत्तर प्रदेश के चुनाव में चेहरा बनाने की सलाह दी। प्रियंका गांधी ने अब तक राजनीति में अपने कदम नहीं रखे थे। कांग्रेस हाई कमांड ने प्रशांत की बात टालते हुए प्रियंका गांधी की जगह दूसरी ब्राह्मण नेता शीला दीक्षित को सीएम कैंडिडेट बना दिया।
शीला दीक्षित प्रशांत किशोर को नजरअंदाज करती रहीं। प्रशांत ने जब सलाह दी कि प्रमोद तिवारी को यूपी में जिला अध्यक्ष बनाया जाए तो इसे भी नजरअंदाज कर दिया गया। कांग्रेस ने राज बब्बर को यूपी कांग्रेस का प्रेसिडेंट घोषित कर दिया। प्रशांत किशोर बार-बार नजरअंदाज किए जा रहे थे। इन बातों की परवाह किए बगैर, प्रशांत किशोर ने कांग्रेस के लिए चुनावी कैंपेन के लिए रणनीति बनाने पर जोर दिया। प्रशांत ने ‘चाय पर चर्चा’ के तर्ज पर खाट सभा का प्लान बनाया। जहां राहुल गांधी के नेतृत्व में खुले में खाट बिछाकर किसानों से उनके मसलों पर चर्चा करने की रणनीति बनाई गई। इसका मकसद था किसान और मजदूर वोटर्स को कांग्रेस की तरफ आकर्षित करना लेकिन यह प्लान तब फेल हो गया जब देवरिया में पहली ही बैठक खत्म होने के बाद लोग खाट उठाकर अपने-अपने घर ले जाने लगे। इसकी मीडिया कवरेज ने इस योजना को पूरी तरह विफल बना दिया।
CV में लगा इकलौता ‘धब्बा’
इसके बाद प्रशांत किशोर ने कांग्रेस के हाई कमांड को सलाह दी कि अगर वह यूपी में बेहतर प्रदर्शन करना चाहते हैं तो समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ें। हाई कमांड ने प्रशांत की यह बात मानी और समाजवादी पार्टी से गठबंधन करके चुनाव लड़ने का ऐलान किया। अखिलेश यादव और राहुल गांधी एक साथ चुनाव प्रचार में नजर आने लगे। इनके लिए एक अभियान चलाया गया, जिसका नाम था 'UP के लड़के', लेकिन इन तमाम प्रयासों के बावजूद कांग्रेस का प्रदर्शन उत्तर प्रदेश में बेहद खराब रहा।
कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश की कुल 403 सीटों में से 114 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे, जिसमें केवल 7 सीटों पर जीत हासिल हुई। समाजवादी पार्टी को केवल 47 सीटें मिलीं। बीजेपी अकेले 312 सीटें जीत गई। यह पहली बार था जब प्रशांत किशोर को किसी चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था। हालांकि, पंजाब में कांग्रेस जीत गई, जिसका प्रचार-प्रसार प्रशांत किशोर ही संभाल रहे थे। कैप्टन अमरिंदर सिंह पंजाब कांग्रेस के सीएम कैंडिडेट थे। कैप्टन अमरिंदर सिंह ने ट्वीट करके कहा कि कांग्रस की जीत में प्रशांत किशोर और उनकी I-PAC टीम की अहम भूमिका थी। हालांकि, एक्सपर्ट्स का कहना था कि यह चुनाव कांग्रेस ने इसलिए जीत लिया क्योंकि कैप्टन अमरिंदर सिंह का चेहरा मजबूत था और लोग बीजेपी-अकाली दल की दस साल पुरानी सरकार से नाराज थे।
