कभी 30 दिन की फंडिंग थी, दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी कैसे बनी nvidia?
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• CALIFORNIA 05 Sept 2025, (अपडेटेड 05 Sept 2025, 1:36 PM IST)
मौजूदा वक्त में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस हो, मनी लर्निंग हो या फिर गेमिंग, हर सेक्टर में जो चिप इस्तेमाल हो रहे हैं, उन्हें nvidia ने बनाया है। पढ़िए उसी nvidia की कहानी।

Nvidia की कहानी, Photo Credit: Khabargaon
जनवरी 2025, अमेरिका की सिलिकन सिटी- कैलिफोर्निया। सैंटा क्लारा की सबसे मशहूर हेक्सागन बिल्डिंग में हलचल मची हुई थी। दुनिया की सबसे बड़ी टेक कंपनी के शेयर ज़मीन पर आ चुके थे। यह इतनी बड़ी गिरावट थी कि अमेरिकी शेयर बाजार के इतिहास में आज तक किसी कंपनी ने एक दिन में इतना पैसा नहीं गंवाया था, जिसके चलते कंपनी की मार्केट वैल्यू 593 बिलियन डॉलर तक घट गई। भारतीय रुपये में बात करें तो लगभग 51.31 लाख करोड़ रुपये की गिरावट यानी एक दिन में इस कंपनी ने इतना पैसा गंवाया जितनी सिंगापुर, थाइलैंड या कहें पाकिस्तान समेत 170 देशों की GDP तक नहीं है।
इस गिरावट ने दुनिया की सबसे वैल्यूएबल कंपनी को पहले नंबर से तीसरे पायदान पर लाकर पटक दिया। हम बात कर रहे हैं Nvidia की, जिसे दुनिया के AI का ब्रेन कहा जाता है। फिर चाहे वह एलन मस्क की स्पेस एक्स हो, Toyota की ड्राइवरलेस कार हो या ChatGPT और Google Gemini जैसे AI मॉडल यहां तक कि रोबोट्स तक में इसी कंपनी के बनाए चिप का इस्तेमाल होता है। अपने GPU के ज़रिए गेमिंग की दुनिया में तहलका मचाने के बाद यह कंपनी अब लगभग हर उस कंपनी के लिए चिप बना रही है जो हमारे फिज़िकल वर्ल्ड को डिजिटल वर्ल्ड के साथ जोड़ता है। यहां तक कि बैटल फील्ड में भी Nvidia अब अमेरिका और इजरायल जैसे देशों का ब्रेन बन चुका है।
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DeepSeek ने दिया तगड़ा झटका!
सवाल अभी भी बाकी है कि जनवरी 2025 में ऐसे क्या हुआ कि Nvidia के शेयर्स में इतनी बड़ी गिरावट आई? इसके पीछे वजह था चीन का एक AI स्टार्टअप DeepSeek। जिसने जनवरी 2025 में DeepSeek R1 नाम का एक मुफ्त और ओपन-सोर्स AI चैटबॉट लॉन्च करके पूरी दुनिया को हिला दिया। यह इतना बड़ा हिट साबित हुआ कि इसने लॉन्च के एक ही हफ्ते में US App Store पर ChatGPT को डाउनलोड के मामले में पीछे छोड़ दिया। अब तक दुनियाभर के AI मॉडल्स में Nvidia के महंगे चिप का इस्तेमाल होता आ रहा था लेकिन डीपसीक ने दावा किया कि उसने Nvidia के इन महंगे चिप के बिना ही कम लागत में Deepseek का AI चैटबॉट तैयार कर दिया। यही वह वजह थी जिसने इनवेस्टर्स को सोचने पर मजबूर कर दिया कि कहीं यह Nvidia के डाउनफॉल की शरुआत तो नहीं और इसी के चलते इस कंपनी के शेयरों में इतनी बड़ी गिरावट आई। हालांकि, महज़ 6 महीनों में Nvidia ने बाउंस बैक किया और माइक्रोसॉफ्ट, एप्पल, गूगल, टेस्ला जैसे दिग्गजों को पछाड़कर 4.2 ट्रिलियन की मार्केट वैल्यू वाली दुनिया की इकलौती कंपनी बन गई। इसे ऐसे समझिए कि जितनी इस कंपनी की मार्केट वैल्यू है उतनी पूरे भारत की GDP है।
