चंगेज खान के सबसे खूंखार सेनापति सुबुताई की पूरी कहानी क्या है?
मंगोल शासक चंगेज खान के सबसे वफादार सेनापतियों में जिसका नाम गिना जाता है, वह खुद मंगोल ही नहीं था। पढ़िए सुबुताई की पूरी कहानी।

चंगेज खान की कहानी, Photo Credit: Khabargaon
जब मंगोल लड़ाके चंगेज ख़ान के सामने अपनी वफ़ादारी साबित करने के लिए खड़े होते तो ख़ुद को चंगेज ख़ान का भेड़िया, शेर, भालू बताते थे लेकिन एक 14 साल का लड़का था, जो कहता था, ‘मैं तुम्हारे लिए एक चूहा बनूंगा, कौवा बनूंगा।' चूहा, कौवा क्यों? यह आगे समझ आएगा लेकिन अभी समझिए कि 14 साल का यह लड़का आगे चलकर इतिहास के सबसे महान सैन्य जनरलों में एक बना। 20वीं सदी में जब सोवियत रूस की मिलिट्री अकादमी में जो युद्ध रणनीतियां सिखाई जाती थीं, वे इसी जनरल ने ईजाद की थीं। बाकायदा वर्ल्ड वॉर 2 तक रूस की मिलिट्री अकादमियों में इन स्ट्रेटेजीज को पढ़ाया जाता रहा।
जिस दिमाग से ये सब निकला था, वह दिमाग था एक लोहार के बेटे का। एक लड़का जिसने अपने करियर की शुरुआत चंगेज़ खान के तंबू के दरवाज़े पर पहरा देने से की थी। बाद में वह चंगेज ख़ान का सबसे ताक़तवर जनरल बना और उसका एक कारनामा तो ऐसा था, जो उस दौर के हिसाब से नामुमकिन लगता है। साल 1221 में वह 20,000 घुड़सवारों के साथ निकला। उसकी मंज़िल थी यूरोप की सीमा लेकिन रास्ते में खड़े थे कॉकस के बर्फीले पहाड़- यह नाम है एक पर्वत शृंखला का जो काले सागर (Black Sea) और कैस्पियन सागर (Caspian Sea) के बीच आज के रूस, जॉर्जिया और अज़रबैजान में फैली है। उस दौर की किसी भी सेना के लिए सर्दियों में इसे पार करना मौत को दावत देने जैसा था लेकिन चंगेज ख़ान के जनरल ने वही किया। अपनी भारी मशीनें और बहुत सा सामान छोड़कर, वह बर्फ़ में पहाड़ों के पार उतर गए।
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दूसरी तरफ़ 50,000 कबीलाई लड़ाकों का एक दल उनका इंतज़ार कर रहा था। मंगोल जनरल ने पहले तो उन्हें हराया और फिर वह रूस के मैदानों में घुसा, जहां कालका नदी के किनारे उसके 20,000 सैनिकों ने 80,000 की विशाल रूसी सेना का ऐसा सफाया किया कि उनकी कहानी ही खत्म हो गई। यह सिर्फ़ एक लड़ाई नहीं थी। यह आज के अज़रबैजान से शुरू होकर यूक्रेन तक 8000 किलोमीटर लंबी एक मिलिट्री रेड थी—इतिहास की सबसे लंबी पैदल रेड और इसे लीड करने वाले आदमी का नाम था- सुबुताई। चंगेज़ खान का वह जनरल, जो ख़ुद मंगोल नहीं था लेकिन मंगोलों को धरती पर सबसे ख़ूंख़ार क़ौम और मंगोल साम्राज्य को सबसे बड़े लैंडलॉक्ड साम्राज्य बनाने के पीछे उसी का दिमाग था।
अलिफ लैला की इस कड़ी में पढ़िए कहानी चंगेज ख़ान के जनरल सुबुताई की। जानेंगे कैसे एक लोहार का बेटा, जो मंगोल कबीलों के तौर-तरीकों से अनजान था, इतिहास के सबसे बड़े मिलिट्री स्ट्रैटजिस्ट में से एक बना और क्या थी उसकी वह रणनीति, जिसने दुनिया की तमाम फ़ौजों को धूल चटा दी?