उत्तर प्रदेश में मिली हार के बाद प्रशांत किशोर के लिए यह धारणा बनने लगी कि जहां-जहां मजबूत चेहरा होता है, वहां प्रशांत चुनाव जीत जाते हैं लेकिन जहां उनको उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में चुनौती मिली वह फेल हो गए। इस हार के लिए कुछ कांग्रेस नेताओं ने प्रशांत किशोर को दोषी ठहराने की कोशिश की। एक नेता ने यूपी कांग्रेस कार्यालय के बाहर पोस्टर लगवा दिया, जिस पर लिखा था कि जो प्रशांत किशोर को ढूंढकर लाएगा, उसे 5 लाख रुपये दिए जाएंगे। हालांकि, तब के यूपी स्टेट कांग्रेस प्रेसिडेंट राज बब्बर की नजर जब इस पोस्टर पर पड़ी, तो उन्होंने इसे हटाने का आदेश दिया। उत्तर प्रदेश में मिली हार के बारे में जब प्रशांत किशोर से पूछा गया तो उन्होंने कहा, 'मैंने कांग्रेस में अपनी फ़्रीडम को ज़्यादा समझ लिया था और मैंने पार्टी डायनेमिक्स को मिस जज किया। 27 साल का नुकसान कुछ महीनों में ठीक नहीं किया जा सकता।'
JDU में एंट्री और निष्कासन
उत्तर प्रदेश में मिली हार के बाद प्रशांत किशोर को लेकर चर्चा थोड़ी धीमी पड़ गई थी लेकिन अचानक सितंबर 2018 में प्रशांत किशोर ने एक ऐसा फैसला लिया जिससे उनकी चर्चा मीडिया में एक बार फिर होने लगीं। प्रशांत किशोर ने ऑफिशियली JDU जॉइन कर ली लेकिन यह 2015 वाली JDU नहीं थी, जिसे प्रशांत किशोर ने बिहार चुनाव में जीत दिलाई थी। इस वक्त तक नीतीश कुमार और BJP एक बार फिर साथ आ चुके थे। BJP के साथ गठबंधन के बावजूद प्रशांत किशोर नीतीश कुमार के बेहद करीबी बने रहे। JDU जॉइन किए अभी कुछ ही वक्त हुआ था कि नीतीश कुमार ने प्रशांत किशोर को JDU का वाइस प्रेसिडेंट बना दिया। प्रशांत किशोर को अब नीतीश कुमार के उत्तराधिकारी की तरह देखा जाने लगा लेकिन साल 2019 में कुछ ऐसा हुआ कि प्रशांत किशोर और नीतीश कुमार के बीच दूरियां बढ़ने लगीं।
दरअसल, इस साल केंद्र में बैठी BJP सरकार ने Citizenship Amendment Act (CAA) इंट्रोड्यूस किया था। प्रशांत किशोर इस कानून को NRC (National Register of Citizens) से जोड़कर भेदभाव की नजरिए से देख रहे थे। वहीं JDU ने पार्लियामेंट में इस बिल का समर्थन किया था। हालांकि, JDU की तरफ से बाद में यह भी कहा गया कि वह इस कानून को बिहार में इम्प्लीमेंट नहीं करेंगे। प्रशांत किशोर ने नीतीश कुमार को एक पत्र भी लिखा था जिसमें पूछा था कि वह CAA कानून पर अपना स्टैंड स्पष्ट करें। नीतीश कुमार एक तरफ़ संसद में CAA को सपोर्ट कर रहे थे, दूसरी तरफ बिहार में इसे लागू न करने की बात कर रहे थे। नीतीश के इस अनक्लियर स्टैंड की वजह से प्रशांत और उनके बीच दूरियां तेजी से बढ़ने लगीं। नीतीश कुमार ने मीडिया से बातचीत के दौरान यहां तक कह दिया कि अमित शाह के कहने पर उन्होंने प्रशांत किशोर को अपनी पार्टी में जगह दी थी। इसके बाद प्रशांत किशोर खुलकर नीतीश कुमार की सार्वजनिक आलोचना करने लगे। JDU ने इस पर ऐक्शन लिया और प्रशांत किशोर को एंटी-पार्टी एक्टिविटी का हवाला देते हुए पार्टी से बाहर कर दिया। इन सबके बीच प्रशांत अपनी कंपनी I-PAC के साथ जुड़े हुए थे, जो आने वाले वक्त में एक और राज्य में चुनाव रणनीति का जिम्मा संभालने वाली थी।
दक्षिण भारत में प्रशांत की एंट्री