किस्सा की इस किस्त में पढ़िए कहानी Nvidia की। यह कहानी सिर्फ टेक्नोलॉजी की नहीं है। यह कहानी है एक ताइवानी इमीग्रेंट लड़के Jensen Huang के सपनों की, उसके स्ट्रगल की और एक असंभव सी शर्त की है। जिसने इस दुनिया की सबसे बड़ी टेक कंपनी को खड़ा कर दिया। जानेंगे कि कैसे अपने शुरुआती दौर में ही दिक्कतें झेल रही Nvidia ने आगे चलकर ऐप्पल, माइक्रोसॉफ्ट और गूगल जैसे दिग्गजों को पछाड़ा। 90 के दशक में गेमिंग बूम ने कैसे Nvidia की किस्मत बदल दी और यह कंपनी आखिर ऐसा क्या बना रही है कि दुनिया की हर टेक कंपनी को सिर्फ इसी की ज़रूरत है। एप्पल को जहां 1 ट्रिलियन से 3 ट्रिलियन की कंपनी बनने में 3 साल से ज्यादा का वक्त लगा, वहीं Nvidia महज़ 1.5 साल में 4 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच गई और अब यह कंपनी अमेरिका की फॉरन डिप्लोमेसी का टूल तक बन गई है। और इस अमेरिका चीन की खींचतान का खामियाज़ा इसे भी भुगतना पड़ रहा है।
जेनसेन हुआंग की शुरुआती जिंदगी
Nvidia की कहानी जानने से पहले हमें एक नज़र इसके फाउंडर Jensen Huang की ज़िंदगी पर भी मारनी ज़रूरी है। इस कहानी की शुरुआत होती है ताइवान से। 1960 का दशक ताइवान के लिए उथल-पुथल भरा था। एक ओर देश तेजी से इंडस्ट्रलाइजेशन की ओर बढ़ रहा था। दूसरी तरफ यह देश चीन के सामने अपने वजूद की लड़ाई लड़ रहा था। यहां के लोग देश की सामाजिक और राजनीतिक अस्थिरता के बीच में फंसे हुए थे। उनके सामने दो ही रास्ते थे या तो वह ताइवान में रहकर अपना गुज़ारा करें या किसी और मुल्क में अपनी मंज़िल तलाशें।
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उस वक्त राजधानी ताइपे में एक हुआंग परिवार रहा करता था जिसका मुखिया हुआंग ह्सिंग-ताई था। इस परिवार में 1963 में एक बच्चे का जन्म हुआ। नाम रखा जेनसेंग हुआंग। फैमली मीडिल क्लास थी। पिता ऑयल रिफाइनली में केमिकल इंजीनियर का काम करते थे और मां एक स्कूल टीचर थी। जब जेनसेंग 5 साल का था। तब उसके परिवार को ताइवान से थाइलैंड जाना पड़ा क्योंकि उस वक्त की ताइवान की सरकार ने थाई गर्वनमेंट के साथ वहां आयल रिफाइनली प्रोजेक्ट सेटअप करने की डील कर रखी थी। इसी डील के जरिए हुआंग परिवार ने थाईलैंड जाना चुना। उम्मीद थी कि वहां जाकर घर की स्थिति सुधर जाएगी लेकिन यह दांव उल्टा पड़ा गया। कुछ ही दिनों में फैमली को वहां दिक्कत होने लगी। वजह थी थाईलैंड की मिलिट्री डिक्टेटरशिप। सड़कों पर विरोध प्रदर्शन जारी था और पॉलिटिकल सिस्सटम अनस्टेबल था। ऐसे में हुआंग परिवार ने बच्चों की सुरक्षा और एजुकेशन को देखते हुए उन्हें उनके अंकल के पास अमेरिका भेजने की सोची। वैसे अंकल के हालात भी अमेरिका में कुछ ठीक नहीं थे लेकिन वह जगह सेफ तो थी। 9 साल के जेनसन को उसके छोटे भाई के साथ उनके अंकल के पास अमेरिका भेज दिया गया।
जेनसन के अंकल अमेरिका में मेकेनिक की नौकरी करते थे और एक बेसमेंट में गुजर-बसर करते। 9 साल का जेनसेन जब अमेरिका पहुंचा, तब न तो उसे इंग्लिश आती थी और न ही उसे अमेरिका के कल्चर की कोई समझ थी लेकिन बच्चों के एजुकेशन का सोचकर अंकल ने उनका एडमिशन ईस्टर्न केंटुकी के एक बोर्डिंग स्कूल में करा दिया। यह स्कूल एक रिफॉर्म स्कूल था, जो गरीब, बेसहारा या पिछड़े हुए अंडर प्रिविलेज्ड बच्चों के लिए बनाया गया था।
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जेनसेन को इस स्कूल में रोज टॉयलेट साफ करना पड़ता। उसके भाई को एक तम्बाकू के फार्म में काम करना पड़ता लेकिन परेशानी सिर्फ इतनी नहीं थी। उसकी भाषा, उसकी पहचान, उसकी हाइट, उनका हुलिया। हर चीज को लेकर उन्हें बुली किया जाता। वक्त के साथ जेनसेन ने खुद को वहां के माहौल में ढाल लिया। खैर जैसे-तैसे स्कूल खत्म हुआ और अब बारी थी कॉलेज की लेकिन यह आसान नहीं था। कॉलेज की फीस चुकाने के लिए जेनसेन ने रेस्टोरेंट में पार्टटाइम वेटर की नौकरी की। पैसे इकट्ठा किए और कॉलेज की फीस चुकाई और इस तरह ओरेगन स्टेट यूनिवर्सिटी से इलेक्ट्रिक इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की।
