इतिहास का वह खौफनाक युद्ध जिसमें 95 पर्सेंट मर्द खत्म हो गए
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• NOIDA 08 Sept 2025, (अपडेटेड 08 Sept 2025, 3:39 PM IST)
दुनिया में मर्दों का इतिहास बेहद रोचक रहा है। एक समय ऐसा था जब एक युद्ध में 95 पर्सेंट मर्द मारे गए थे। पढ़िए उसकी पूरी कहानी।

मर्दों का इतिहास, Photo Credit: Khabargaon
इतिहास कौन लिखता है? राजा-महाराजा, विजेता, इतिहासकार या फिर पुरातत्वविद, जो पुरानी चीजें खोद निकालते हैं लेकिन एक इतिहास ऐसा भी है, जिसे किसी ने लिखा नहीं। जो पत्थरों पर नहीं, हमारी रगों में बहने वाले खून में दर्ज है। आज से हजारों साल पहले। जब इंसान ने पहली बार खेती करना सीखा था। एक ऐसी जंग शुरू हुई, जो शायद इंसानियत की पहली ‘वर्ल्ड वॉर’ थी। इस जंग में शहर नहीं जले, देश नहीं मिटे। इस जंग में मर्द मिट गए। इतने बड़े पैमाने पर कि 95% मर्दों की वंश रेखाएं ही ख़त्म हो गईं।
क्यों हुआ ऐसा? यह कोई बीमारी थी या कोई आसमानी कहर? या फिर कोई और वजह थी? सबसे बड़ा सवाल: इस गुमनाम कत्लेआम का सबूत वैज्ञानिकों को हमारे DNA के अंदर कैसे मिला? अलिफ लैला की इस किस्त में हम DNA में छिपे सबूतों के आधार पर जानेंगे, उस प्रागैतिहासिक महायुद्ध के बारे में जिसने मर्दों की वंश रेखा को लगभग खत्म कर दिया था।
DNA में लिखा खूनी इतिहास
21वीं सदी। जेनेटिक्स की क्रांति का दौर। दुनिया भर की लैब्स में वैज्ञानिक इंसानी DNA के राज़ खोल रहे थे। मकसद था बीमारियों को समझना। उनका इलाज खोजना लेकिन DNA की जांच के दौरान उन्हें कुछ ऐसा मिला, जिसका इलाज से कोई लेना-देना नहीं था। वह हमारे इतिहास का एक खोया हुआ पन्ना था। मॉडर्न इंसान के DNA के दो हिस्से एक खास कहानी बताते हैं। एक, माइटोकॉन्ड्रियाल DNA। यह मां से उसकी संतानों को मिलता है। यह हमें हमारी मां, नानी, परनानी, यानी औरतों की वंशावली का इतिहास बताता है। दूसरा- Y-क्रोमोसोम। यह पिता से सिर्फ बेटों को मिलता है। यह हमें हमारे पिता, दादा, परदादा, यानी मर्दों की वंशावली का इतिहास बताता है।
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जब औरतों की वंशावली, यानी माइटोकॉन्ड्रियाल DNA की जांच हुई तो सब कुछ सामान्य था। हजारों सालों का इतिहास। लाखों-करोड़ों औरतें। उनकी करोड़ों शाखाएं लेकिन जब मर्दों की वंशावली, यानी Y-क्रोमोसोम को देखा गया तो वैज्ञानिक चौंक गए। ग्राफ पर एक सीधी रेखा अचानक नीचे गिर गई थी। जैसे किसी ने मर्दों की लाखों जेनेटिक लाइन्स को एक झटके में काट दिया हो।
इसे जेनेटिक्स की भाषा में बॉटलनेक कहते हैं। इंसानी इतिहास में कुछ ऐसा हुआ था, जिसने ज़्यादातर मर्दों के खानदानी पेड़ को बढ़ने से ही रोक दिया। उनकी वंश-रेखाएं आगे नहीं बढ़ीं। वे इतिहास में ही कहीं खो गईं। जेनेटिसिस्ट डेविड राइक (David Reich) अपनी किताब Who We Are and How We Got Here में बताते हैं कि Bronze Age में यानी 3300 BC से 1200 BC के बीच सिर्फ़ कुछ ताकतवर पुरुष वंशों का ही विस्तार हुआ जबकि बाकी के पुरुष वंश खत्म हो गए।
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जाहिर है यह किसी कुदरती आफत का नतीजा नहीं हो सकता था। कोई बाढ़, कोई भूकंप, कोई बीमारी मर्दों और औरतों में फर्क नहीं करती यानी कारण कुछ और था। ऐसा हुआ क्यों? इसका जवाब दो थ्योरीज़ में छिपा है। चलिए, एक-एक करके दोनों को समझते हैं।