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चंगेज खान का करीबी कैसे बना सुबुताई?
कहानी शुरू होती है सुबुताई के बाप से, जिसका नाम था जारचीगुदाई। एक लोहार जो ऐसे कबीले से ताल्लुक़ रखता था, जिसे मंगोल 'जंगल के लोग' कहकर बुलाते थे। ये लोग बर्फीले जंगलों में रहते थे, रेनडियर पालते थे और लोहे के काम में माहिर थे। जारचीगुदाई की मंगोलों से कहानी कुछ ऐसी जुड़ती है कि उसने सालों पहले चंगेज़ खान के पिता से एक वादा किया था। जब चंगेज़ खान पैदा हुआ, जारचीगुदाई चंगेज के पिता के लिए तोहफे में एक जानवर की खाल का कंबल लेकर गया और वादा किया कि मेरा बड़ा बेटा तुम्हारी सेवा करेगा।
वादा निभ पाता, इससे पहले ही हालात बदल गए। दुश्मनों ने येसुगेई को जहर देकर मार डाला। उसका छोटा सा कबीला बिखर गया और उसके बेटे चंगेज, जिसका असली नाम तैमूरजिन था, उसे उसकी मां के साथ भूखे मरने के लिए छोड़ दिया गया।
चंगेज ख़ान मरा नहीं। उसने मुश्किलों से लड़कर अपने वफादार लोगों को दोबारा इकट्ठा करना शुरू कर दिया। जब जारचीगुदाई को यह पता चला, तो वह अपना सालों पुराना वादा निभाने के लिए अपने बेटों के साथ फिर चंगेज ख़ान के कैंप पहुंचा और अपना बड़ा बेटा उसकी सेवा में सौंप दिया।
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इस मुलाकात के दौरान एक और लड़का था, जो अपने पिता और भाई के पीछे चुपचाप खड़ा था, वह था सुबुताई। चार साल बाद, 14 की उम्र में सुबुताई भी अपने भाई के नक्शेकदम पर चलकर चंगेज ख़ान की फौज में शामिल हो गया। यहीं से उस लड़के की कहानी शुरू हुई, जिसके बारे में इंट्रो में आपने सुना कि वह खुद को चूहा और कौवा बताता था। यह उसका वफादारी दिखाने का तरीका था। वह कह रहा था कि मैं तुम्हारे लिए ज़मीन के नीचे से भी और आसमान से भी, हर जगह से सामान और सैनिक इकट्ठा करके लाऊंगा।
सुबुताई मंगोल नहीं था। उसे घोड़े की सवारी और तीरंदाज़ी का वह हुनर हासिल नहीं था जो मंगोल बच्चे मां के दूध के साथ सीखते थे। इसीलिए उसे सीधी लड़ाई में भेजने की बजाय एक अलग काम दिया गया। उसे चंगेज ख़ान के तंबू का की हिफ़ाज़त करने की ज़िम्मेदारी मिली। यह कोई छोटा काम नहीं था। इसका मतलब था कि सुबुताई हर वक़्त चंगेज़ खान के सबसे करीबी घेरे में रहता था। यहीं से उसने युद्ध के गुर सीखने शुरू किए और फिर 23 साल की उम्र में उसे मिला अपना पहला मौका। साल 1197- चंगेज़ खान ने एक दुश्मन कबीले पर हमला करने के लिए मीटिंग बुलाई। अपने साथियों से उसने पूछा, 'पहला हमला कौन करेगा?'
