नागौर जिले के मेड़ता कस्बे में शुक्रवार को एक ऐसा नजारा देखने को मिला, जो पुलिस कार्रवाई से ज्यादा सड़क पर हो रहे नाटक जैसा लग रहा था। तीन लोगों को पुलिस परेड करवा रही थी, जिनके सिर मुंडवाए गए थे और जो महिलाओं के सलवार सूट पहने हुए थे और पुलिस उन्हें कस्बे की सड़कों पर घुमा रही थी। ये लोग अपने हाथ जोड़कर बार-बार कह रहे थे, 'हमसे गलती हो गई।' आसपास के लोग इन्हें देख रहे थे और कुछ ने वीडियो भी बनाए। पुलिस के मुताबिक, इन तीनों ने एक बुजुर्ग व्यक्ति को ठगने का काम किया था।
उन्होंने एक पुराने फर्जी लॉटरी का इस्तेमाल करके बुजुर्ग शख्स को ठगने का काम किया। इन लोगों ने बुजर्ग व्यक्ति को इस बात का विश्वास दिला दिया कि उन्होंने साढ़े चार लाख रुपये जीत लिए हैं। इस पैसे को पाने के लिए उसे पहले कुछ पहले ठगी करने वालों को देने थे इसलिए उसने लोगों से पैसे उधार लिए। इसके बाद बुजुर्ग शख्स से कैश में पैसे लेकर ये लोग मोटर साइकिल से भाग गए। जब पुलिस ने इन्हें पकड़ा तो ये लोग उस वक्त सलवार सूट में थे। इन्हीं कपड़ों में उन्होंने शख्स के साथ स्कैम किया था। पुलिस ने उन्हें पकड़ने के बाद उन्हीं कपड़ों में सड़क पर घुमाया। यह पूरी परेड लोकल बस स्टैंड से लेकर कोर्ट तक करवाई गई।
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क्यों हो रही है ऐसी कार्रवाई?
पुलिस का कहना है कि इस तरह की परेड का मकसद न केवल इन ठगों को सबक सिखाना है, बल्कि दूसरों को भी चेतावनी देना है कि अपराध का रास्ता गलत है। राजस्थान में संगठित और आर्थिक अपराधों के खिलाफ पुलिस इस तरह का ऐक्शन ले रही है ताकि अपराधों को कम किया जा सके। उनका मानना है कि इससे उन लोगों का भरोसा प्रशासन में बढ़ता है, जो अपराधों के सामने अक्सर खुद को ठगा हुआ महसूस करते हैं।
राजस्थान में पहले भी हुआ
यह कोई पहला मामला नहीं है। राजस्थान के अन्य हिस्सों में भी संगठित अपराधों या उगाही के आरोपियों को इस तरह सड़कों पर घुमाया गया है। उदाहरण के लिए, झुंझुनू के गुढ़ागोरजी में एक घर पर गोलीबारी के आरोपियों को एक ही तरह के कपड़ों में परेड कराया गया था। इन घटनाओं के वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुए थे और लोगों ने पुलिस की तारीफ भी की।
पुलिस ने क्या कहा?
हालांकि, पुलिस ने सफाई देते हुए यह भी कहा कि यह परेड शर्मिंदा करने के लिए नहीं थी बल्कि कई बार आरोपियों को कोर्ट में पेश करने के लिए अपराध वाली जगह से कोर्ट ले जाने के लिए वाहन की व्यवस्था नहीं होती को उन्हें पैदल ही ले जाना पड़ता है।
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ह्यूमन राइट्स की चिंता
हालांकि, सोशल मीडिया पर लोग पुलिस की इस कार्रवाई की तारीफ कर रहे हैं, लेकिन कानूनी विशेषज्ञ और मानवाधिकार कार्यकर्ता इससे खुश नहीं हैं। उनका कहना है कि कोर्ट में सजा होने से पहले इस तरह की सजा देना कानूनी प्रक्रिया का उल्लंघन है। वकील नरेश कुमार ने कहा, 'इस तरह से अपराध को सनसनीखेज बनाना अपराध रोकने में ज्यादा मदद नहीं करता, बल्कि इससे नुकसान हो सकता है।'