इसके बाद जेनसेन स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी से मास्टर्स करना चाहता था। वही यूनिवर्सिटी जहां से लैरी पेज, पीटर थियल, इलोन मस्क जैसे दिग्गजों ने पढ़ाई की थी लेकिन आगे की पढ़ाई के लिए यहां भी फाइनेंस ही आड़े आ रहा था। जेनसेन ने इलेक्टिकल इंजीनियरिंग में डिग्री की थी। इसलिए उन्होंने पहले नौकरी करने की सोची। सिलिकॉन वैली पहुंचा और माइक्रोचिप बनाने वाली दिग्गज कंपनी AMD में इंटरव्यू दिया और सिलेक्ट हो गया लेकिन जेनसेन के लिए कंपनी नहीं नई टेक्नोलॉजी मैटर करती थी। जैसे ही LSI Logic ने एक नया चिप डिजाइन किया तो जेनसन ने इसी कंपनी को ज्वाइन कर लिया और साथ ही स्टैनफॉर्ड में ईवनिंग क्लास लेनी भी शुरू कर दी।
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LSI में काम करने के दौरान 1989 में जेनसेन की दोस्ती Chris Malachowsky और Curtis Priem से हुई। तीनों टेक एंथुजियास्ट थे। इन तीनों ने मिलकर अपने क्लाइंट सन माइक्रो सिस्टम के लिए एक GX ग्राफिक्स इंजन बनाया। यह इंजन जैसे ही मार्केट में आया, इसने धमाका कर दिया। सन माइक्रोसिस्टम के रिवेन्यू में कई गुना इजाफा हुआ और अवॉर्ड के तौर पर जेनसेन को LSI ने प्रमोट कर कोर-वेयर ग्रुप का डायरेक्टर बना दिया गया। फिर आया साल 1993। जब जेनसेन ने अपने दोनों दोस्त क्रिस और कर्टिस के साथ मिलकर एक आइडिया पर काम करना शुरू किया, वह आइडिया जिसने पूरी दुनिया बदल दी।
दुनिया बदलने वाला आइडिया
कैसे वक्त से आगे की सोच किसी भी शख्स और कंपनी को बड़ा बना सकती है Jenson और Nvidia उसक परफेक्ट उदाहरण हैं लेकिन इस उदाहरण को समझने के लिए आपको 90 के दशक और उससे पहले की PC गेमिंग इंडस्ट्री पर एक नजर मारनी होगी। 1961 में स्पेसवॉर इन्वेंट हुई और इसे PC गेम्स में सबसे पहली गेम माना जाता है। यह गेम MIT lab की बेसमेंट में कुछ रिसर्चर्स की टीम ने डेवलप की थी। इस गेम में दो शिप्स आपस में टकराते जिसे दो प्लेयर्स खेल रहे होते थे। 1980 आते-आते पर्सनल कंप्यूटर आम घरों की चीज बन चुके थे। इसे अब रिसर्चर्स ही नहीं बल्कि आम लोग भी चला रहे थे लेकिन अब एक PC सबको कैल्कुलेशन तो करनी नहीं थी लिहाजा इन कंप्यूटर्स का इस्तेमाल फन के लिए भी होने लगा और इसी के साथ PC गेमिंग का युग शुरू हुआ और गेम एंथूज़ियास्ट्स ने कंप्यूटर गेम्स बनाने शुरू कर दिए। महंगे
कंप्यूटर के युग में Sinclair ने एक सस्ता ZX80 कंप्यूटर लॉन्च किया जिसकी कीमत थी महज़ 200 डॉलर, जिसने गेमिंग को घर-घर तक पहुंचा दिया। इसके 1 साल बाद Commodore 64 लॉन्च हुआ यह उस वक्त का सबसे ज्यादा बिकने वाला पर्सनल कंप्यूटर बन गया। फिर आया Amiga Computer जिसकी प्रोसेसिंग बाकियों से तेज़ थी। एक ऐसा कंप्यूटर जिसमें 64 8bit ग्राफिक्स था और साथ ही कई अडवांस प्रोसेर्स थे।
इसी के साथ गेमिंग युग की ऑफिशियली शुरुआत हो गई। उस वक्त सबसे मशहूर थी वीडियो गेम कंपनी Sierra Entertainment द्वारा डेवलप की गई वीडियो गेम्स Mystery House और King's Quest (1984) ने मार्केट में धूम मचा रखी थी। यह वह एरा था जब Wing commander और Space Quest जैसी गेम्स का काफी क्रेज़ था। फिर साल 1996 में गेमिंग का नया अध्याय शुरू हुआ जब 3d shooter game मार्केट में आई। पहले लोग सिर्फ गेम खेला करते थे लेकिन अब वे गेम में एक रोल प्ले कर रहे थे जिसने गेमिंग के एक्सपीरिएंस को बदल कर रख दिया लेकिन इस गेमिंग को Call of duty और Minecraft जैसी गेम्स जैसे रियल टाइम एक्सपीरियंस तक पहुंचने के लिए एक एडवांस चिप की ज़रूरत थी और यह चिप उनके लिए कौन बनाने वाला था? Nvidia