साल 2019 चल रहा था। आंध्र प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने वाले थे। जगन मोहन रेड्डी की YSRCP ने चुनावी रणनीति के लिए प्रशांत किशोर को अप्रोच किया। प्रशांत अब हिंदी हार्टलैंड में अपनी किस्मत आजमाने के बाद दक्षिण भारत के किसी राज्य में पहली बार एंट्री कर रहे थे। प्रशांत किशोर अपनी I-PAC टीम के साथ रणनीति बनाने में जुट गए। इस दौरान उनकी टीम ने करीब 35 कैंपेन चलाए, जिनमें 17 वर्चुअल थे और 18 ग्राउंड पर। जगन मोहन रेड्डी ने करीब 3600 किमी की लंबी पैदल यात्रा की। उस वक्त आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्र बाबू नायडू हुआ करते थे। जिनसे जगन मोहन रेड्डी की सीधी टक्कर थी। इस दौरान प्रशांत किशोर ने एक नारा दिया 'Naidu Ninnu Namam Babu', यानी चंद्र बाबू नायडू हम आप पर भरोसा नहीं करते।
इसके अलावा एक और स्लोगन दिया 'Bye Bye Naidu।' जगन मोहन रेड्डी के लिए एक थीम सॉन्ग तैयार किया गया, जिसके बोल थे 'Ravali Jagan Kavali Jagan', जिसका अर्थ था हम जगन मोहन रेड्डी को सरकार में देखना चाहते हैं। यह गाना सोशल मीडिया पर काफी पॉपुलर हुआ। प्रशांत की रणनीति का असर चुनाव परिणाम में दिखा। YSRCP ने 175 में से 151 सीटों पर जीत दर्ज की। यह एक तरह का क्लीन स्वीप था। इस जीत के बाद प्रशांत किशोर एक बार फिर चुनावी रणनीति के विजय रथ पर सवार हो गए और साबित कर दिया कि वह हिंदी हार्टलैंड राज्यों के अलावा दक्षिणी राज्यों की राजनीति में भी अपनी रणनीति से प्रासंगिक हैं।
देश की राजधानी में बीजेपी को टक्कर
आंध्र प्रदेश में मिली जीत के बाद प्रशांत किशोर को साल 2019 के अंत में उस वक्त के दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अप्रोच किया। वजह थी अगले साल यानी साल 2020 में होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारी। प्रशांत किशोर के लिए यह एक बड़ा मौका था क्योंकि वह देश की राजधानी में BJP और उसके चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह को सीधे टक्कर दे सकते थे। चुनाव करीब थे। प्रशांत किशोर अपनी I-PAC टीम के साथ दिल्ली पहुंच गए। उन्होंने आम आदमी पार्टी को सलाह दी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ कुछ न बोलें और उन्हें इंडिविजुअली टार्गेट न करें क्योंकि उस वक्त मोदी अपने करियर के पीक पर थे। उनके खिलाफ बोलने का मतलब था चुनाव को मोदी बनाम केजरीवाल बना देना, जिससे BJP को बढ़त मिल सकती थी।
फैसला लिया गया कि आम आदमी पार्टी केजरीवाल के अब तक के किए गए कामों को आधार बनाकर लोगों से वोट की अपील करेगी। प्रशांत किशोर और I-PAC ने केजरीवाल के लिए एक स्लोगन बनाया 'लगे रहो केजरीवाल'। आम आदमी पार्टी के नेता घर-घर जाकर लोगों को बताते कि कैसे केजरीवाल ने हर मोहल्ले में इलाज के लिए मोहल्ला क्लीनिक खोले हैं, सरकारी स्कूलों के इंफ्रास्ट्रक्चर को काफी बेहतर किया है और घर-घर साफ पानी और मुफ्त बिजली की सुविधाएं पहुंचाई हैं। पार्टी किसी भी तरह की पोलराइजेशन से बचना चाहती थी।
