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56 दिन, 307 टन वेस्ट; भोपाल गैस त्रासदी का जहरीला कचरा ऐसे हुआ साफ

2-3 दिसंबर 1984 की रात भोपाल में गैस त्रासदी हुई थी। इस त्रासदी के 40 साल बाद यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री का जहरीला कचरा जलकर खाक हो गया है।

Bhopal gas tragedy

यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री। (फाइल फोटो-PTI)

भोपाल गैस त्रासदी के 40 साल बाद यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री का जहरीला कचरा जलकर खाक हो ही गया। फैक्ट्री में 300 टन से ज्यादा का जहरीला कचरा 40 साल से जमा हुआ था। हाई कोर्ट के आदेश के बाद इस कचरे को भोपाल से 250 किलोमीटर दूर पीथमपुर के प्लांट में जलाया गया। इस कचरे को जनवरी में यूनियन कार्बाइड से पीथमपुर के प्लांट में लाया गया था। अधिकारियों ने बताया कि फैक्ट्री से लाया गया 307 टन कचरा जलाकर खाक कर दिया गया है। अधिकारियों ने बताया कि इस फैक्ट्री में कुल 337 टन कचरा था, जिसमें से 30 टन कचरा पहले ही जलाया जा चुका था। 


यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री में जमे इस कचरे को जंबू बैग में पैक कर पीथमपुर के प्लांट में लाया गया था। कुल 12 कंटेनर में भरकर यह कचरा लाया गया था। हाई कोर्ट ने पिछले साल 3 दिसंबर को फैक्ट्री से इस जहरीले कचरे को हटाने का आदेश दिया था।

 

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30 टन कचरा पहले ही जला दिया गया था

राजधानी भोपाल में बंद पड़ी यूनियन कार्बाइड की इस फैक्ट्री में कुल 337 टन कचरा जमा था। स्टेट पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के अधिकारियों ने न्यूज एजेंसी PTI को बताया कि हाई कोर्ट के आदेश पर 2 जनवरी को बंद पड़ी फैक्ट्री से इस जहरीले कचरे को पीथमपुर के प्लांट में लाया गया था।


अधिकारियों ने बताया कि पीथमपुर के प्लांट में तीन अलग-अलग परीक्षणों में 30 टन कचरा जलाया गया था। बोर्ड ने हाई कोर्ट में रिपोर्ट दाखिल कर बताया था कि तीन अलग-अलग परीक्षण हुए थे। पहले परीक्षण में 135 किलो प्रति घंटा, दूसरे परीक्षण में 180 किलो प्रति घंटा और तीसरे परीक्षण में 270 किलो प्रति घंटा कचरा जलाया गया था।

 

सरकार ने बताया था कि यूनियन कार्बाइड कारखाने के कचरे में इस बंद पड़ी इकाई के परिसर की मिट्टी, रिएक्टर अवशेष, सेविन (कीटनाशक) अवशेष और नेफ्थाल अवशेष शामिल थे।


बोर्ड के मुताबिक, वैज्ञानिक प्रमाणों के अनुसार इस कचरे में सेविन और नेफ्थाल रसायनों का प्रभाव पहले ही लगभग खत्म हो चुका था। बोर्ड के मुताबिक, फिलहाल इस कचरे में मिथाइल आइसोसाइनेट गैस का कोई अस्तित्व नहीं था और इसमें किसी तरह के रेडियोधर्मी कण भी नहीं थे।

 

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5 मई से शुरू हुई थी जलाने की प्रक्रिया

फैक्ट्री से लाए गए इस कचरे को जलाने की प्रक्रिया 5 मई की शाम 7 बजकर 45 मिनट से शुरू हुई थी। पूरा 307 टन कचरा 29-30 जून की रात लगभग 1 बजे तक जलकर खाक हो गया। यानी, इस कचरे को जलने में लगभग 56 दिन लगा। 


पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी श्रीनिवास द्विवेदी ने PTI को बताया कि इस कचरे को तकनीकी विशेषज्ञों की निगरानी में पीथमपुर के प्लांट में 270 किलो प्रति घंटे की दर से जलाया गया। उन्होंने दावा किया कि कचरा जलाने की प्रक्रिया के दौरान आसपास के इलाकों में रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य पर इसका असर पड़ने की कोई सूचना नहीं मिली।

 

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कचरा जला, अब आगे क्या?

श्रीनिवास द्विवेदी ने बताया कि यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री के 337 टन कचरे से निकली राख और अन्य अवशेषों को बोरों में सुरक्षित तरीके से भरकर संयंत्र के 'लीक-प्रूफ स्टोरेज शेड' में रखा जा रहा है।


उन्होंने बताया कि इन अवशेषों को जमीन में दफनाने के लिए तय वैज्ञानिक प्रक्रिया के तहत विशेष सुविधा (लैंडफिल सेल) का निर्माण कराया जा रहा है और यह काम नवंबर तक पूरा होने की उम्मीद है। उन्होंने कहा, 'सबकुछ ठीक रहा, तो दिसंबर तक इन अवशेषों का भी निपटारा कर दिया जाएगा। इससे पहले, इन अवशेषों का वैज्ञानिक तरीके से उपचार किया जाएगा ताकि इन्हें दफनाए जाने से आबो-हवा को कोई नुकसान न पहुंचे।'

2-3 दिसंबर 1984 को हुआ था हादसा

2 और 3 दिसंबर 1984 की रात को यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से जहरीली मिथाइल आइसो साइनेट गैस लीक हो गई थी। इससे 5,749 लोगों की मौत हो गई थी। जबकि, लाखों लोग अपंग हो गए थे।

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