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बीड विवाद: पुलिसकर्मियों को निर्देश- 'नेम प्लेट पर जाति मत लिखिए'

महाराष्ट्र के बीड में पुलिसकर्मियों को कहा गया है कि वे अपनी नेमप्लेट पर सरनेम का इस्तेमाल न करें ताकि कहीं जातिगत टकराव की स्थिति न बने।

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बीड एसपी का दफ्तर, Photo Credit: Beed Police

महाराष्ट्र का बीड लंबे समय से चर्चा में है। पिछले साल सरपंच संतोष देशमुख की हत्या का मामला राजनीति का केंद्र भी बना हुआ है। इस बीच बीड में काम करने वाले पुलिसकर्मियों को निर्देश दिए गए हैं कि वे अपनी यूनिफॉर्म और डेस्क पर लगने वाली नेम प्लेट पर पूरा नाम न लिखें ताकि उनकी जाति किसी को पता न चले और किसी भी सूरत में जातिगत विवाद न बढ़े। ये निर्देश बीड के पुलिस अधीक्षक नवनीत कांवत ने जारी किए हैं। इसी साल जनवरी के महीने में बीड के एसपी बने नवनीत कांवत ने पुलिसकर्मियों को कहा है कि वे अपनी वर्दी पर जो नेमप्लेट लगाएं उसमें सिर्फ अपना फर्स्ट नेम ही लिखें। 

 

रिपोर्ट के मुताबिक, पुलिसकर्मियों और अधिकारियों को नई नेमप्लेट दे भी दी गई हैं जिनमें उनका फर्स्ट नेम ही लिखा गया है। मराठा समुदाय के लोगों ने इस फैसले का स्वागत किया है। उनका कहना है कि पूरे राज्य में इसे लागू किया है। वहीं, ओबीसी समुदाय के लोगों का कहना है कि पुलिस की मानसिकता में भी बदलाव की जरूरत है।

 

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क्या बोली पुलिस?

 

इस निर्देश के बारे में बीड पुलिस के प्रवक्ता  ASI सचिन इंगले ने कहा, 'बीड के एसपी ने निर्देश जारी किए हैं कि सभी पुलिसकर्मी एक-दूसरे को सिर्फ उनके मुख्य नाम यानी फर्स्ट नेम से ही बुलाएं। साथ ही, यह भी कहा है कि वर्दी पर कोई भी अपनी जाति न लिखे। ऐसा करने का मकसद यह है कि जिले में जातिगत भेदभाव को खत्म किया जा सके। इसकी एक वजह यह भी है कि अगर कोई मराठा व्यक्ति ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन करता है और कोई ओबीसी पुलिस अफसर उसे पकड़ ले तो नियमों का उल्लंघन करने वाला शख्स तुरंत आरोप लगाने लगता है कि जाति की वजह से उसे पकड़ा गया है। इसी के चलते ऐसा फैसला लिया गया है।'

 

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क्या है पूरा मामला?

 

पिछले साल दिसंबर महीने में मसाजोग के सरपंच संतोष देशमुख की हत्या कर दी गई थी। वह मराठा समुदाय से आते थे। इस केस के ज्यादातर आरोपी वंजारी ओबीसी समुदाय से हैं। यही वजह रही कि महाराष्ट्र में ओबीसी और मराठा के बीच संघर्ष की स्थिति पैदा हो गई थी। पहले भी ये दोनों समुदाय आरक्षण के मुद्दे को लेकर कई बार टकराते रहे थे। इसी केस में एनसीपी के नेता और मंत्री रहे धनंजय मुंडे के एक करीबी का भी नाम आया जिसके चलते उन्हें मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा।

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