BJP दिल्ली के शाहीन बाग में चल रहे CAA और NRC प्रोटेस्ट को मुद्दा बनाती रही लेकिन आम आदमी पार्टी ने इसे बड़ा मुद्दा बनने नहीं दिया। इसी बीच BJP के एक नेता ने केजरीवाल का एक पोस्टर दिखाते हुए कहा- 'आतंक का दूसरा नाम अरविंद केजरीवाल', जिसका फायदा केजरीवाल को हुआ। मीडिया में आकर केजरीवाल ने कहा कि वह दिल्ली की जनता पर छोड़ते हैं कि वह उन्हें अपना बेटा या भाई मानते हैं या आतंकवादी। प्रशांत किशोर ने आम आदमी पार्टी को विकास से जुड़े मुद्दों से बिल्कुल भी भटकने नहीं दिया। नतीजा यह हुआ कि आम आदमी पार्टी को साल 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में 70 में से 62 सीटें मिलीं और अरविंद केजरीवाल एक बार फिर दिल्ली के मुख्यमंत्री बन गए। प्रशांत किशोर ने एक बार फिर BJP को देश की राजधानी में मात दे दी थी लेकिन अगले साल यानी 2021 में एक और राज्य में विधानसभा चुनाव होने वाले थे जहां बीजेपी पिछले कुछ सालों से काफी बेहतरीन प्रदर्शन कर रही थी। यह सूबा था पश्चिम बंगाल।
बंगाल की ‘भविष्यवाणी’
पश्चिम बंगाल में लेफ्ट पार्टी के कमजोर होने के बाद ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस पिछले दस साल से बंगाल की सत्ता पर काबिज़ थी। ममता बनर्जी के आस-पास भी कोई और नेता नजर नहीं आ रहा था लेकिन साल 2019 लोकसभा चुनाव ने ममता को परेशान कर दिया था। इस चुनाव में BJP ने TMC को टक्कर देते हुए 40 में से 18 सीटें जीत ली थीं जबकि साल 2014 के लोकसभा चुनाव में BJP को मात्र 2 सीटें मिली थीं। पिछले दस सालों से पश्चिम बंगाल में एक छत्र राज कर रही ममता बनर्जी के लिए नरेंद्र मोदी चुनौती बनकर खड़े हो चुके थे। सबकी नजर 2021 में होने वाले बंगाल विधानसभा चुनाव पर थी।
ममता बनर्जी चुनावी रणनीति के लिए प्रशांत किशोर को अप्रोच करती हैं। प्रशांत अपनी I-PAC टीम लेकर पश्चिम बंगाल रवाना हो जाते हैं। चुनाव से ठीक चार महीने पहले प्रशांत किशोर एक ट्वीट करते हैं और कहते हैं कि पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में BJP ट्रिपल डिजिट पार नहीं कर पाएगी और अगर करती है तो वह चुनावी रणनीतिकार का काम छोड़ देंगे। पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स इसे ओवर कॉन्फिडेंस की तरह देख रहे थे लेकिन प्रशांत को शायद इस बात पर भरोसा था। उन्होंने इस चुनाव को बाहरी बनाम बंगाली बनाने की कोशिश की। एक नारा दिया 'Bangla Nijer Mayekei Chaay', यानी हमें बंगाली चाहिए, बाहरी नहीं। इस नारे के जरिए यह जताने की कोशिश की गई कि हमें अपनी बंगाली ममता दीदी चाहिए, हमें बाहरी मोदी और अमित शाह नहीं चाहिए लेकिन इन सबके बीच प्रशांत किशोर की एक ऑडियो क्लिप वायरल हो जाती है, जिसमें वह कहते सुने गए कि पश्चिम बंगाल में ममता और मोदी दोनों बराबर लोकप्रिय हैं। इस बात को BJP चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश करती है। इस बात को काउंटर करते हुए प्रशांत किशोर मीडिया में कहते हैं- 'हिम्मत है तो पूरी क्लिप चलाओ, क्योंकि मैंने आगे यह भी कहा है कि फिर भी जीतेंगी तो ममता बनर्जी ही।' कुल मिलाकर प्रशांत मीडिया से बातचीत में यही कहते रहे कि BJP बंगाल में ट्रिपल डिजिट भी नहीं छू पाएगी और हुआ भी ऐसा ही। बंगाल विधानसभा की कुल 294 सीटों में से BJP केवल 77 सीटों पर ही सिमट गई।
कांग्रेस में जाते-जाते रह गए PK!