सुबुताई मौक़ा देखकर खड़ा हुआ, बोला, ‘मैं करूंगा’। चंगेज़ ने उसे 100 सैनिक देने की पेशकश की लेकिन सुबुताई ने मना कर दिया और कहा, ‘मैं अपने हिसाब से यह काम करना चाहता हूं।’ इसके बाद सुबुताई अकेले ही दुश्मन कबीले के कैंप में पहुंचा। वहां उसने नाटक किया कि चंगेज़ खान का साथ छोड़ दिया है। क़बीले वालों ने उसकी बातों पर भरोसा कर लिया। सुबुताई ने उनके साथ रहकर जानकारियां जुटाईं और चंगेज ख़ान के पास पहुंचा दी। सुबुताई की मदद से सेना ने हमला कर दिया। दुश्मन पूरी तरह हैरान और तैयार नहीं था। सुबुताई के एक अकेले मास्टरस्ट्रोक ने बिना बड़ी लड़ाई के ही चंगेज़ खान को जीत दिला दी। इस जीत ने साबित कर दिया कि सुबुताई का दिमाग़ तेज़ था। धीरे-धीरे वह चंगेज़ ख़ान का खास बन गया।
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साल 1204 में चंगेज़ खान ने मंगोलों को एकजुट करने के लिए अपनी आख़िरी और सबसे बड़ी लड़ाई लड़ी। उसका सामना था नाइमन कबीले (Naiman tribe) से। इस लड़ाई में सुबुताई को 1,000 सैनिकों के एक रेजिमेंट की कमान सौंपी गई। उसे तीन और कमांडरों के साथ एडवांस गार्ड में रखा गया। जब मंगोल सेना का हमला शुरू हुआ तो नाइमन कबीले के राजा ने अपने साथी से पूछा, 'ये कौन लोग हैं जो भेड़ों के झुंड पर भेड़ियों की तरह टूट पड़ रहे हैं?' इस मौके पर राजा के साथी ने जो जवाब दिया, वह इतिहास में दर्ज है - ये तैमूरजिन (चंगेज ख़ान) के 'चार कुत्ते' हैं। ये इंसानी मांस पर जीते हैं और लोहे की ज़ंजीरों से बंधे होते हैं। जिन चार वॉर डॉग्स की बात हो रही थी, उनके नाम थे- जेबे (Jebe), खुबिलाई (Kublai), जेल्मे (Jelme), और सुबुताई।
इस तरह जंगल से आया एक लोहार का बेटा चंगेज़ खान के सबसे खूंखार और काबिल कमांडरों में गिना जाने लगा। सुबुताई और बाकी तीन कमांडरों ने मिलकर नाइमन सेना के बीच ऐसी तबाही मचाई कि दुश्मन के पैर उखड़ गए। उन्होंने नाइमन सेना को पहाड़ों की तरफ़ भागने पर मजबूर कर दिया, जहां वे फंस गए और मारे गए। इस जीत के साथ ही, चंगेज़ खान पूरे मंगोलिया का एकमात्र शासक बन गया।
8000 किलोमीटर की रेड
मंगोलों को एक करने के बाद, चंगेज़ खान और सुबुताई ने चीन पर हमला किया। फिर मध्य एशिया की सबसे अमीर सल्तनत, ख्वारज़्म को घुटनों पर ला दिया। चंगेज ख़ान इतने से संतुष्ट नहीं था। पश्चिम में उसकी नज़र यूरोप में थी। हालांकि, यूरोप के बारे में मंगोलों को सिर्फ़ किस्से-कहानियों में पता था। चंगेज़ खान ने अपने सबसे भरोसेमंद जनरल, सुबुताई को यूरोप की टोह लेने के लिए भेजा।
यह साल 1220 की बात है। सुबुताई और चंगेज़ का एक और जनरल, जेबे 20,000 सैनिकों की एक छोटी सी टुकड़ी लेकर निकले। मिशन था एक सैनिक गश्त लगाना। पता करना कि कैस्पियन सागर के पार कौन सी सल्तनतें हैं, उनकी सेना कितनी ताकतवर है और क्या उन पर हमला किया जा सकता है। यह इतिहास की सबसे लंबी सैनिक रेड बनने वाली थी।