हजारों साल पुरानी लड़ाई
चलिए पहली थ्योरी को समझते हैं। यह थ्योरी कहती है कि मर्दों की वंश-रेखाओं में गिरावट की वजह थी- जंग। इस थ्योरी का सबसे बड़ा सबूत ज़मीन के नीचे दफ्न है। पुरातत्व विशेषज्ञों की की खोज। पुरातत्वविद लॉरेंस कीली (Lawrence Keeley) अपनी किताब War Before Civilisation में बताते हैं कि प्रागैतिहासिक काल में युद्ध बेहद आम थे। जब उस दौर की जगहों को खोदा गया, तो हिंसा के सबूतों का ढेर लग गया। किलेबंद गांव, सामूहिक कब्रें, हड्डियों में धंसे पत्थर के हथियार। जर्मनी की तालहाइम कब्र इसका सबसे बड़ा सबूत है। 7,000 साल पुरानी कब्र। 34 लाशें, मर्द, औरतें, बच्चे। सबको कुल्हाड़ियों से मारा गया था। वह भी भागते हुए। खास बात- इस कब्र से जवान औरतें गायब थीं। जिन्हें हमलावर अपने साथ ले गए थे।
तालहाइम की कहानी उस दौर का सच थी। प्रागैतिहासिक युद्ध का एक ही सिद्धांत था- दुश्मन को खत्म करो और खुद को कम से कम जोखिम में डालो इसलिए आमने-सामने की लड़ाइयां कम होती थीं। छापा मारना, घात लगाकर हमला करना- लड़ाइयां ऐसे ही होती थीं। इस जंग के अपने बेरहम कानून थे।
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पहला कानून: कोई बंदी नहीं। दुश्मन के मर्दों को ज़िंदा पकड़ने का कोई रिवाज नहीं था। पकड़े जाने पर मौत निश्चित थी। इसके सबूत मिले हैं मिस्र में जेबेल सहाबा नाम की जगह पर। जहां 12,000 साल पुराना एक कब्रिस्तान मिला। वहां दफन 59 लोगों में से 40 प्रतिशत से ज़्यादा कंकालों में पत्थर के हथियारों के टुकड़े धंसे हुए थे। कई लोगों को 15-20 बार तीर मारे गए थे और बच्चों को गर्दन या सिर में मारकर खत्म किया गया था। कई कंकालों में पुराने, ठीक हो चुके घाव भी थे, जो बताते हैं कि हिंसा उनकी ज़िंदगी का हिस्सा थी।
दूसरा कानून: औरतें और बच्चे लूट का माल थे। जवान औरतों को अगवा करना युद्ध का एक बड़ा मकसद था। वे हमलावर कबीले के लिए एक कीमती रिसोर्स थीं।
तीसरा कानून: लाशों का अपमान। दुश्मन को मारने के बाद उसकी लाश को काटना-पीटना आम बात थी। साल 1908 में जर्मनी की ऑफनेट गुफा (Ofnet Cave) में 7,500 साल पुरानी 34 खोपड़ियों का ढेर मिला। ये खोपड़ियां टोकरी में रखे अंडों की तरह सजाई गई थीं। जिससे पता चला कि इन खोपड़ियों को ट्रॉफी की तरह इस्तेमाल किया गया था।
क्रूरता की हद यहीं खत्म नहीं होती। कई जगहों पर Cannibalism के भी सबूत मिले हैं। फ्रांस की फॉन्टब्रेग्वा गुफा (Fontbregoua Cave) में मिली इंसानी हड्डियों को ठीक उसी तरह तोड़ा और काटा गया था- जैसे जानवरों की हड्डियों को मांस और गूदा (marrow) निकालने के लिए तोड़ा जाता है। Lawrence Keeley फिजी के एक सरदार का किस्सा बताते हैं जिसने अपने खाए हुए 872 इंसानों का हिसाब रखने के लिए पत्थरों की एक लाइन बना रखी थी।
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यह बेरहमी, यह लगातार चलने वाला कत्लेआम, ये सब DNA में मिली गिरावट की तस्वीर से बिल्कुल मेल खाता है। जिसकी बात हमने शुरू में की थी। शायद इसी कत्लेआम के चलते मर्दों की वंशावली में अचानक गिरावट आई लेकिन जैसा हमने शुरुआत में बताया, यह इकलौती थ्योरी नहीं है। एक और थ्योरी है लेकिन दूसरी थ्योरी पर जाने से पहले पहली थ्योरी से जुड़े एक और दिलचस्प सवाल पर चलते हैं। अगर हिंसा के चलते अचानक मर्दों की वंशावलियों में भारी गिरावट हुई तो यह हिंसा शुरू कैसे हुई और क्यों?