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बस यहीं से जेनसन और Nvidia की कहानी शुरू होती है। जेनसेन को हमेशा से ही यकीन था कि ग्राफिक्स और कम्प्युटर गेम फ्यूचर है। यह पूरी दुनिया का शेप बदलने वाली है लेकिन AMD और LSI logic जैसे प्लेयर्स इसे पोटेंशियल नहीं मानते थे। 1993 में जेनसेन ने अपने दोनों साथी क्रिस और कर्टिस के साथ मिलकर अपना काम और अपना चिप बनाने की सोची। नौकरी छोड़ी और फिर कैलिफोर्निया के ही छोटे से किराए के कमरे पर कंपनी की शुरुआत की और इस कंपनी का नाम रखा Nvidia।
Nvidia का नाम लिया गया था लैटिन शब्द invidia से। जिसका मतलब होता है envy यानी ईर्ष्या या जलन। जेनसेन और उनके साथियों का सपना था कि पूरी दुनिया के चिप मेकर्स उनके चिप को देखकर जलें और उन्हें रश्क हो कि वह उनके जैसी चिप क्यों नहीं बना पा रहे हैं और इसी सपने के साथ शुरुआत हुई Nvidia के विशाल बिजनेस एम्पायर की।
हर बड़े स्टार्टअप की तरह इस कंपनी को भी शुरुआत में थोड़ी प्रॉबलम हुई। प्रॉब्लम यह थी कि इंडस्ट्री को Nvidia का कॉन्सेप्ट ही समझ नहीं आ रहा था। मार्केट में INTEL और IBM जैसे जाइंट्स छाए हुए थे। जो कि कम्प्युटर चिप बनाते थे लेकिन NVIDIA गेमिंग को ध्यान में रखकर ग्राफिक्स चिप बनाना चाहती थी। इसके चलते जेनसेन को फंडिंग भी नहीं मिल रही थी। ऐसे में जेनसेन और उनके दोस्तों ने अपनी पूरी कमाई दांव पर लगा दी। क्रेडिट कार्ड पूरा खाली कर दिया। यहां तक कि घर भी गिरवी रख दिया।
लेकिन वह बना क्या रहे थे? असल में जेनसेन गेमिंग के एक्सपीरिएंस को पूरी तरह से चेंज कर देना चाहते थे, जिसके लिए वह एक नए तरह के चिप पर काम कर रहे थे। उस दौर में जो चिप्स बनाई जा रही थी वह इन गेम्स के हिसाब से नहीं थी और कंप्यूटर इन गेम्स को हेंडल ही नहीं कर पा रहे थे। रीबूट का मसला था और गेम काफी स्लो चलती थी। इन गेम्स को चलाने के लिए मार्केट में वे चिप्स ही मौजूद नहीं थीं जो हाइ एंड ग्राफिक्स को सपोर्ट कर पाए जिससे प्लेयर को रियल टाइम एक्सपीरिएंस मिले। इन गेम्स को चलाने के लिए कंप्यूटर को अरबों खरबों कैल्कुलेशंस करनी पड़ती थी ताकि लोग एक गेम का मज़ा ले पाएं। इसी के चलते ये गेम्स काफी स्लो थीं तो एक तरफ जहां कंपनियों बिज़नेस सॉफ्टवेयर के लिहाज़ से सोच रही थीं। वहीं, जेनसेन ने गेमिंग इंडस्ट्री के पोटेंशियल को समझा।
इस तरह दिन रात की मेहनत के बाद Nvidia ने अपना पहला ग्राफिक्स चिप लॉन्च किया। envy 1 लेकिन यह चिप बुरी तरह से फ्लाप हुई। पूरी टीम निराश हुई लेकिन जेनसेन ने टीम को दोबारा मोटिवेट किया और पुरानी गलती से सीख लेकर अपने नए चिप के डिजाइन पर काम शुरू किया और फिर लॉन्च किया गया RIVA 128, जिसने 2D और 3D ग्राफिक्स को एक ही चिप में मर्ज कर दिया जिसके लिए पहले अलग-अलग कार्ड लगते थे जिससे प्रोसेसिंग स्लो हो जाता थी। यह चिप Nvidia की पहली ब्लॉकबस्टर चिप बनकर उभरी और यहीं से NVIDIA की मार्केट में मोनोपोली की शुरुआत हुई। RIVA 128 के सक्सेस के बाद Nvidia ने मार्केट में GEFORCE 256 के ज़रिए तहलका मचा दिया, जिसने Nvidia को दुनिया का गेमिंग का किंग बना दिया। GEFORCE 256 को ही दुनिया में GPU युग की शुरुआत माना जाता है।