पश्चिम बंगाल में मिली जीत के बाद प्रशांत किशोर एक बार फिर कांग्रेस के इर्द-गिर्द दिखने लगे। उन्होंने कांग्रेस नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के साथ कई दौर की बैठकें कीं। ये बैठकें कांग्रेस को एक बार फिर रिवाइव करने के लिए हो रही थीं क्योंकि सामने 2024 के लोक सभा चुनाव थे। प्रशांत किशोर ने इसके लिए एक रोड मैप तैयार किया और एक प्रेजेंटेशन भी दिया, जिसमें कहा कि कांग्रेस को फिर से मजबूत करने के लिए ऊपर से नीचे तक संगठनात्मक सुधारों की जरूरत है। कांग्रेस वर्किंग कमेटी यानी CWC के लिए चुनाव होने चाहिए, ग्राउंड पर काम कर रहे कार्यकर्ताओं को अहमियत दी जाए और उन्हें मजबूत किया जाए। BJP की हिंदुत्व आइडियोलॉजी को काउंटर करने के लिए योजना बनाई जाए। प्रेजेंटेशन की ये बातें गांधी परिवार को काफी पसंद आईं, लेकिन प्रशांत किशोर की एक शर्त थी कि वह सीधे सोनिया गांधी को रिपोर्ट करेंगे और पार्टी में उनके बीच में कोई न आए। कुल मिलाकर प्रशांत फ्री हैंड की मांग कर रहे थे। कांग्रेस ने उन्हें फ्री हैंड न देते हुए पार्टी जॉइन करने का ऑफर दे दिया लेकिन प्रशांत ने इसे मानने से साफ इनकार कर दिया।
कांग्रेस के साथ बातचीत का सिलसिला चल ही रहा था कि प्रशांत किशोर एक विवाद में फंस गए। साल 2021 के अक्टूबर महीने में गोवा विधानसभा चुनाव होने वाले थे। प्रशांत किशोर TMC के लिए वहां चुनावी रणनीति बना रहे थे। इसी दौरान एक प्राइवेट मीटिंग का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, जिसमें वह कह रहे थे कि चाहे चुनाव जीतें या हारें, BJP अगले कई दशकों तक देश की राजनीति का केंद्र बनी रहेगी। जैसे आज़ादी के बाद के 40 साल कांग्रेस रही थी। उन्होंने कहा कि बिल्कुल भी यह समझने की भूल न करें कि लोग BJP से नाराज़ हो रहे हैं और नरेंद्र मोदी को बाहर का रास्ता दिखा देंगे। मोदी बाहर भी हो गए तो BJP अगले कई सालों तक सत्ता का केंद्र बनी रहेगी। इस वीडियो में प्रशांत किशोर राहुल गांधी की आलोचना करते हुए कहते हैं कि राहुल गांधी सोचते हैं कि कुछ ही दिनों की बात है, लोग BJP और मोदी को हटा देंगे लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं होने वाला है। इन बातों से प्रशांत किशोर और कांग्रेस के बीच दूरियां बढने लगीं और आखिर में प्रशांत किशोर कांग्रेस से बिल्कुल अलग हो गए।
PK का ‘गांधी मॉडल’
कांग्रेस के साथ बात नहीं बनने के बाद प्रशांत किशोर ने बिहार का रुख किया। 22 मई 2022 को उन्होंने ‘जन सुराज अभियान’ नाम से एक पैदल यात्रा की शुरुआत की। बैनर पर महात्मा गांधी थे और प्रशांत किशोर, गांधी की पैदल यात्रा को तराजू बनाकर गांव-गांव, शहर-शहर घूम रहे थे। आम बिहारियों से संवाद कर रहे थे और कह रहे थे कि पिछली सरकारों ने आपको लूटा है, आपके बच्चों के लिए पढ़ाई की ढंग की व्यवस्था नहीं की, आपको जानबूझकर जहालत की तरफ ढकेला गया और आपके प्रदेश में कोई कारखाना नहीं है। कब तक दिल्ली और गुजरात जाकर मजदूरी करते रहेंगे। कुल मिलाकर प्रशांत किशोर बिहार के लोगों को यह बताना चाहते थे कि आप अपनी सोच बदलिए, जाति की राजनीति से बाहर निकलकर शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसे मुद्दों पर वोट कीजिए।
