ट्रांसजेंडर्स के लिए समाज में कई अवधारणाएं हैं, जिस वजह से उन्हें कई परेशानियों का समाना करना पड़ता है। हालांकि इनमें कुछ ऐसे भी लोग हैं जो इन अवधारणाओं पर ध्यान न देते हुए, न सिर्फ खुदको सशक्त बना रहे हैं, बल्कि समाज को आईना भी दिखा रहे हैं। ऐसी ही एक कहानी कर्नाटक से समाने आई है।
एनी जो खुद ट्रांसजेंडर हैं, मंगलुरु पढ़ाई के लिए आईं और बीए की पढ़ाई पूरी की व बीएड के दो सेमेस्टर भी किए। हालांकि इस दौरान उन्हें यह एहसास हुआ कि शिक्षा क्षेत्र में ट्रांसजेंडर्स को बराबर का मौका नहीं मिलता है, जिस वजह से उन्होंने पढ़ाई बीच में छोड़ दी।
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जब एक घटना ने बदला नजरिया
शहर में रहते हुए उन्हें कई बार अपमान का समाना करना पड़ा लेकिन एक घटना ने उनके सोचने का नजरिया बदल दिया। एक दिन एनी को घर लौटने के लिए ऑटोरिक्शा की जरूरत थी लेकिन कई रिक्शा चालकों ने उन्हें बैठाने से इनकार कर दिया। उन्होंने घंटों इंतजार किया पर कोई मदद के लिए आगे नहीं आया। आखिर में उन्हें रात में पैदल ही घर लौटना पड़ा। उस अपमानजनक अनुभव ने एनी को एक नई दिशा में सोचने पर मजबूर कर दिया।
एनी ने उसी रात ठान लिया कि वह अब किसी और पर निर्भर नहीं रहेंगी। उन्होंने खुद का एक ऑटोरिक्शा खरीदा और आम पुरुषों को किराए पर देना शुरू किया। धीरे-धीरे वह चार ऑटोरिक्शा तक पहुंच गईं। उन्होंने इन सभी वाहनों को किराए पर दिया है और जरूरत पड़ने पर खुद भी इसका ही इस्तेमाल करती हैं।
इसके साथ एनी ने सभी ड्राइवरों को यह निर्देश दिए हैं कि यदि कोई भी जरूरतमन्द हो उन्हें ऑटो में बिठाने से मना नहीं किया जाए। साथ ही एनी गर्भवती महिकाओं और बुजुर्ग ट्रांसजेंडर्स से किराया नहीं लेती हैं। इससे समाज को यह संदेश भी गया कि ट्रांसजेंडर व्यक्ति भी उतनी ही मेहनत, आत्मबल और हिम्मत रखते हैं जितना कोई अन्य व्यक्ति रखता है।