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सुबुताई का पहला सामना हुआ जॉर्जिया की सल्तनत से, जो अपनी ताकतवर नाइट वाली सेना के लिए मशहूर थी। जॉर्जिया के राजा ने 70,000 की भारी-भरकम सेना के साथ मंगोलों को रोकने की कोशिश की। उनसे लड़ते हुए सुबुताई ने एक चाल चली। उसने अपनी सेना को हारने का नाटक करते हुए पीछे हटने का आदेश दिया। जॉर्जिया की सेना पीछा करती गई और मंगोलों के बिछाए जाल में फंस गई। कुछ ही घंटों में जॉर्जिया की सेना का सफाया हो गया।
इसके बाद आया असली इम्तिहान—कॉकस के पहाड़। सुबुताई को सर्दियों में यह बर्फीली दीवार पार करनी थी। यह लगभग एक नामुमकिन काम था। रास्ते में सैकड़ों मंगोल सैनिक और हज़ारों घोड़े ठंड से जम कर मर गए। सेना को अपना बहुत सा सामान और सीज की मशीनें बर्फ़ में ही छोड़नी पड़ीं। जब थकी-हारी सेना पहाड़ों के पार उत्तरी मैदानों में उतरी तो एक और मंजर उनका इंतज़ार कर रहा था। 50,000 कबीलाई लड़ाकों की एक विशाल सेना उनका रास्ता रोके खड़ी थी। मंगोल फंस चुके थे। पीछे बर्फीले पहाड़ थे और आगे एक विशाल दुश्मन।
यहां सुबुताई ने तलवार से नहीं, दिमाग से काम लिया। उसने दुश्मन गठबंधन के सबसे बड़े कबीले, क्यूमन को एक गुप्त संदेश भेजा। उसने कहा, 'हम और तुम दोनों मैदानों के रहने वाले भाई हैं। ये बाकी लोग तो पहाड़ी और ईसाई हैं। तुम इनका साथ क्यों दे रहे हो?' उसने उन्हें सोने और घोड़ों का लालच भी दिया। क्यूमन कबीला इस झांसे में आ गया और रात के अंधेरे में मैदान छोड़कर चला गया। अगली सुबह, दुश्मन की आधी ताकत खत्म हो चुकी थी। सुबुताई ने बाकी बची सेना पर हमला करके उसे खत्म कर दिया। फिर उसने क्यूमन कबीले का भी पीछा किया और उन्हें भी मार डाला क्योंकि उसकी अपनी डॉक्टरिन के अनुसार धोखेबाज़ों पर कोई भरोसा नहीं किया जा सकता था।
सुबुताई के सामने अब रूस के मैदान खुले थे। सुबुताई जब रूस में दाखिल हुआ तो वहां उसका सामना 80,000 की एक बड़ी सेना से हुआ। सुबुताई के पास सिर्फ़ 20,000 सैनिक थे। एक बार फिर, उसने लड़ने की बजाय भागने का नाटक किया। मंगोल सेना नौ दिनों तक ईस्ट की ओर भागती रही। पीछे-पीछे रूसी सेना आई। आखिरकार, कालका नाम की एक नदी के किनारे सुबुताई रुका। इस जगह को उसने सोच-समझकर चुना था। जैसे ही थकी-हारी रूसी सेना वहां पहुंची, मंगोलों ने पलटकर उन पर हमला कर दिया। रूसी सेना इतनी बिखर चुकी थी कि वह ठीक से मुकाबला नहीं कर पाई। उस दिन रूस के छह राजकुमार और 70 बड़े सामंत मारे गए। उनकी 80,000 की सेना में से ज़्यादातर सैनिक या तो मारे गए या कैदी बना लिए गए।
