पहलगाम हमले के बाद मोदी सरकार ने पाकिस्तान के खिलाफ कई बड़े फैसले लिए हैं। इन फैसलों में पाकिस्तानी नागरिकों को वापस भेजने की प्रक्रिया भी शामिल है। अभी तक जम्मू-कश्मीर से 60 से ज्यादा लोगों को अटारी बार्डर पर भेजा जा चुका है। इसी बीच जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट ने एक पुलिस कांस्टेबल और उसके आठ भाई-बहनों को पाकिस्तान भेजने पर रोक लगा दी है। कोर्ट का कहना है कि ये सभी लोग जम्मू-कश्मीर के निवासी हैं। अधिकारियों से नोटिस मिलने के बाद पुलिस हेड कांस्टेबल ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। कोर्ट ने यह फैसला हेड कांस्टेबल की ओर से पेश किए गए दस्तावेजों के आधार पर दिया है। कोर्ट की माने तो हेड कांस्टेबल इफ्तिखार अली की ओर से पेश किए गए दस्तावेजों से पता चलता है कि इनका परिवार जम्मू-कश्मीर के पुंछ का रहने वाला है।
जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति राहुल भारती ने इफ्तिखार अली की याचिका पर सुनवाई के बाद में कहा, 'याचिकाकर्ताओं को केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर छोड़ने के लिए न कहा जाए और न ही मजबूर किया जाए।' हालांकि, दूसरा पक्ष इस निर्देश पर आपत्ति जता सकता है। अली पिछले 27 साल से पुलिस विभाग में काम कर रहे हैं। इफ्तिखार अली अभी वैष्णों देवी मंदिर के कटरा आधार शिविर में तैनात हैं। राजस्व अभिलेख के मुताबिक, यह पता चलता है कि इफ्तिखार अली जम्मू-कश्मीर के पुंछ जिले के वास्तविक निवासी हैं। इन कागजों की वजह से अली की याचिका को स्वीकार करते हुए जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट ने सरकारी वकीलों से दो हफ्ते में एक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा और मामले की अगली सुनवाई 20 मई को निर्धारित की है।
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इस बीच सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता सफीर चौधरी ने बताया कि अदालत के आदेश पर इफ्तिखार अली और उनके भाई-बहनों का निर्वासन रोक दिया गया है। अधिकारियों ने उन्हें रिहा कर दिया है और उन्हें पंजाब से वापस लाया जा रहा है।
क्या है पूरा मामला?
नागरिकों के निर्वासन की प्रक्रिया के बीच 26 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के अधिकारियों ने हेड कांस्टेबल इफ्तिखार अली जिनकी उम्र 45 साल है, उन्हें और उनके 8 भाई-बहनों को डिपोर्ट करने का नोटिस जारी किया था। आधिकारियों का कहना है कि ये सभी पाकिस्तानी नागरिक हैं। नोटिस जारी करने के बाद पुलिस ने इफ्तिखार अली और उनके परिवार को बुलाया और अटारी बार्डर भेज दिया। इफ्तिखार अली ने डिपोर्टेशन के खिलाफ कोर्ट में अपील की और राजस्व विभाग के दस्तावेज दिखाए। इन दस्तावेजों में यह साबित होता है कि इफ्तिखार अली के परिवार की जमीनें LoC के पास सलवाह गांव में मौजूद हैं।
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क्या है सच्चाई?
डिपोर्टेशन के खिलाफ प्रदर्शन करने वाले सरीफ चौधरी ने बताया कि इफ्तिखार अली के पिता फकर दीन मूल रूप से सलवाह गांव के रहने वाले थे। 1965 में युद्ध के दौरान गांव का आधा हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे में चला गया था। इसकी वजह से फकर दीन और उनकी पत्नी फातिमा को POK में शरण लेना पड़ा। सफीर ने बताया कि इफ्तिखार अली के मां-बाप रिफ्यूजी कैंप में रहते थे, वहीं, उनके तीन बच्चे भी उनके साथ रहते थे। अली सहित 6 और बच्चे वहीं पैदा हुए। सफीर ने बताया कि इफ्तिखार अली का परिवार 1980 में दोबारा पुंछ वापस लौट आया और यहां के अधिकारियों ने उन्हें जम्मू-कश्मीर के निवासी के तौर पर मान्यता दी।