प्रशांत पैदल यात्रा कर रहे थे और इसकी चमक और धमक सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रही थी क्योंकि इस यात्रा के पीछे पूरी PR टीम खड़ी की गई थी। देश के नामचीन कॉलेजों से पास आउट हुए छात्रों को हायर किया गया और उनके रहने-खाने की व्यवस्था की गई। उनका बस काम था कि प्रशांत किशोर के चेहरे को जन-जन तक पहुंचाना। सोशल मीडिया पर प्रशांत किशोर की इमेज एक ऐसे नेता के रूप में स्थापित हुई जो पढ़ा-लिखा है और बिहार को बदलना चाहता है। इस PR का फायदा उन्हें भी दिखा और सोशल मीडिया पर प्रशांत किशोर की खूब सराहना होने लगी। बिहार की एक अच्छी-खासी आबादी तक पैदल यात्रा करने के बाद प्रशांत ने गांधी जयंती यानी 2 अक्टूबर 2024 को ‘जन सुराज पार्टी’ का एलान कर दिया। प्रशांत किशोर मुताबिक आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में जन सुराज बिहार की पूरी 243 सीटों पर चुनाव लड़ेगी।
फंडिंग पर दिया जवाब
जन सुराज की पैदल यात्रा के दौरान एक सवाल लोगों के जहन में घूम रहा था कि आखिर इतनी बड़ी सभा और इतने लोगों को इकट्ठा करने के लिए पैसे कहाँ से आते हैं क्योंकि जन सुराज की रैलियों में हजारों लोग आते हैं और सैकड़ों गाड़ियां गांव-गांव जाती हैं ताकि लोगों को रैलियों में लाया जा सके। शुरुआत में जब यह सवाल प्रशांत से पूछा जाता था, तो वह सिर्फ इतना कहते थे कि उन्होंने देश भर में जिन लोगों के लिए चुनावी रणनीति बनाई है, वे उन्हें सपोर्ट कर रहे हैं और इसके आगे वह कुछ नहीं कहते थे लेकिन 29 सितंबर 2025 को प्रशांत किशोर ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की, जो BJP नेता संजय जायसवाल के आरोपों के जवाब में थी, जिनमें जन सुराज पार्टी की फंडिंग पर सवाल उठाए गए थे। प्रेस कॉन्फ्रेंस में प्रशांत किशोर ने बताया कि पिछले तीन साल पहले उन्होंने राजनीतिक और बिजनेस कंसल्टेंसी के लिए चार्ज लेना शुरू किया। यानी अगर किसी को सलाह देते हैं तो उनसे पैसे चार्ज करते हैं। प्रशांत ने दावा किया कि पिछले तीन साल में उन्होंने कुल 241 करोड़ रुपए राजनीतिक और बिजनेस कंसल्टेंसी से कमाए। जिस पर उन्होंने 18% GST के हिसाब से कुल 30 करोड़ 95 लाख 68 हजार 764 रुपए केंद्र सरकार को दिए, 20 करोड़ रुपए इनकम टैक्स भरे और इसके अलावा पैसे जन सूरज के कामों में खर्च किए। इसके बाद 98 करोड़ 75 लाख रुपए बचे, जो प्रशांत ने जन सुराज के खाते में डोनेट कर दिए। हालांकि, उन्हें जो लोग चंदा देते हैं या फिर जिनके लिए उन्होंने कभी रणनीति बनाई थी उनसे कितना पैसा आया। किन लोगों ने दिया इसका जवाब देते हुए प्रशांत किशोर बचते दिखाई देते हैं।
अब आखिर में सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या प्रशांत किशोर बिहार के आगामी विधानसभा चुनाव में कोई प्रभाव डाल सकते हैं? चुनाव नवंबर महीने में होने वाले हैं। चुनाव से पहले प्रशांत कई इंटरव्यूज़ में यह दावा कर चुके हैं कि उनकी पार्टी या तो चुनाव में पहले नंबर पर आएगी या फिर सबसे नीचे। बीच का कोई रास्ता नहीं होगा। कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि प्रशांत किशोर की हवा केवल सोशल मीडिया तक सीमित है क्योंकि सोशल मीडिया मैनेज करने का उनकी टीम के पास लंबा अनुभव है और उनके पास एक मजबूत PR टीम है जो प्रशांत किशोर को सोशल मीडिया पर मेहनतकश, साफ छवि वाले पढ़े-लिखे नेता के रूप में पेश करती है लेकिन ग्राउंड रियलिटी इससे बिलकुल अलग है। एक्सपर्ट्स कहते हैं कि इस बार के चुनाव में प्रशांत किशोर केवल NDA और महागठबंधन के वोट काट सकते हैं।