पकड़े जाने वालों में कई रूसी राजकुमार भी थे। मंगोल परंपरा के अनुसार, शाही खून ज़मीन पर बहाना मना था। इसलिए सुबुताई ने एक क्रूर तरीका निकाला। उसने पकड़े गए सभी रूसी राजकुमारों को एक बड़े लकड़ी के तख्ते के नीचे लिटा दिया और फिर उसी तख्ते के ऊपर, मंगोलों ने अपनी जीत की शानदार दावत उड़ाई। पूरी रात चले इस जश्न के वज़न से ही, तख्ते के नीचे दबे राजकुमारों की दर्दनाक मौत हो गई। कुल मिलाकर सुबुताई की रेड तीन साल तक चली। सुबुताई की सेना ने आज के अज़रबैजान से लेकर यूक्रेन तक लगभग 8000 किलोमीटर का सफ़र तय किया था। जब वह वापस मंगोलिया लौटा, तो उसके पास सिर्फ़ जीत के किस्से नहीं थे। उसके पास यूरोप का नक्शा था, वहां के राजाओं की कमजोरियों की लिस्ट थी और एक पूरा प्लान था कि इस महाद्वीप को कैसे जीता जा सकता है।
यूरोप की चढ़ाई
सुबुताई की ग्रेट रेड 1223 में खत्म हुई। इसके चार साल बाद 1227 में चंगेज़ खान की मौत हो गई और यूरोप को जीतने का प्लान कुछ सालों के लिए ठंडे बस्ते में चला गया। 1234 में चंगेज़ खान के बेटे और नए खान, ओगेदेई (Ogedai) ने इस रुके हुए मिशन को फिर से हरी झंडी दिखाई। ओगेदेई ने एक विशाल सभा बुलाई। फैसला हुआ कि मंगोल सेना एक साथ चार दिशाओं में हमला करेगी। सबसे बड़ा और सबसे मुश्किल मिशन था यूरोप और इसके लिए सिर्फ एक ही कमांडर था जिस पर भरोसा किया जा सकता था—सुबुताई।
मंगोलों ने 1,50,000 सैनिकों की एक विशाल फौज तैयार की। नाम के लिए इसका कमांडर चंगेज़ खान का पोता बाटु था लेकिन असली दिमाग सुबुताई का था। उसने कहा कि मुख्य हमला हंगरी पर होगा क्योंकि वहां के मैदान मंगोल घोड़ों के लिए सबसे सही थे। हालांकि, हंगरी पर बाद में हमला हुआ क्योंकि सुबूताई को पता था कि अगर वह सीधे हंगरी पर हमला करेगा, तो पोलैंड और जर्मनी के राजा उस पर बगल से हमला कर देंगे। इसलिए, उसने अपनी सेना को दो हिस्सों में बांटा। 30,000 सैनिकों की एक छोटी टुकड़ी को पोलैंड और जर्मनी पर हमला करने भेजा गया। मकसद जीतना नहीं, बल्कि यूरोप का ध्यान भटकाना था। जब यूरोप के सारे योद्धा इस सेना से लड़ने में उलझे हुए थे, तब सुबुताई अपनी 1,20,000 की मुख्य सेना के साथ सर्दियों में चुपचाप कार्पेथियन पहाड़ों को पार करके हंगरी में दाखिल हो गया।
उधर जो सेना ध्यान भटकाने गई थी, उसने भी कमाल कर दिखाया। मंगोलों ने पोलैंड और जर्मनी की विशाल सेना को कुचल दिया। मंगोलों ने मारे गए हर दुश्मन सैनिक का एक कान काटकर नौ बोरियों में भरा, सिर्फ गिनती रखने के लिए। इसके बाद असली हमला हंगरी में हुआ। वहां के राजा बेला फोर्थ (Bela IV) ने लगभग एक लाख सैनिकों की फौज इकट्ठा की और एक नदी के किनारे कैंप लगा दिया। सुबुताई ने एक बार फिर अपनी सबसे खतरनाक चाल चली। उसने रात के अंधेरे में 30,000 सैनिकों को नदी के पार एक लंबे, मुश्किल रास्ते से भेजकर दुश्मन की सेना के पीछे पहुंचा दिया। सुबह होते ही, बाटु खान की सेना ने नदी के पुल पर सामने से हमला किया। हंगरी की पूरी सेना उस पुल को बचाने में लग गई और ठीक उसी वक़्त, सुबुताई ने पीछे से उन पर हमला कर दिया।
