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मिजोरम: राज्यपाल के फैसले के बाद आमने-सामने क्यों है सरकार और BJP?

जिला परिषद को भंग करने के बाद पूर्वोत्तर राज्य की सियायत गर्मा गई है। अब मिजोरम की राजनीतिक गतिविधियों पर केंद्र सरकार की बारीक निगाह बनी हुई है।

Mizoram Governor

वीके सिंह। Photo Credit- PTI

मिजोरम के राज्यपाल विजय कुमार सिंह (VK Singh) के एक फैसले की वजह से बीजेपी और सत्तारूढ़ ने ज़ोरम पीपुल्स मूवमेंट (ZPM) के बीच ठन गई है। दरअसल, राज्यपाल ने 7 जुलाई को चकमा ऑटोनॉमस जिला परिषद (CADC) को 6 महीनें के लिए भंग कर दिया, जिसको लेकर दोनों पार्टियां आमने-आमने आ गईं। ज़ोरम पीपुल्स मूवमेंट ने राज्यपाल से चकमा ऑटोनॉमस जिला परिषद को भंग करने के फैसले पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया है। मगर, राज्यपाल के फैसले का समर्थन करने हुए 10 जुलाई को बीजेपी ने सत्तारूढ़ दल के फैसले का विरोध किया। इस अति संवेदनशील जिला परिषद को भंग करने के बाद पूर्वोत्तर राज्य की सियायत गर्मा गई है। अब मिजोरम की राजनीतिक गतिविधियों पर केंद्र सरकार की बारीक निगाह बनी हुई है।

 

बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा के राष्ट्रीय सचिव डेलसन नोटलिया ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए दावा किया कि राज्यपाल वीके सिंह के फैसले का चकमा स्वायत जिला परिषद के लोगों ने स्वागत किया है। इससे पहले 16 जून को CADC के प्रमुख और बीजेपी नेता मोलिन कुमार चकमा को अविश्वास प्रस्ताव के जरिए हटा दिया गया था, जिसके बाद बीजेपी सत्ता से बाहर हो गई थी।

राज्यपाल ने क्यों लिया फैसला?

राज्यपाल वीके सिंह ने चकमा स्वायत जिला परिषद को भंग करने के पीछे लगातार राजनीतिक अस्थिरता का हवाला दिया है। वीके सिंह का कहना है कि राजनीतिक अस्थिरता की वजह से परिषद का प्रशासन प्रभावित हो रहा था। इसके साथ ही 7 जून को परिषद को भंग करते हुए CADC में राज्यपाल शासन लागू कर दिया गया। ज़ोरम पीपुल्स मूवमेंट के नेतृत्व वाली सरकार ने इस कदम को लोकतांत्रिक सिद्धांतों का उल्लंघन बताते हुए विरोध कर रही है।

 

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गृह मंत्री ने किया फैसले का विरोध

चकमा स्वायत जिला परिषद में 20 सदस्य होते हैं। इसमें ज़ोरम पीपुल्स मूवमेंट के अभी 16 सदस्य हैं। इसके बाद पार्टी ने परिषद की अगली कार्यकारी समिति बनाने का दावा पेश कर दिया है। राज्य के गृह मंत्री और पार्टी नेता के. सपदांगा ने 8 जून को राज्यपाल के एकतरफा फैसले का विरोध किया। गृह मंत्री ने कहा कि राज्यपाल वीके सिंह ने मंत्रिपरिषद के सुझाव की अनदेखी करते हुए परिषद को भंग करने के लिए अपनी शक्ति का इस्तेमाल किया है।

 