यह कितनी बड़ी खोज थी इसके लिए आपको GPU को समझना होगा। GPU कंप्यूटर का वह हिस्सा है जो स्क्रीन पर दिखने वाली तस्वीरों, वीडियो और 3D ग्राफिक्स को तेजी से बनाता और प्रोसेस करता है। यह हजारों छोटे-छोटे कोर के साथ काम करता है, जो एक साथ बहुत सारे आसान काम कर सकते हैं, जैसे गेमिंग में 3D सीन रेंडर करना, वीडियो एडिटिंग या AI मॉडल्स को ट्रेन करना।
उदाहरण: जब आप कोई हाई-ग्राफिक्स गेम जैसे GTA 5 खेलते हैं तो GPU स्क्रीन पर हर फ्रेम, लाइटिंग और टेक्सचर को रियल-टाइम में बनाता है। Nvidia जैसे ब्रांड्स ने GeForce GPUs के जरिए इसे गेमिंग और AI में क्रांति लाने वाला बनाया। इससे पहले मार्केट में सिर्फ CPU हुआ करता था तो जो सारे काम पहले CPU करता था अब GPU ने ग्राफिक्स वाला सारा काम खुद पर ले लिया, जिससे गेमिंग और ज्यादा रियल और फास्ट हो गई लेकिन जेनसेन का सपना सिर्फ गेमिंग तक सीमित नहीं था। GeForce 256 की लॉन्चिंग के बाद जेनसेन के दिमाग में कम्प्यूटर्स का पूरा लैंड स्केप ही बदल गया था। यह सब देखकर जेनसेन को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का पोटेंशियल समझ में आने लगा और 2010 में जेनसेन ने इस पर काम करना शुरू कर दिया।
क्या यही है भविष्य?
साल 2010 में AI दुनिया के लिए सिर्फ एक फैंसी शब्द था। बात सब कर रहे थे। काम कोई नहीं करना चाह रहा था। तब जेनसेन ने सोच लिया था अब उनके GPU सिर्फ गेमिंग के लिए नहीं बल्कि फ्यूचर के भी ब्रेन बनेंगे और इसी सोच के साथ Nvidia ने साइलेंटली AI के लिए चिप डिजाइन करना शुरू कर दिया और जब कुछ साल के अंदर ये चिप मार्केट में आने लगे तो इन चिप्स ने टेक और फ्यूचर का पूरा शेप ही बदल दिया। क्रिप्टो माइनिंग, क्लाउड कम्प्युटिंग और डेटा सेंटर्स तक इन चिप्स ने अपनी मजबूत पकड़ बनानी शुरू कर दी। टेस्ला की सेल्फ ड्राइविंग कार हो या फिर Chat GPT जैसे AI प्लेटफॉर्म्स। सब कुछ Nvidia के चिप के जरिए चलने लगे और फिर Nvidia सिर्फ एक टेक कंपनी न रहकर रिवॉल्यूशन बन गई। दुनिया में इनोवेशन से जुड़े जो भी काम हो रहे थे- रोबोटिक्स, AI, मशीन लर्निंग, क्लाउंड कम्प्युटिंग, आपने जितने भी टैक सैवी नाम सुने हैं या देखें हैं, उन सब के पीछे सिर्फ Nvidia के GPU और चिप काम करते थे।
साल 2020 आते-आते Nvidia की मार्केट में मोनोपोली हो गई थी लेकिन दुनिया को इसकी असल वैल्यू नहीं पता थी। लोगों को या कंपनियों को ये सिर्फ छोटे सिलिकॉन चिप्स लगते थे। जो मशीनों में लगते और मशीनें काम करतीं लेकिन दुनिया ने 2020 में कोविड के दौर में Nvidia की वैल्यू को और अच्छे तरीके से समझा। उस दुनिया में चिप की शॉर्टेज हो गई। कार प्रोडक्शन बंद हो गया, म्यूजिक सिस्टम, कम्प्यूटर, लैपटॉप सभी के सप्लाई चेन टूट गए। इन सब के पीछे थी एक छोटी सी चिप। जो सिर्फ Nvidia जैसे कुछ प्लेयर्स बना सकते थे। तब दुनिया को समझ में आया सिलिकन चिप सिर्फ मशीन का एक छोटा सा पार्ट नहीं है बल्कि पूरा का पूरा फ्यूचर है और उस फ्यूचर को डिजाइन कर रहा थीं Nvidia और Intel जैसी कुछ चंद कंपनियां।
उस दौरान दुनिया की सारी चिप मेकिंग कंपनीज़ अपने क्वाटरली फायदे को देखा करती थी लेकिन जेनसेन का मिशन था फ्यूचर। वह कहते थे हम चिप नहीं बनाते बल्कि फ्यूचर बनाते हैं। उनकी मजबूती थी अग्रेसिवली R&D। आज भी nvidia हर साल रिसर्च एंड डेवलपमेंट में अपने रिवेन्यू का सबसे बड़ा हिस्सा खर्च करता है। एक सवाल जो हम सभी के मन में आता है। आखिरकार Nvidia ने एप्पल, माइक्रोसॉफ्ट, इंटेल जैसे बड़े प्लेयर्स को कैसे मात दी?