पिछले दो-तीन दशकों में बिहार की राजनीति में तीन पार्टियां जनता के बीच प्रभावशाली रही हैं—लालू यादव की RJD, नीतीश कुमार की JDU और उनके साथ-साथ BJP। लालू यादव पर जब से चारा घोटाला का आरोप लगा और कोर्ट की तरफ से कहा गया कि वह चुनाव नहीं लड़ सकते, उन्होंने अपने छोटे बेटे तेजस्वी यादव को RJD का चेहरा बना दिया। आज की तारीख में तेजस्वी बिहार की राजनीति में एक मजबूत चेहरे के तौर पर देखे जाते हैं। नीतीश कुमार का अभी तक कोई उत्तराधिकारी नहीं है। कहीं न कहीं प्रशांत किशोर नीतीश कुमार को अप्रासंगिक बताकर खुद को बिहार के राजनीतिक वातावरण में स्थापित करना चाहते हैं। यही कारण है कि वह पिछले कुछ सालों में नीतीश कुमार को बार-बार टारगेट करते दिखाई देते हैं और दावा करते हैं कि नीतीश अब बिहार की राजनीति में प्रासंगिक नहीं रह गए हैं। वह नीतीश को शारीरिक रूप से थके हुए और मानसिक रूप से रिटायर्ड बताते हैं, कहते हैं कि उनकी सेहत इतनी खराब है कि उन्हें राज्य की स्थिति की कोई समझ नहीं बची है। नीतीश कुमार भी ऐसे मौकों पर अजीब हरकतें करते हुए दिखाई दिए। कभी राष्ट्रगान बज रहा था सब खड़े थे, उस दौरान नीतीश करीब में खड़े सहयोगी से हंसते-हंसते कुछ कहने की कोशिश कर रहे थे। कभी किसी समारोह में पौधा गिफ्ट किया गया तो वह गिफ्ट देने वाले के सिर पर ही पौधा रख देते थे। ऐसी बहुत सारी बातें हैं, जिन्हें लेकर आए दिन सोशल मीडिया पर मीम्स भी बनते रहते हैं।
दूसरी तरफ प्रशांत किशोर तेजस्वी यादव को टारगेट करते हुए उनके 9वीं फेल होने का मज़ाक बनाते हैं। कहते हैं कि उन्होंने क्रिकेट भी खेला, लेकिन उसमें भी कोई कामयाबी हासिल नहीं कर पाए। उनकी उपलब्धि बस इतनी है कि वह लालू यादव के बेटे हैं, इससे ज्यादा कुछ नहीं। लालू यादव के बारे में प्रशांत किशोर कहते हैं कि लालू ने बिहार में शोषित और वंचितों की लड़ाई लड़ी और उन्हें उनका सम्मान दिलाया, जिसकी प्रशांत सराहना करते हैं लेकिन दूसरी तरफ वह कहते हैं कि लालू यादव ने बिहार के लोगों के लिए बेहतर व्यवस्था नहीं की, शिक्षा पर ध्यान नहीं दिया, रोजगार पर ध्यान नहीं दिया। लालू के राज से चला आ रहा गुंडा राज आज भी जारी है और नीतीश के राज में भी हत्याएँ और गुंडागर्दी होती हैं।
पिछले महीने यानी सितंबर 2025 में प्रशांत किशोर ने एक के बाद एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर बिहार की राजनीति में हलचल पैदा कर दी। शुरुआत उन्होंने JDU नेता अशोक चौधरी पर 200 करोड़ की अवैध संपत्ति अर्जित करने का आरोप लगाकर की। दावा किया कि अशोक चौधरी ने अपनी बेटी शांभवी चौधरी, जो समस्तीपुर से सांसद हैं, की शादी के बाद परिवार और ट्रस्ट के नाम पर ज़मीनें खरीदीं जो बेनामी हैं। प्रशांत ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कुछ दस्तावेज़ दिखाए और कहा कि यह मनी लॉन्ड्रिंग का मामला है। जवाब में अशोक चौधरी ने प्रशांत किशोर को 100 करोड़ का मानहानि नोटिस भेजा और कहा कि प्रशांत किशोर माफी मांगें लेकिन प्रशांत ने कहा कि वह इस नोटिस से डरने वाले नहीं हैं।
इसके बाद प्रशांत किशोर ने एक और प्रेस कॉन्फ्रेंस की, इस बार बिहार BJP के नेता और उप मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी पर कई गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि सम्राट चौधरी साल 1995 में हुए तारापुर हत्याकांड में शामिल थे और उन्हें मर्डर केस में जेल की सजा हुई थी। उन्हें बेल मिल जाए इसलिए उन्होंने जाली ‘डेट ऑफ बर्थ’ सर्टिफिकेट बनवाया ताकि खुद को उस वक्त नाबालिग दिखा सकें। इसी वजह से उन्हें बेल मिली। प्रशांत किशोर ने सम्राट चौधरी पर एक और गंभीर आरोप लगाया कि साल 1999 में हुए शिल्पी गौतम मर्डर केस में भी वह शामिल थे, जिसका कनेक्शन लालू यादव के साले साधु यादव से था। प्रशांत ने सम्राट चौधरी की गिरफ्तारी की मांग की।