हंगरी की सेना दो तरफ़ से फंस गई। घबराहट में उन्होंने देखा कि पश्चिम की तरफ से मंगोलों की घेराबंदी में एक खाली जगह है, जहां से भागा जा सकता है। हज़ारों सैनिक अपनी जान बचाने के लिए उसी रास्ते की तरफ़ भागे लेकिन यह भी सुबुताई का एक जाल था। उसने जानबूझकर वह रास्ता खाली छोड़ा था। जैसे ही हंगरी की सेना भागते हुए पूरी तरह बिखर गई, पहले से घात लगाए बैठे मंगोल घुड़सवारों ने उन पर हमला कर दिया। अगले दो दिनों तक मंगोलों ने भागते हुए सैनिकों का पीछा किया और उन्हें गाजर-मूली की तरह काट दिया। उस लड़ाई में हंगरी के 70,000 सैनिक मारे गए।
अब मंगोलों और पश्चिमी यूरोप के बीच कोई बड़ी सेना नहीं बची थी। सुबुताई की फौज ने हंगरी को रौंद दिया और उसकी टुकड़ियां वियना के दरवाज़े तक पहुंच गईं। ऐसा लग रहा था कि पूरा यूरोप अब मंगोल साम्राज्य का हिस्सा बन जाएगा लेकिन तभी मंगोलिया से एक संदेशवाहक आया। खबर थी कि ग्रेट खान ओगेदेई की मौत हो गई है। मंगोल कानून के मुताबिक, खान की मौत पर सभी शहज़ादों को नया खान चुनने के लिए वापस राजधानी लौटना पड़ता था। सुबुताई को अपनी सेना को वापस मुड़ने का आदेश देना पड़ा। मंगोल सेना यूरोप के दरवाज़े से लौट गई और फिर कभी वापस नहीं आई। यूरोप सिर्फ़ किस्मत से बच गया था।
लौटने के बाद, सुबुताई अपने जीवन के अंतिम पड़ाव में था। वह 68 साल का हो चुका था। जिस साम्राज्य को बनाने में उसने अपनी पूरी ज़िंदगी लगा दी थी, अब वह उसे अपनी आंखों के सामने दरकते हुए देख रहा था। चंगेज़ खान के पोते आपस में सत्ता के लिए लड़ रहे थे और सुबुताई इस राजनीतिक खींचतान से थक चुका था। ऐसे में उसने उसने वह किया जो किसी ने सोचा नहीं था। सुबुताई ने सब कुछ छोड़ दिया। वह राजधानी के शोर-शराबे से दूर, मैदानों में अपने कैंप में लौट गया। वहां उसने अपने आखिरी दिन अपने जानवरों की देखभाल करते हुए और अपने पोते को एक योद्धा की तरह अभ्यास करते हुए देखकर बिताए। 73 साल की उम्र में इतिहास के उस महान जनरल की मौत किसी लड़ाई के मैदान में नहीं बल्कि शांति से अपने कैंप में हुई।
उसकी विरासत? 32 देश और 65 जीती हुई बड़ी लड़ाइयां लेकिन सुबुताई की कहानी सिर्फ़ इन नंबरों के बारे में नहीं है। यह कहानी है, एक 'आउटसाइडर' की। वह मंगोल नहीं था लेकिन उसने मंगोल साम्राज्य को दुनिया के कोने-कोने तक पहुंचाया। वह एक लोहार का बेटा था लेकिन उसने ऐसी सैन्य रणनीतियां बनाईं जो 700 साल बाद सोवियत संघ की मिलिट्री अकादमी में पढ़ाई जाती थीं। 19वीं सदी के एक रूसी जनरल हुआ करते थे मिखाइल इवानिन। उन्होंने जब मध्य एशिया में मंगोलों के वंशजों से लड़ाई लड़ी तो वह इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने सुबुताई की स्ट्रेटेजीज पर एक किताब लिखी, जो बाद में रूस की सबसे बड़ी मिलिट्री अकादमी में टेक्स्टबुक की तरह इंक्लूड की गई। इस तरह सुबूताई आज भी इतिहास के सबसे महान जनरलों में से एक गिना जाता है। एक लोहार का बेटा जो चंगेज ख़ान की सबसे धारदार तलवार बना।
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