इसका जवाब है इकोसिस्टम। ठीक वैसा ही इकोसिस्टम जैसे एप्पल ने बना कर रखा है। Nvidia ने खुद को चिप या GPU मेकिंग से आगे निकाला। वह पूरा का पूरा प्रोडक्ट तैयार करने लगा। चिप और GPU के साथ ही साथ उसे चलाने वाले सॉफ्टवेयर्स भी और उसके पूरे इकोसिस्टम का पावरहाउस बना उनका सीक्रेट वेपन CUDA। कम्प्यूट यूनिफाइड डिवाइस आर्किटेक्चर।
साल 2010 में दुनिया में सबसे पहले AI पर दाव लगाने के बाद जेनसेन ने साल 2013 में मशीन लर्निंग पर दाव लगाया था। उसने ऐसा सॉफ्टवेयर बनाया जो उसके चिप और GPU को चला सके। ऐसा ऑपरेटिंग सिस्टम जिसके जरिए Nvidia के पॉवरफुल चिप्स और GPU's को एक्सेस किया जा सकता है। धीरे-धीरे वक्त के साथ यह Nvidia ने इस इकोसिस्टम को इतना डेवलप कर लिया कि आज दुनिया में किसी को भी कोई सा भी AI मॉडल बिल्ड करना होता है तो उनके पास सिर्फ एक ही ऑप्शन है- CUDA और उससे एक्सेस होने वाले चिप्स और ये CUDA या चिप्स कहां मिलेंगे- Nvidia के पास।
कुछ साल पहले तक Nvidia की एक वीकनेस थी। GPU पर ओवर डिपेंडेंट हो जाना। यानी कम्प्यूटर ग्राफिक्स से लेकर गेमिंग ग्राफिक्स तक। रोबोटिक्स से लेकर सेल्फ ड्राइविंग कार्स की टेक्नोलॉजी तक। Nvidia बिना GPU के कुछ नहीं कर पाता था। उसे GPU की जरूरत पड़ती थी लेकिन AI एक्सप्लोज़न ने Nvidia की डिपेंडेंसी को अपॉर्चुनिटी में बदल दिया। AI टूल अब बिना GPU के तैयार नहीं किए जा सके। माने AI का मेन इंग्रीडिएंट्स में से एक GPU ही है। गूगल, अमेजन, माइक्रोसॉफ्ट और टेस्ला जैसी कंपनियां अपने डेटा सेंटर्स और AI मॉडल्स को ट्रेन करने के लिए nvidia चिप्स का इस्तेमाल करती हैं। उदाहरण के लिए, OpenAI के ChatGPT को ट्रेन करने के लिए हजारों NVIDIA GPUs का ही इस्तेमाल किया गया है।
इसी ने Nvidia को वर्ल्ड प्लेयर बना दिया। AMD और INTEL जैसे दूसरे चिप मेकर्स काफी पीछे छूट गए। दुनिया में परफॉर्मेंस का दूसरा नाम बन गया Nvidia लेकिन अगर एक लाइन में इसका जवाब जानना है कि कैसे Nvidia ने ऐप्पल या माइक्रोसॉफ्ट को पछाड़ा तो उसका जवाब है प्रायोरिटी। ऐप्पल ने हमेशा से अपना फोकस आईफोन, आईपैड, मैक जैसे प्रोडक्ट्स को बनाने में रखा। अपने ऑपरेटिंग सिस्टम IOS जैसी चीजों पर। ठीक ऐसा ही माइक्रोसॉफ्ट ने हमेशा से क्लाउड कम्प्युटिंग, ऑपरेटिंग सिस्टम और सॉफ्टवेयर्स बनाने में अपने पैसे और दिमाग खर्च किए लेकिन Nvidia का मकसद हमेशा से चिप बनाना ही था। जेनसेन और उसके दोनों साथी क्रिस और कर्टिस जब नौकरी करते थे। तब भी वे चिप ही बनाते थे और जब कंपनी खड़ी की। तब भी वे चिप ही बना रहे थे। हालांकि, बाद में एक्सपीरियंस लेते हुए हार्डवेयर के साथ ही सॉफ्टवेयर भी बनाने लगे।
30 दिन की फंडिंग और जीत ली दुनिया
आपको जानकर हैरानी होगी कि Nvidia वही कंपनी है जो साल 1995-96 में सिर्फ 30 दिन की फंडिंग पर जिंदा थी। यह कंपनी लगभग दिवालिया होने वाली थी लेकिन RIVA 128 और GeForce जैसे इन्वेंशन ने इस कंपनी को ताकत दी। 20 साल में इसका मार्केट वैल्यू बढ़ते बढ़ते 2015 तक 18 बिलियन डॉलर हो गया था लेकिन यह ग्रोथ तो कुछ भी नहीं है। सिर्फ 10 साल बाद यानी आज 2025 में Nvidia का मार्केट वैल्यू 4.3 ट्रिलियन डॉलर से भी ज्यादा हो चुका है। 200 गुना से भी ज्यादा का जंप। इसमें भी इस कंपनी की ज्यादा ग्रोथ हुई AI बूम के बाद, यानी पिछले 4 साल में।
