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हरियाणा: FIR होने पर अफसर का नाम HCS के लिए नहीं बढ़ाया, HC ने फटकारा

हरियाणा सिविल सर्विस (HCS) परीक्षा 2019 के लिए भेजे गए नामों को लेकर हाई कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा है कि एक BDPO का नाम सिर्फ FIR के कारण नहीं भेजा गया, जबकि दो अन्य जिनके खिलाफ FIR दर्ज थी, उनके नाम भेज दिए गए।

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प्रतीकात्मक तस्वीर। (Photo Credit: PTI)

हरियाणा सरकार की तरफ से HCS परीक्षा 2019 के लिए भेजे गए नामों को लेकर हाई कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा है कि एक BDPO का नाम सिर्फ FIR के कारण नहीं भेजा गया, जबकि दो अन्य जिनके खिलाफ FIR दर्ज थी, उनके नाम भेज दिए गए। कोर्ट ने कहा कि या तो अधिकारियों को न्यायिक दृष्टिकोण की समझ नहीं है या उन्होंने जांच की कोई परवाह नहीं की।


विकास एवं पंचायत विभाग के तहत BDPO पद पर कार्यरत एक महिला अधिकारी रितु लाठर की याचिका पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने सरकार की मंशा पर भी सवाल उठाया है। कोर्ट ने कहा कि विभाग ने जो उत्तर दिया, वह या तो बहुत ही दुर्भावनापूर्ण था या न्यायिक सिद्धांतों की पूरी अनदेखी करते हुए दिया गया था। रितु लाठर HCS (कार्यकारी शाखा) के पद के लिए परीक्षा देना चाहती थीं लेकिन विभाग की तरफ से उनका नाम आगे नहीं बढ़ाया गया था।


रितु लाठर को HCS (कार्यकारी शाखा) चयन से केवल FIR के आधार पर बाहर कर दिया गया, जबकि वैसे ही मामलों में दूसरों को शामिल किया गया। विभाग ने रितु लाठर का नाम यह कहकर HPSC को नहीं भेजा था कि विजिलेंस ब्यूरो ने उनके खिलाफ FIR दर्ज की हुई है। हालांकि, दो अधिकारियों का नाम FIR दर्ज होने के बाद भेजा गया था। 

रितु लाठर ने क्या दलील दी थी?

रितु लाठर ने इसके खिलाफ कोर्ट में याचिका दायर की थी। उन्होंने अपने याचिका में दलील दी थी कि उनके खिलाफ केवल FIR दर्ज हुई है, चार्जशीट नहीं। उन्होंने दलील दी थी कि चार्जशीट के खिलाफ कोर्ट ने रोक भी लगाई है। इसके बावजूद उसका नाम HCS चयन के लिए नहीं भेजा गया।


उन्होंने दलील दी थी कि दो अन्य अधिकारियों के खिलाफ भी FIR दर्ज है, फिर भी उनके नाम भेज दिए गए। सरकार का यह रवैया भेदभावपूर्ण है।

हाई कोर्ट ने अपने फैसले में क्या कहा?

मामले में हाई कोर्ट की जस्टिस विनोद भारद्वाज की बेंच ने 19 मई को फैसला सुनाया था। हालांकि, इसका फैसला अब वेबसाइट पर अपलोड किया गया है। 


हाई कोर्ट ने अपने इस पूरे मामले में सरकार पर तल्ख टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि इस तरह के फैसले के पीछे तीन में से एक कारण हो सकते हैं। पहला- उन्हें न्यायिक दृष्टिकोण की समझ नहीं है। दूसरा- उन्होंने किसी मामले की जांच की परवाह नहीं की। और तीसरा- किसी कर्मचारी को नुकसान पहुंचाने के लिए दुर्भावनापूर्ण तरीके से व्याख्या का गलत इस्तेमाल किया गया।


कोर्ट यह भी कहा कि 'यदि सरकार चार्जशीट के आधार पर याचिकाकर्ता का नाम चयन के लिए नहीं भेजती है, तो यह सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के खिलाफ है।' 


अदालत ने कहा कि 'जिन मामलों में सरकार ने चार्जशीट को आधार नहीं बनाया, उन मामलों में चयन के लिए नाम भेज दिया, जबकि जिन मामलों में चार्जशीट पर स्टे था, उन्हें चयन प्रक्रिया से बाहर कर दिया गया। यह भेदभावपूर्ण रवैया है और दुर्भावनापूर्ण निर्णय प्रतीत होता है।' 


कोर्ट ने कहा कि अगर चार्जशीट पर किसी अदालत ने रोक लगाई है तो सरकार उसे आधार नहीं बना सकती। हाई कोर्ट ने कहा, याचिकाकर्ता के खिलाफ सिर्फ FIR है, कोई चार्जशीट प्रभावी नहीं है, और जो चार्जशीट थी, उस पर कोर्ट ने पहले ही रोक लगा दी थी। इस आधार पर सरकार द्वारा उसका नाम न भेजना न्यायसंगत नहीं है।

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