हालांकि, गृह मंत्री के. सपदांगा की अपील पर आपत्ति जताते हुए बीजेपी ने कहा कि राज्यपाल के पास विकास परिषद के सदस्य (एडीसी) के मामले में निर्णय लेने का विवेकाधीन अधिकार है। बीजेपी ने कहा कि पहले भी राज्यपाल ने कई मौकों पर ऐसा किया है। बीजेपी नेता नोटलिया ने कहा, 'चकमा परिषद के लोगों ने राज्यपाल के फैसले का तहे दिल से स्वागत किया है। इसे लोकतांत्रिक सिद्धांतों का उल्लंघन बताना और उनसे अपना फैसला वापस लेने का आग्रह करना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।'

बीजेपी ने लगाए आरोप

विवाद होने के बाद बीजेपी ने कहा है कि CADC राजनीतिक अस्थिरता का सामना कर रहा है। परिषद में 2013 से 2023 के बीच 10 बार और 2023 से वर्तमान कार्यकाल में दो बार अध्यक्ष बदला गया है। साथ ही बीजेपी ने आरोप लगाया है कि परिषद में राजनीतिक अस्थिरता, वित्तीय कुप्रबंधन, अवैध भर्ती और भ्रष्टाचार के कारण लोगों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। इसके अलावा पार्टी ने दावा किया है कि चकमा परिषद के कर्मचारियों को पांच महीने से वेतन नहीं मिला है।

 

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बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा के राष्ट्रीय सचिव नोटलिया ने कहा कि प्रमुख चकमा संगठनों ने जून में राज्यपाल और मुख्यमंत्री दोनों से परिषद को निलंबित करने और कथित वित्तीय कुप्रबंधन और भ्रष्टाचार की जांच के लिए एक जांच आयोग गठित करने का आग्रह किया था। नोटलिया ने कहा कि इन अपीलों ने वीके सिंह को 7 जुलाई को छह महीने के लिए राज्यपाल शासन लागू करने के लिए प्रेरित किया।

मोलिन कुमार फरवरी में बने परिषद के प्रमुख 

बीजेपी नेता डेलसन नोटलिया ने आगे कहा, 'अपने राजनीतिक इतिहास में, मिजोरम ने कभी ऐसी स्थिति का सामना नहीं किया है जहां मंत्रिपरिषद ने विकास परिषद के सदस्य पर राज्यपाल के फैसले को चुनौती दी हो।' मोलिन कुमार चकमा ने 4 फरवरी को चकमा परिषद के प्रमुख के रूप में शपथ ली थी। मोलिन कुमार चकमा के रूप में बीजेपी CADC के 53 साल के इतिहास में पहली बार अपना अध्यक्ष बनाने में सफल रही थी।

कब हुआ परिषद का गठन?

हालांकि, चार महीने बाद परिषद के वर्तमान अध्यक्ष लखन चकमा सहित इसके 12 सदस्यों ने बीजेपी से इस्तीफा दे दिया और जून में ज़ोरम पीपुल्स मूवमेंट में शामिल हो गए। बता दें कि चकमा परिषद का गठन 1972 में मिजोरम के चकमा आदिवासियों के कल्याण के लिए देश के संविधान की छठी अनुसूची के तहत किया गया था। परिषद मिजोरम के लॉन्गतलाई जिले में चकमा बहुल क्षेत्र के शासन में स्वायत्तता सुनिश्चित करती है। चकमा जनजाति मिजोरम में अल्पसंख्यक जातीय समूह है, जो राज्य का दूसरी सबसे बड़ा जातीय समुदाय है। परिषद में 20 निर्वाचित सदस्य और 4 मनोनीत सदस्य होते हैं।

 

जानकारी के लिए बता दें कि विभिन्न जनजातियों के स्वायत शासन के विचार को ध्यान में रखते हुए देश में कुल 10 स्वायत जिला परिषद बनाया गया है। यह खास तौर पर पूर्वोतर के 4 राज्यों असम, मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा में स्थित हैं, जिनमें से असम, मेघालय, मिजोरम में 3-3 ऑटोनॉमस डिस्ट्रिक्ट काउंसिल हैं जबकि त्रिपुरा में 1 एडीसी है।

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