एक क्रांति जो सब कुछ बदल देगी
लाखों जेनेटिक लाइंस एक खास पीरियड में ग़ायब हुई। अचानक शुरू, अचानक ख़त्म। सवाल यह कि इस खास पीरियड में ऐसा हुआ क्या? जवाब छिपा है एक क्रांति में। एक ऐसी क्रांति जिसे हम सभ्यता की पहली सीढ़ी मानते हैं। आज से लगभग दस हज़ार साल पहले। इंसान ने एक बहुत बड़ी छलांग लगाई। वह शिकारी था, बंजारा था। अब वह किसान बन गया। एक जगह टिककर रहना सीख लिया। बस्तियां बसाईं। अनाज उगाया। जानवर पाले। आबादी बढ़ने लगी। सबकुछ अच्छा लग रहा है, न? शांति और तरक्की का दौर लेकिन कहानी का सबसे बड़ा ट्विस्ट यहीं से शुरू होता है।
आप एक शिकारी के कबीले से क्या लूट सकते हैं? कुछ नहीं। वे हमेशा सफर में रहते हैं लेकिन एक किसान का गांव? वह एक खज़ाना था, अनाज के भंडार, पालतू जानवर, औरतें, सब एक ही जगह पर, एक ही पते पर। खेती ने पहली बार लूट को एक परमानेंट ठिकाना दे दिया। इसी के साथ समाज का ढांचा भी बदल गया। भरोसा अब खून के रिश्तों पर था। लिहाजा समाज पितृवंशीय कबीलों में बंट गया। यानी ऐसे खानदान जहां सत्ता, ज़मीन और पहचान, पिता से बेटे को मिलती थी।
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इसी सामाजिक ढांचे से Y क्रोमोसोम घटने की पहली थ्योरी जुड़ती है और अच्छे से समझने के लिए, DNA पर वापस चलते हैं। Y-क्रोमोसोम पर। Y क्रोमोजोम, जैसा पहले बताया, इसी से मर्दों की वंश-रेखा तय होती है। इसे एक जंगल समझिए। मर्दों का जंगल। हर बेटा, हर पोता एक नया पेड़। हज़ारों साल में करोड़ों पेड़ों का घना जंगल। अब पहली थ्योरी को इस जंगल में लाइए।
एक कबीला दूसरे पर हमला करता है और सारे मर्दों को मार देता है। इसका मतलब क्या हुआ? इसका मतलब हुआ कि आपने जंगल में कुछ पेड़ नहीं काटे। आपने पेड़ों का एक पूरा हिस्सा ही साफ़ कर दिया। जड़ से उखाड़ दिया। जब यह हज़ारों बार हुआ तो वह घना जंगल कटकर वीरान हो गया। यही है वह Y-क्रोमोसोम की भयानक गिरावट। पहली नज़र में यह थ्योरी एकदम सटीक लगती है। सारे सबूतों को जोड़ देती है लेकिन कुछ वैज्ञानिक इससे इत्तेफाक नहीं रखते।'
क्या हो अगर जंगल को काटने की ज़रूरत ही न पड़ी हो?
यहीं आती है दूसरी थ्योरी- सोशल थ्योरी। जो कहती है कि कबीले तो बने लेकिन गिरावट का कारण लड़ाई नहीं, बल्कि सामाजिक सफलता थी। सोचिए, उसी जंगल में कुछ पेड़ बहुत बड़े और ताकतवर हैं। उन्हें ज़्यादा धूप मिल रही है, ज़्यादा पानी। यानी ज़्यादा संसाधन, ज़्यादा सत्ता और बाकी लाखों पेड़? वे छोटे हैं, कमज़ोर हैं। उन्हें कुछ नहीं मिल रहा। नतीजा? कोई उन्हें काट नहीं रहा। वे धूप और पानी की कमी से पीढ़ी दर पीढ़ी, खुद ही सूखकर खत्म हो रहे हैं। यह थी सामाजिक लड़ाई। बिना खून बहाए लेकिन नतीजा वही। जंगल का सफाया। जेनेटिक डाइवर्सिटी का खात्मा।
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तो हमारे सामने दो तस्वीरें हैं। दोनों में से सच कोई भी हो सकता है या हो सकता है दोनों थ्योरी सही हों। सच जो भी था। नतीजा एक था। मर्दों की दुनिया हमेशा के लिए बदल गई।
अब अगला सवाल यह कि अगर 95% मर्दों की वंश-रेखाएं खत्म हो गईं तो आज मर्दों और औरतों की आबादी लगभग बराबर कैसे है? इसका जवाब उस 95% के असली मतलब में छिपा है। यह गिनती का हिसाब नहीं, जेनेटिक्स का हिसाब है। इसका मतलब यह नहीं कि हर 20 में से 19 मर्द मार दिए गए। इसका मतलब है कि सिर्फ 5% मर्दों के वंश ही आगे बढ़ पाए। बाकियों की खानदानी शाखा हमेशा के लिए खत्म हो गई। आबादी को फिर से बढ़ाने के लिए बहुत सारे मर्दों की ज़रूरत नहीं थी। कुछ ही मर्द काफी थे। जन्म का सीधा नियम। हर पीढ़ी में लगभग 50% लड़के और 50% लड़कियां पैदा होती हैं तो चाहे मर्द कितने भी कम बचे हों, अगली ही पीढ़ी में लड़कों की संख्या बढ़ी और दो-चार पीढ़ियों में ही, मर्दों और औरतों का अनुपात फिर से बराबर हो गया। ये सब हुआ कैसे? प्रीहिस्टोरिक जंगें रुकी कैसे और क्यों?