जनवरी 2025 में जब चीन ने अपना डीपसीक AI मॉडल लॉन्च किया तो इन्वेस्टर्स के बीच एक डर फैल गया कि Nvidia की सुप्रीमेसी खतरे में है क्योंकि इस मॉडल ने बेहद कम खर्च में बेहतरीन परफॉर्मेंस दी थी जबकि उस वक्त अमेरिकी सरकार ने Nvidia चिप के एक्सपोर्ट पर बैन लगा रखा था और सिर्फ इस न्यूज के चलते Nvidia के मार्केट वैल्यू और शेयर में 590 बिलियन की गिरावट आ गई थी। इतनी बड़ी गिरावट आजतक अमेरिका के इतिहास में किसी भी कंपनी के मार्केट वैल्यू में नहीं हुई थी। इन्वेटर्स हिल गए। दुनिया ने सोचा शायद यही Nvidia का एंड है लेकिन जब सच सामने आया कि चीन का डीपसीक एआई Nvidia के ही चिप पर बेस्ड था तो मार्केट ने दोबारा खुद को रिकवर किया। सिर्फ 5 महीने में ही Nvidia ने खुद को वापस खड़ा किया बल्कि एक नया माइलस्टोन भी सेट कर दिया। NVIDIA के ग्रोथ में अमेरिका सरकार की नीतियों का भी काफी योगदान रहा है।
NVIDIA ने अमेरिका से शुरू होकर धीरे-धीरे वैश्विक बाजारों में अपनी पहुंच बनानी शुरू की थी। कंपनी ने ताइवान, चीन, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों में प्रोडक्शन और सप्लाइ चेन तैयार किया। ताइवान की TSMC यानी ताइवान सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कंपनी। NVIDIA के चिप्स बनाने वाली सबसे मुख्य कंपनी है। यही वह कंपनी है जिसके बारे में जानकारों का कहना है कि चीन इसी को हथियाने के चक्कर में ताइवान पर कब्ज़ा करना चाहता है और अमेरिका ऐसा होने नहीं देना चाहता।
अमेरिकी सरकार की राष्ट्रीय सुरक्षा और तकनीक को बढ़ावा देने वाली नीतियों ने NVIDIA को खूब फायदा पहुंचाया। अमेरिका में AI और हाई-परफॉर्मेंस कंप्यूटिंग को नेशनल प्रॉयोरिटी बनाया गया। जिसके चलते NVIDIA के GPUs को डिफेंस, रिसर्च, डेटा सेंटर जैसी चीजों में इस्तेमाल किया जाने लगा।
NVIDIA के अगर मेन क्लाइंट की बात करें तो टेक जाइंट्स गूगल, अमेजन, माइक्रोसॉफ्ट, टेस्ला और मेटा हैं। इसके अलावा, ऑटोमोटिव कंपनियां जैसे BMW, Mercedes-Benz और Toyota जैसी कंपनियां भी अपनी सेल्फ ड्राइविंग कार्स में NVIDIA के Jetson प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करती हैं।
भारत भी NVIDIA के लिए एक उभरता हुआ बाजार है। साल 2024 में जेनसेन हुआंग ने NVIDIA AI समिट में रिलायंस इंडस्ट्रीज के साथ साझेदारी की घोषणा की थी। जिसके जरिए भारत में AI इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित किया जाएगा। भारत में AI, डेटा सेंटर और स्टार्टअप्स की बढ़ती मांग के चलते NVIDIA के लिए यह एक अहम बाजार बन कर उभरा है। अभी भारत में NVIDIA के करीब 3,000 कर्मचारी मौजूद हैं और कंपनी बेंगलुरु, पुणे और हैदराबाद से ऑपरेट करती है।
इतना ही नहीं NVIDIA की GeForce GPUs को गेमिंग इंडस्ट्री की रीढ़ माना जाता है। ये चिप्स हाई-रेजोल्यूशन ग्राफिक्स, रियल-टाइम रे ट्रेसिंग और स्मूथ गेमिंग अनुभव देती हैं। गेमिंग इंडस्ट्री में NVIDIA का दबदबा इतना है कि इसके बिना हाई-एंड गेमिंग लगभग असंभव है। Nvidia के कर्मचारियों की संपत्ति के बारे में यह कहा जाता है कि यह ऐसी कंपनी है जिसके पास सबसे ज्यादा 100 करोड़ 200 करोड़ की संपत्ति वाले कर्मचारी हैं। इसके पीछे का कारण उनके होल्ड किए हुए स्टॉक्स हैं। उन शेयर्स की वैल्यू बढ़ गई और कर्मचारी 100 करोड़- 200 करोड़ के मालिक बन गए। हालांकि, ये सभी सोशल मीडिया पर किए जाने वाले दावें हैं। इसी पुष्टि किसी कर्मचारी ने नहीं की है।
Nvidia और राजनीति