गैरों पर सितम, अपनों पे करम
पूर्णिया के पूर्व सांसद उदय सिंह उर्फ पप्पू सिंह को जनसुराज पार्टी ने अपना पहला राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया। 29 जुलाई, 2024 को PK ने पार्टी बनाने की घोषणा करते हुए कहा था कि उनकी पार्टी का पहला अध्यक्ष दलित जाति का कोई 'पढ़ा-लिखा काबिल' व्यक्ति होगा। उसके एक साल के कार्यकाल के बाद अगला अध्यक्ष अति पिछड़ी जाति का और उसके बाद अगला अध्यक्ष मुसलमान होगा। पार्टी ने 2 अक्टूबर, 2024 को मनोज भारती को अपना कार्यकारी अध्यक्ष बनाया भी। तब पीके ने कहा था कि उन्होंने अपना वादा पूरा किया लेकिन पार्टी ने 19 मई, 2025 को राजपूत जाति से आने वाले उदय सिंह को अध्यक्ष बना दिया।
उदय सिंह के पिता त्रिभुवन प्रसाद सिंह ICS अफसर थे। त्रिभुवन सिंह देश के पहले वित्त सचिव रहे। उनके बड़े भाई एनके सिंह IAS अधिकारी, 15वें वित्त आयोग के अध्यक्ष और राज्यसभा सदस्य रहे हैं। उनकी मां माधुरी सिंह दो बार पूर्णिया की सांसद रही हैं। ऐसे बैकग्राउंड और रसूखदार परिवार से आने के बावजूद उदय सिंह ने 12वीं तक की ही पढ़ाई की। उनका आख़िरी स्कूल वही डीपीएस आर.के.पुरम था जहां कभी आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने पढ़ाई की। जिनके ना पढ़े होने को लेकर PK मुद्दा बनाते रहे हैं। उदय सिंह खुद भी पूर्णिया से दो बार सांसद रहे। बीजेपी की टिकट पर। 2014 में वह चुनाव हारे तो उन्होंने बीजेपी छोड़कर कांग्रेस ज्वाइन कर ली। 2019 में कांग्रेस की टिकट पर उदय सिंह चुनाव लड़े लेकिन हार गए और बाद में इस्तीफा दे दिया।
PK फिलहाल पटना के जिस शेखपुरा हाउस में रहते हैं, वह उदय सिंह का ही है। याद कीजिए BPSC पेपर लीक मामले में जब पीके अनशन कर रहे थे तब उनकी वैनिटी वैन को लेकर काफी सवाल उठे थे। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ वह वैनिटी वैन भी उदय सिंह की ही थी। इंडिया टुडे हिंदी की एक रिपोर्ट में दर्ज मिलता है, 'यह भी कहा जाता है कि जिस जॉय ऑफ गिविंग ग्लोबल फाउंडेशन के जरिए जनसुराज के पेशेवर कार्यकर्ताओं को वेतन दिया जाता है, उसके निदेशक उदय सिंह और उनके सहयोगी शरत कुमार मिश्रा हैं। मगर उदय सिंह ऐसे दावों को नकारते हैं। हालांकि, वह कहते हैं कि प्रशांत किशोर के अभियान में वह अपनी जमा-पूंजी लगा सकते हैं।'
यही बात पीके भी हर इंटरव्यू में दोहरा रहे हैं। कह रहे हैं कि बिहार में व्यवस्था बदलने के लिए वह अपना सब कुछ दांव पर लगा चुके हैं। जीवन के 3 साल खपा चुके हैं। अगले 7 साल भी खपाने को तैयार हैं। ऐसा वह खुद कह रहे हैं लेकिन आने वाले वक्त में यह देखना बेहद दिलचस्प होगा कि प्रशांत किशोर जिन मुद्दों को लेकर बिहार में राजनीति कर रहे हैं, उनका भविष्य क्या होगा? यह देखना भी दिलचस्प होगा कि प्रशांत का दावा कहां तक सही साबित होता है कि जनसुराज या तो अर्श पर होगी या फिर फर्श पर।
और पढ़ें
Copyright ©️ TIF MULTIMEDIA PRIVATE LIMITED | All Rights Reserved | Developed By TIF Technologies
CONTACT US | PRIVACY POLICY | TERMS OF USE | Sitemap