हमारे खून में बचे निशान
कबीलों के बीच चल रही जंग कैसे थमी? जवाब सीधा है। जंग कभी थमी नहीं। बस उसका रूप बदल गया। छोटे-छोटे कबीले खत्म हुए। बड़े-बड़े राज्य बने, साम्राज्य बने। हज़ारों की जगह, लाखों लोग एक झंडे के नीचे आ गए। साइकोलॉजिस्ट स्टीवन पिंकर अपनी किताब The Better Angels of Our Nature में बताते हैं कि यह इंसानियत के इतिहास में हिंसा को कम करने वाला एक बहुत बड़ा कदम था।
अब आप कहेंगे, यह कैसी बात हुई? राज्यों ने तो और भी भयानक युद्ध लड़े। लाखों लोग मारे। बात सही है लेकिन राज्यों ने एक काम और किया। उन्होंने हिंसा को आम आदमी के हाथ से छीन लिया। हिंसा को मोनोपोलाइ कर लिया। अब बदला लेना आपका काम नहीं। क़ानून का काम है, हत्या अब जुर्म है।
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नतीजा? बड़े युद्ध हुए लेकिन रोज़-रोज़ की कबीलाई 'गुरिल्ला वॉर' खत्म हो गई। एक आम नागरिक के लिए ज़िंदगी ज़्यादा सुरक्षित हो गई। कबीलों के बीच युद्ध का एक बड़ा रूप आज रूस यूक्रेन, इजरायल-फ़िलिस्तीन युद्धों के रूप में दिखता है। आज देश लड़ते हैं लेकिन हर समय और हर जगह लड़ाई नहीं होती, हिंसा हमारी दुनिया के सिस्टम का हिस्सा है।
हालांकि, इतिहास में हुई हिंसा के निशान आज भी हमारे साथ हैं Y-क्रोमोसोम का वह जंगल। याद है न? वह फिर कभी पहले जैसा घना नहीं हो पाया। उस जेनेटिक बॉटलनेक ने एक पक्का निशान छोड़ दिया। जो आज भी हमारे DNA में है। डेविड राइक (David Reich) अपनी किताब Who We Are and How We Got Here में बताते हैं कि इस घटना के बाद जो पुरुष वंश उस दौर में जीते, वे आज तक राज कर रहे हैं। एक मिसाल देखिए। कांस्य युग में पूर्वी यूरोप से याम्नाया (Yamnaya) संस्कृति के लोग फैले और उन्होंने क्या किया? जेनेटिक्स दिखाता है कि उन्होंने यूरोप के पुराने किसानों की पुरुष-वंशावली को लगभग मिटा दिया।
आज आप उत्तरी यूरोप के किसी भी मर्द का DNA उठा लीजिए। ज़्यादातर का Y-क्रोमोसोम उन्हीं याम्नाया लड़ाकों से आता है। अब एक आख़िरी सवाल इस पूरी कहानी का, इस गुमनाम जंग का, हमारे लिए आज क्या मतलब है? DNA से हुई यह खोज सिर्फ़ एक तथ्य नहीं। एक चेतावनी भी है। DNA सिर्फ यह नहीं बताता कि हमारी आंखों का रंग क्या होगा या हमारे बाल कैसे होंगे। यह हमें हमारी असलियत भी बताता है। यह हमें याद दिलाता है कि सभ्यता और शांति कोई प्राकृतिक चीज़ नहीं है। इसे बहुत मुश्किल से बनाया गया है और यह कितनी आसानी से टूट सकती है।
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