जैसा कि वीडियो की शुरुआत में हमने आपको बताया था- Nvidia अब सिर्फ एक अमेरिकन टेक जाइंट कंपनी न होकर अमेरिकी सरकार की डिप्लोमेसी का टूल भी बन गया है। साल 2022 में अमेरिका सरकार ने Nvidia के सबसे हाई एंड और एडवांस चिप- H100 और A100 के चीन में निर्यात पर बैन लगा दिया था। बैन के पीछे राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला दिया गया था। अमेरिकी सरकार ने आशंका जताई थी कि इस चिप्स के जरिए चीन अपनी मिलिट्री पॉवर को काफी हद तक बढ़ा सकता है।
ऐसे में Nvidia ने अमेरिका सरकार के दबाव से बचने का एक दूसरा रास्ता निकाला। Nvidia ने एक थोड़ा कम पॉवर का चिप तैयार किया, जिसे नाम दिया गया H20। जो कि H100 की तुलना में थोड़ा कम पॉवरफुल था लेकिन यह चीनी मार्केट के लिए बिल्कुल सुटेबल था और इन चिप्स को चीन में बेचना शुरू किया। ऐसा कई सालों तक चलता रहा लेकिन अब ट्रंप सरकार ने अप्रैल 2025 में H20 चिप्स के एक्सपोर्ट पर भी बैन लगा दिया। यानी इन चिप्स को भी अमेरिकी सरकार ने ट्रेड वॉर का हथियार बना लिया है।
अमेरिकी ट्रेड प्रतिबंधों के चलते फरवरी से अप्रैल 2025 की तिमाही में Nvidia को 4.5 बिलियन डॉलर का नुकसान उठाना पड़ा। हालांकि, इन प्रतिबंधों के चलते हो रहे नुकसान को देखते हुए जेनसन ने कुछ शर्तों के साथ अमेरिकी सरकार से ट्रेड को लेकर सहमति ले ली थी लेकिन जब नई डील लेकर Nvidia वापस चीन गई। तब चीन ने Nvidia से चिप्स खरीदने से मना कर दिया। शी जीनपिंग ने अब चीनी कंपनियों को ही Nvidia को टक्कर देने वाले चिप्स बनाने के आदेश दे दिए हैं।
इस ट्रेड वॉर का Nvidia को हाल के महीनों में बहुत बड़ा नुकसान उठाना पड़ा है। जो Nvidia 4.3 ट्रिलियन डॉलर के मार्केट कैप के साथ दुनिया की सबसे बड़ी टेक कंपनी बन गई थी। चीन के साथ टसल के बाद उसका मार्केट कैप घट कर 3.6 ट्रिलियन डॉलर तक गया था लेकिन अब अगस्त महीने में यह कंपनी दोबारा 4.43 ट्रिलियन मार्केट वैल्यू के साथ नंबर 1 पोजीशन पर है।
मोटा-मोटा हिसाब लगाएं तो अगर 1999 में जब Nvidia यूएस स्टॉक एक्सचेंज में लिस्ट हुई थी। तब आपने अगर 10 डॉलर इस पर लगाए होते तो आज उन 10 डॉलर के स्टॉक की वैल्यू करीब 3.2 लाख डॉलर की हो गई होती। आज गेमिंग और GPU की दुनिया में अगर Nvidia का असली और पुराना चैलेंजर है तो वह है AMD और Intel लेकिन Nvidia के मार्केट कैप के सामने वह कहीं टिकते ही नहीं। आज अमेरिका की इकॉनमी का फ्यूचर Nvidia के इनोवेशन पर काफी हद तक टिका हुआ है। पूरे ग्लोब में Nvidia के पास 36 हजार से ज्यादा कर्मचारी हैं। जो रोज नए AI सॉल्यूशन्स पर काम करते हैं।
Nvidia की कहानी सिर्फ एक टेक जाइंट कंपनी बनने की नहीं है। यह कहानी उस ताइवानी बच्चे जेनसेन हुआंग की भी है। जो नौ साल की उम्र में अमेरिका आया। टाइलेट साफ किया, वेटर का काम किया और अपनी मेहनत और सोच के दम पर Nvidia जैसी कंपनी खड़ी की। जो दुनिया की सबसे बड़ी टेक जाइंट कंपनी बन कर खड़ी हुई। आज NVIDIA का 4.43 ट्रिलियन डॉलर का मार्केट कैप और जेनसेन की 140 बिलियन डॉलर की नेटवर्थ उनकी सफलता का प्रमाण है।
भले ही अमेरिकी सरकार NVIDIA के जरिए वैश्विक तकनीकी दबदबा बनाए रखती है, खासकर AI और राष्ट्रीय सुरक्षा के क्षेत्र में लेकिन जेनसेन हुआंग ने न केवल तकनीकी क्रांति लाई बल्कि यह भी दिखाया कि कठिन परिस्थितियों से शुरू करके भी असाधारण सफलता हासिल की जा सकती है।
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